प्रियो भवति दानेन प्रिय वादेन चापरः।
मन्त्रं मूल बलेनान्यो यः प्रियः प्रियेव सः।।
(सुभाषितम्)
अर्थात्ः- कुछ लोग उपहार देने पर प्रिय बनते हैं, कुछ मनोहारी बातों से और कुछ अन्य मन्त्र-बल से प्रिय बनते हैं परन्तु जिन्हें आप प्रिय हैं वे (बिना कुछ किये ही) आपके प्रिय ही हैं।
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