बुधवार, 5 जनवरी 2022

ब्राह्मण एकता

 उत्तर आधुनिक दुनिया का मानव समाज दो हिस्सों में बट गया है! एक समाज वह है जो समानता, बंधुत्व,न्याय,साइंस और आधुनिक तकनीक पर आधारित अग्रगामी प्रगतिशील मानव समाज है! रूप -आकार में,समाज- ज्ञान विज्ञान में संपन्न यह मानव समाज अल्पमत में है, किंतु क्रीमी लेयर जैसा है!

विराट मानव समाज का दूसरा हिस्सा जड़ है, यह पुरातन कबिलाई समाज इकदम प्रतिगामी है! यह खापों, जातियों, गोत्रों और धर्म मजहब के नाम पर अत्यंत दिग्भ्रमित और पोंगापंथी है! आजादी के बाद भारत में इस जातीय और साम्प्रदायिक समाज का उग्र चरित्र और ज्यादा अधोगामी हो गया है!
इस तरह के संगठन आजादी के पूर्व भी थे किंतु वे अपने स्वार्थ की बात नही करते थे बल्कि वे स्वाधीनता संग्राम में परोक्ष सहयोग करते थे! किंतु आजकल के जातीय और साम्प्रदायिक संगठन केवल अपनी जाति या अपने संप्रदाय के हित तक सीमित हो गये हैं! इस तरह के जातीय और साम्प्रदायिक संगठन भारत की एकता अखंडता और विकास के लिये बाधक बन गये हैं! दलित पिछड़े वर्ग के जातियां संगठनों की देखा देखी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण संगठन भी बन गए हैं!
जो लोग ऋगवेद का ऋ लिखना नही जानते, जो अग्निहोत्र का अग्नि मंत्र नही जानते और जो मूढ़मति 'ब्रह्मकर्म स्वभाजम्' का मतलब नही समझते और जिनमें ब्राह्मणत्व का नामोनिशान नही वे लोग आजकल सोशल मीडिया पर ब्राह्मण एकता और संगठित होने की बात कर रहे हैं!
संगठित होना गलत नहीं! किंतु संगठित होकर वे क्या करना चाहते हैं ? संगठित होकर ब्राह्मण किस के खिलाफ संघर्ष करेंगे! क्योंकि हिंदू सनातन परंपरा और शास्त्र अनुसार क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण के बिना ब्राह्मण का अस्तित्व ही नही बचेगा!
ब्राह्मण संगठित होकर किससे हक मांगेगे? एक ब्राह्मण के लिए पुरोहिताई या धार्मिक सामाजिक- कार्य के लिये अन्य तीन वर्णों का होना बहुत जरुरी है कि नही? इसके लिये न केवल वर्ण व्यवस्था जरूरी है बल्कि उनसे सौहार्द भी जरूरी है! सौहाद्र के लिये ब्राह्मणों की एकता नही संपूर्ण हिंदू समाज की एकता और आपसी भाईचारा जरूरी है!
कुछ अपढ़ कुपढ़ लोग कुए के मैंढक की भांति ब्राह्मण संगठन बनाने का अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं! कुछ लोग समझते हैं कि ब्राह्मण के यहां पैदा हो गये तो ब्राह्मणत्व उनकी बपौती हो गई! यदि कोई असली ब्राह्मण होगा तो यह याद रखेगा कि :
"अयं निज परोवेति, गणना लघुचेतसाम्! उदार चरितानाम् तू वसुधैव कुटुंबकम!! "
अर्थ :- ब्राह्मण की सोच इतनी टुच्ची नही होती कि ये मेरा है, वो तेरा है! बल्कि ब्राह्मण तो सारे ब्रह्मांड के सकल जीवों में एक ही परम ब्रह्म परमेश्वर को देखता है!
ब्राह्मण की परिभाषा :
"शमो दमस्तप :शौचं शांति आर्जवमं एव च!
ज्ञानम् विज्ञानम् आस्तिक्यम्, ब्रह्म कर्म स्व
भावजम् !"
या
"ब्रह्मो जानाति स ब्राह्मण :"
इति ...द्वारा श्रीराम तिवारी

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