फिर साबित हो गया कि अमेरिका सिर्फ़ अवसरवादी धूर्तता में ही नहीं, कायरता में भी अव्वल है!
कमीनापन और दोगलेपन में पाकिस्तान बेजोड़ है!
अमेरिका ने ही रूस के विरुद्ध तालिबान को खड़ा किया! उसे पोषित और शक्तिशाली किया!
अब फिर तालिबान के जिन्न को पूरी तरह ज़िंदा करके अमेरिका भाग खड़ा हुआ!
१९७१में चाहते हुए भी अमेरिका अपनी पाक- परस्त कुटिलता के चलते बांग्लादेश बनने से नहीं रोक सका और ना ही लाखों निर्दोष अफ़गानियों पर होने वाले बर्बर अत्याचारों और क़त्लेआमों को रोक सका!
वियतनाम युद्ध के बाद ये अमेरिका की सबसे करारी शिकस्त है और १९७१ के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक सेना के आत्मसमर्पण के बाद अफ़गानी फ़ौजों का शर्मनाक सरेंडर है!
जैसा अमेरिका,वैसी ही थी अफ़गानिस्तान में थी उसकी कठपुतली सरकार! अमेरिका के इस छल,छद्म मानवाधिकार और कायरता भरे विश्वासघात से भारत के अमेरिकन परस्त कथित बौध्दिक डमरूओं और घोर दक्षिणपंथी ढ़पलियों को सबक सीखना चाहिए कि अमेरिका भरोसे के कतई लायक नहीं है!
दूसरा दुनिया भर के प्रबुद्ध लोगों को और ख़ासकर जागरूक मुसलमानों को जिहाद के नाम पर सदियों से चल रही ऐसी बर्बरता के ख़िलाफ़ आगे आना चाहिए!इन जघन्य, वहशी और दरिंदगी से भरी साजिशों का जन्मदाता पाकिस्तान है!इस समूचे मसले पर चीन की कुटिल चालें और दोगला चरित्र फिर सामने है!
अपने राज्य में मुसलमानों का घोर दमन करने वाला चीन तालिबानी मुल्लों को प्रश्रय देता आया है! रूस ने फिर इन्सानियत का साथ दिया है, तालिबान की मान्यता को ख़ारिज करके!अमेरिका ने जिस जिन्न को पाला,आज वो बोतल से पूरी तरह बाहर आ गया!
एक बात और...
इतिहास में मोहम्मद घोरी(प्रचलित नाम गोरी) और मेहमूद ग़ज़नवी से लेकर तो अब्दाली तक युद्ध का उन्माद, ख़ून का जितना सैलाब और क़त्लेआम हिंद ने देखा है...
इनका ताल्लुक अफ़ग़ानिस्तान से रहा है!
भारत पर १०० से ज़्यादा हमले अफ़गान के अलग-अलग रियासतों के सुल्तानों ने किये!
ये बात महज़ इत्तेफ़ाक नहीं समझी जा सकती?
प्रस्तुत दो तस्वीरें अफ़ग़ानिस्तान की हक़ीक़त को बयां कर रही है!एक वर्तमान की और दूसरी १९७२ की! सोचिए! मज़हबी पागलपन के नाम पर इन्सानियत का कैसा क़त्लेआम हो रहा है?
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