30-40 साल पहले आम धारणा थी कि सरकारी कर्मचारियों /अधिकारियों के वेतन भत्ते कम हैं इसलिये रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार होता है!फिर पाँचवे छठे पे कमीशन आये और यूनियनों ने लड़ भिड़कर कर्मचारियों अधिकारियों के खूब वेतन भत्ते बढवाये !
किंतु यथार्थ के धरातल पर देखा गया कि जिसकी जितनी ज्यादा पगार +भत्ते बढ़े,वह उतना ही रिश्वतखोर,मक्कार और महाभ्रस्ट होता चला गया!जब निजीकरण का दौर आया,तब लोगों को पता चला कि सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक उपकर्मों के कर्मचारी कितने कर्मठ हैं, अधिकांस आला अफसर देश को किस कदर लूट रहे हैं?और कार्य की गुणवत्ता किस स्तर की है?
इसी कमजोरी का फायदा उठाकर निजीक्षेत्र के खिलाड़ियों ने मैदान मार लिया ! उन्होंने अपना उल्लू सीधा करने के लिये ऐंसी पार्टी को सत्ता में बिठाया जो अंबानी,अडानी और कारपोरेट लॉबी के इशारे पर चले ! चूँकि सरकारी क्षेत्र में वेतन ज्यादा और Out put बहुत कम है, अत: पूँजीवाद समर्थक नेता सार्वजनिक सरकारी उपक्रमों को बेखौफ सरे बाजार नीलाम कर रहे हैं! किंतु
' अब पछताए होत का,चिड़िया चुग गई खेत'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें