प्रधान को भगवान का दर्जा दिलाइये।
पत्थर के सामने यों व्यर्थ गिड़गिड़ाइये।
अंधेरे में फिर खोजिये रहता कहाँ है वह।
अस्तित्व आप अपना मिट्टी में मिलाइये।
जाने नहीं पसीजना ,झुके न काठ -सा।
अब तोड़ दीजिए उसे या टूट जाइये ।
बनकर प्रधान सेवक जो आये थे एकदिन।
बनने लगें हैं बाप ,नहीं तिलमिलाइए।
झुके नहीं फौलाद-सा हुए हैं सख्त वह।
लड़ते किसान भाइयों से सीख जाइये।
कुर्सी परोसने का हक मिला है जिस तरह।
वैसे ही खींचने का हक भी छीन लाइए।
एक हाथ में लाठी उठाकर वोट दीजिए।
बिगड़े जब बात लट्ठ को भी आजमाइये।
आये पिलाकर चासनी धरम की वे तुम्हें।
लुटेरे लूटने में जुटे आप जरा जाग जाइये।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें