बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

मनुष्य की आत्मिक प्रवृत्ति और मानसिक सोच

 वेदों का प्रणव (ॐ) , उपनिषदों का - ऋत , प्रस्थानत्रयी का सत्, बौद्धों का धम्म ,डार्विन का Order Of Universe लाओत्से का ताओ सिद्धांत और गुरू नानक का'हुकुम' इत्यादि शब्दों के अर्थ को समझने वाला ही 'धर्म' के *मर्म*को समझ सकता है!बाकी तो सब गोलमाल है!

मनुष्य की आत्मिक प्रवृत्ति और मानसिक सोच उसके विचारों से परिलक्षित होती है। यदि किसी मनुष्य की सोच में तार्किकता, वैज्ञानिकता,प्रगतिशीलता और सत् चित् आनंद मौजूद है,क्रांतिकारी प्रतिबद्धता का सकारात्मक समावेश है,तो निसंदेह उसके विचार भी भव्य और सर्वजनहिताय होंगे !जबकि साहित्य कला संगीत विहीन नीरस मनुष्य पशुवत आचरण के लिए अभिसप्त रहता है। ऐसा मनुष्य अपने आप से याने अपने मूल स्वभाव अर्थात परमानंदस्वरूप से कोसों दूर रहता है!

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