मानसं तु किं मार्गणे कृते,नैव मानसं मार्ग आर्जबात !
वृत्तयस्त्वहं वृत्तिमाश्रिता:वृत्तयो मनो विद्धयहं मन:!!
अर्थ:-यह मन क्या है? इस प्रकार विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि मन नाम की कोई (सत्य) वस्तु नही है! केवल वृत्तियों का प्रवाह ही मन है! सारी वृत्तियां एक अहंवृत्ति पर आश्रित होती हैं,इसलिये इस अहं वृत्ति को ही *मन* जानों!
:-महर्षि अरविंद : भाष्य ( कठोपनिषद आधारित)
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