जिसने *प्रस्थान त्रयी* को नहीं जाना,वह *वेदांत दर्शन * को नहीं जान सकता। जिसने *मनु स्मृति *का मूल पाठ संस्कृत में नहीं पढ़ा,वह वर्ण व्यवस्था,वर्णाश्रम और सनातन धर्म [हिंदुत्व ] को नहीं जानता। जिसने *अहिंसा परमोधर्म *,अनेकांतवाद,स्याद्वाद ,पुद्गल और अपरिग्रह को नहीं जाना,वह *जैन दर्शन* को नहीं जानता। जिसने करुणा ,मैत्री,मुदिता ,क्षमा और तृष्णा मुक्ति का अष्टांग मार्ग नहीं जाना ,वह *बौद्धदर्शन* को नहीं जानता। जिसने परदुख कातरता, मानव सेवा और करुणा को नहीं जाना वह ईसाई मजहब को नहीं जानता। जिसने भाईचारे,दीन- ईमान,कुर्बानी और इंसानियत को नहीं जाना,वह * इस्लाम * को नहीं जानता। वास्तव में धर्म मजहब-अफीम नहीं ,बशर्ते उनका सही ज्ञान हासिल हो और सही अनुपालन किया जाए..
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