धुल धुँआँ धुंध व्योम में बारूदी गंध घुले
ऐंसी दीवाली अस्थमैटिक को न सुहावै है!
रोजी के जुगाड़ की फ़िकर लागी जिनको ,
उत्सव उमंग भाव उन्हें जरा भी न भावे है?
ख़ुशी मौज मस्ती चंद अमीरों की मुठ्ठियों में ,
चन्द्र वहाँ अमृत और लक्ष्मी धन बरसावै है।
कहाँ पै जलाएं दिया बाती अनिकेत अनगिन,
जवानी में जीवन जिनका अमावश हो जावै है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें