संजीवनी बरसाकर पावस प्रस्थान किये,
अब चलन लगी पुरवा शरद ऋतु आई है !
रोजी के जुगाड़ की फ़िकर लगी जिनको ,
कारखाना मालिक की खबर नहीं आई है!!
ख़ुशी मौज मस्ती धनवानों की जेब मेंं,
शरद का चन्द्र वहाँ न अमृत बरसाई है।
कहाँ से पकाएं खीर अमृत को सेवन की ,
निर्धन के घर विधाता ने वेदना बरसाई है
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