मजहबी और धार्मिक कर्मकांडी दुनिया का तार्किक विष्लेषण करने पर यह परिणाम निकलता है कि तमाम पीर पैगम्बर,देवी- देवता,दानव एवं भगवान और अतींद्रिय धारणाएं-वास्तव में धर्मभीरू मनुष्य की मानसिक रचनाएं हैं! ये तमाम सकारात्मक
परिकल्पनाएं हमें जीवन जीने में बहुत मदद करती हैं! किंतु वे भौतिकवादी तर्कशास्त्र की नजर में सच नहीं हैं!
क्योंकि उन्हें किसी मानवीय बुद्धि से मापा नही जा सकता! लेकिन वे मनोवैज्ञानिक दृष्टि में सच जान पड़ती हैं! क्योंकि वे निरंकुश,बेचैन और भयभीत मन को ढाढस बंधाती हैं! यदि मानव जीवन को धर्म में निहित नैतिक मूल्यों,आदर्शों को हटा दिया जाए,तो मानव मन का सर्वकालिक सहारा और मानव जीवन का उद्देश्य एवं अर्थ समाप्त हो जाएगा!
इसलिये दुनिया में जब तक न्याय आधारित कोई आदर्श राजनैतिक व्यवस्था अथवा समाज व्यवस्था कायम नही हो जाती या हर मानव महामानव नही बन जाता,तब तक हर सत्धर्म का अस्तित्व अक्षुण रखा जाना चाहिये! भले ही वह मानव समाज रूपी खेत का बिजूका( कागभगोड़ा) ही क्यों न हो!
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