इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 25 जनवरी 2022
आईना देखना सिहरना क्या!
देख कर खुद को रोज़ मरना क्या!!
एक काग़ज़ की नाव हूं मैं तो,
डूबना क्या मेरा उभरना क्या!
मेरा हम ज़ाद मुझ में चीखता है,
छोड़ो उस से कलाम करना क्या
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