बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

*अपरिग्रह*

 भारतीय आध्यात्मिक दर्शन में *अपरिग्रह* की महिमा का खूब बखान किया गया है! किंतु उसका पालन शायद ही कभी किसी ने ठीक ठाक किया हो! यदि इस नैतिक और आध्यात्मिक सिद्धांत का समुचित पालन किया गया होता,तो भारत में इतनी दयनीय सामाजिक -आर्थिक विषमता नही होती! और तब किसी संघर्षपूर्ण विप्लवी क्रांति की आवश्यकता ही नही होती! दरसल अपरिग्रह सिद्धांत फैल नही हुआ, बल्कि भारत के मूल और बहुसंख्यक समाज ने ही तमाम नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य विस्म्रित कर दिये हैं, इसलिये अब सर्वहारा क्रांति के अलावा कोई और विकल्प शेष नहीं रहा!

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