अधिकांश धर्म मज़हब में मन्त्र शक्ति का बड़ा महत्व है। किन्तु जो मंत्र नहीं जानते वे क्या करें ॽ पहली चीज है मंत्र का संबंध जीवनशैली को संगठित करने से है,उसका ईश्वर प्राप्ति से कोई संबंध नहीं है।मंत्र पाने का अर्थ है संगठित निष्ठावान जीवनशैली को व्यवहार में उतारना।मंत्र जप से भगवान नहीं मिलते, भगवान से प्रेम संबंध प्रगाढ़ नहीं बनता।मंत्र हमारे दैनंदिन जीवन की घटनाओं से जुड़े रहे हैं,मंत्र एक काम और करता है वह मन को केन्द्रित करता है।चित्त को एकाग्रता प्रदान करता है।
समाज में जो लोग मंत्र नहीं जानते लेकिन मन को केन्द्रित करके अपने जीवन लक्ष्य में एकाग्रभाव से लगे रहते हैं,उसके लिए त्याग-तपस्या करते हैं वे भी ब्रह्म को जानने के अधिकारी हैं। उपनिषद में कहा भी है ´तपसा ब्रह्म विजिज्ञास्व´,अर्थात् तपस्या के द्वारा ब्रह्म को जानो। चित्त को एकाग्र करके जो काम किया जाता है उसे तपस्या कहते हैं। तपस्या का मतलब जंगल में जाकर धूनी रमाकर भजन करना नहीं है।तपस्या का अर्थ संयासी होना भी नहीं है।समाज में रहते हुए बिना मंदिर गए, बिना मंत्रजप किए,बिना किसी के चेला बने, यदि कोई व्यक्ति एकाग्र भाव से अपना काम करता है तो उसे भगवान से मिलने की जरूरत कभी महसूस ही नहीं होगी,या फिर भगवान से पाने की इच्छा नहीं होगी, ऐसा व्यक्ति समाज से पाना नहीं बल्कि उसे देना चाहेगा।
एकाग्र दत्त-चित्त होकर आप अपना काम करते रहें आप एकदम तपस्वी कहलाएंगे।मन,जीवन, निजी, सामाजिक तमाम किस्म की व्याकुलता से इससे मुक्ति भी मिलती है।मैं अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूँ कि मैंने युवा अवस्था में मंत्र जप बंद कर दिया और पढ़ने-पढ़ाने का काम एकाग्र भाव से करने लगा, तो मन में बहुत संतोष मिला ! किन्तु दैहिक ,दैविक और भौतिक ताप बढ़ते चले गए ! धर्म पूजा पाठ त्यागने से या प्रारब्ध वश जीवन के कष्ट कम नहीं हुए! कष्ट हमेशा पीछा करते रहे ! उधर गाँव में दरिद्रता ने पूरे परिवार को घेर लिय! ,ईश्वर-मंत्र-पूजा-पाठ सब पर से मन हट गया,लेकिन एकाग्रता को मैंने कभी नहीं छोड़ा। रिटायर होने अचानक चिन्मय मिशन के परम विद्वान स्वामी प्रबुद्धानन्द और संस्कृत के महान विद्वान् स्वामी ऐश्वर्यानन्द से सत्संग का सुअवसर प्राप्त हुआ ,जिससे मेरा आध्यात्मिक स्वरूप फिर से जाग उठा। मुझे मन्त्र शक्ति पर पूरा विश्वास है। मंत्र शक्ति में दम है,बशर्ते ,मन आत्मा और शरीर शुद्ध हो !
अब मैं नित्य ही मन्त्र जाप करके परम आनंद का अनुभव करता हूँ।
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