गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

इस दौर के लेखक साहित्यकार :

 यद्द्पि साहित्यिक विरादरी पूरी की पूरी विप्लवी या प्रोग्रेसिव सोच वाली नहीं हो सकती ! हर कवि लेखक,शायर,कलाकार, साहित्यकार, जनवादी उसूलों वाला ही हो यह भी जरूरी नहीं है। भारतीय फलक पर इस दौर में जो लोग महात्मा गांधी,गौतम बुद्ध, बाबा साहिब अम्बेडकर,कार्ल मार्क्स, भगतसिंह के वैचारिक प्रभाव में सृजनशील हैं,वही असल जनवादी,प्रगतिशील,तर्कवादी विज्ञानवादी साहित्यकार हैं!

वेशक आजकल अधिकांस लेखक कवि साहित्यकार या तो सत्ता चरणानुगामी हैं या विशुद्ध जातीय विमर्श वादी हैं ! बेशक कुछ दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी अवश्य इस पूँजीवादी कार्पोरेटवादी सत्ताधाली नीति के आलोचक हैं ! कुछ बचे खुचे साहित्यकार लेखक कवि सौ फीसदी यथास्थितिवादी प्रतिक्रयावादी हैं! यदि ओम थानवी,जगदीश्वर चतुर्वेदी,राम पुनियानी,असगर बजाहत जैसे दस बीस चुनिंदा साहित्यकार ही इस दौर में अपनी सही भूमिका अदा कर रहे हैं! जो कि उनका सहज सैद्धांतिक स्वभाव और दायित्व भी है!
भारत में 2014 के बाद हुए सत्ता परिवर्तन ने जन मानस की अभिरुचि को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का ऑब्जेक्ट बना डाला है! आम आदमी को नही मालूम कि माब लिंचिंग,
गोकसी का मतलब क्या है? वे यह भी नही जानते कि गौरी लंकेश,प्रो. कलिबुर्गी,कॉ. पानसरे,डॉ.नरेंद्र दाभोलकर जैसे लेखकों साहित्यकारों की हत्या केवल आम मर्डर या प्रतिक्रियावादी हिंसा मात्र नहीं थी!बल्कि यह आधुनिक वर्ग संघर्ष में सर्वहारा वर्ग के हरावल दस्तों की ओर से महान क्रांतिकारी शहादत है!
वैसे भी हर मुश्किल दौर में जो कुछ बलिदान करने की क्षमता रखते हैं,वही सर्वहारा वर्ग और संपूर्ण जनता जनार्दन के असल हीरो हुआ करते हैं। इस विषम दौर में भारत के असली हीरो वही हैं जो सत्ता को आइना दिखा रहे हैं।और किसान मजदूर आंदोलनों में अपना बेशकीमती बलिदान दे रहे हैं!

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