शनिवार, 14 अगस्त 2021

भारतीय गणतंत्र:-


भारतीय गणतंत्र को ,लगा भयानक रोग।
नैतिकता को लील गए,घटिया शातिर लोग।।
नयी आर्थिक नीति ने,किया देश कंगाल।
काजू-किशमिश हो गयी,देशी अरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का, लुच्चे हुए फरार।
नेता संसद में करें ,फोकट की तकरार।।
अफसर मंत्री मस्त हैं, भाजपाई खुशहाल।
अखिल विश्वबाजार में,भारत है बदहाल ।।
अच्छे दिन इनके हुए, बड़े किसान दलाल ।
कुछ धनवान भये ,बाकी सब कंगाल।।
जात- वर्ण आधार पर , आरक्षण की नीति।
बढ़ी बिकट असमानता ,पूंजीवाद से प्रीत ।।
आवारा पूँजी कुटिल , व्याप रही चहुँ ओर।
शासन से भयमुक्त हैं ,चोर मुनाफाखोर।।
अपव्यय की चिंता नही,अनुत्पादक नीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशीके गीत!!
रातों-रात सब हो गए ,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा माफिया आज ।
ऊपर से नीचे तलक , भृष्ट कमीशन राज ।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तटबंध।
आनन-फानन कर चले,जनविरुद्ध अनुबंध।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें