सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

जय -जय -अम्बे ! जय -जगदम्बे।

 जय -जय -अम्बे ! जय -जगदम्बे ! !

महँगाई है कौन करैयां,
बीच भवर में फसी है नैया
न राष्ट्रवाद न नैतिकता अक्षुण
दीन -दुखी कुछ समझ न पाता ।।
चेहरे बुझे -बुझे हों जिनके ।
उनको गरवा रास न आता ?
क्यों ीदुर्लभ ईंधन महँगा राशन ।
मेहनतकश ये सहज न पाता ?
धनवानों के शासक हो गए ।
रक्तबीज अब रिश्वत खाता ।।
भूंख कुपोषण लाचारी में।
निर्धन जन के दिन भये लम्बे।।
गाँव गली दंगा फैलाते ।
जाति - धरम के नित नए पंगे ।।
लक्ष्मीपति अब भये मधु कैटभ ।
जय -जय -अम्बे ! जय -जगदम्बे।। !
मंत्री नेता अफसर बाबू।
इनपर नहीं किसी का काबू।।
भले -बुढ़ापा आ जाए पर।
पदलिप्सा पर नहीं न काबू ।।
झूंठे नारे झूंठे वादे।
झंडे -डंडे भीड़ -लबादे।।
सत्ता के पलड़े पर भारी।
जाति -धर्म के नित नए -दंगे।
अंधे पीसें कुत्ते खाएं - माँ !
जय-जय अम्बे -जय जगदम्बे।।

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