किसी भी देश की पब्लिक इस कदर निहित स्वार्थी शायद ही होगी,जैसेकि अधिकांस हम भारतीय हैं! विगत कुछ वर्षों में जब कुछ राज्यों ने सरकारी परिवहन सेवा बंद की थी तब निजी क्षेत्र के बस और टैक्सी संचालक बहुत खुश हुए!
रेलवे वाले भी खुश हुए कि चलो अच्छा हुआ,हमारी मोनौपॉली हुई! इन्कम बढ़ी और रेलवे कर्मचारियों को बम्फर बोनस मिलता रहा!जब आइटी सेक्टर की नौकरियाँ जा रहीं थीं तब airlines वाले ख़ुश थे,जब जेट एअर वेज वालों की और बीएसएनएल वालों की नौकरी जा रहीं थीं तब बाकी सभी सरकारी विभाग वाले चुप रहे!
अब रेलवे,बंदरगाह,ऐयरपोर्ट और बिजली कंपनियों पर भी गाज गिरने वाली है,किंतु बाकी बचे खुचे विभाग चुप हैं कि चलो अब सभी शतरंज के मोहरे एक ही थैली में आ गये!
बस इन्हीं छोटी-छोटी ख़ुशियों का नाम ही नव्य उदारवाद और कुटिल पूंजीवाद है!यदि हम ऐसे ही ख़ुश होते और चुप रहे तो मुल्क में भय भूंख और भ्रस्टाचार के अलावा और कुछ शेष नही रहेगा! मौजूदा अंधेरगर्दी और अधोगामी नीतियों के खिलाफ एकजुट संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है! किंतु यह संघर्ष भारतीय सभ्यता संस्कृति और किसी धर्म मजहब के खिलाफ नही होना चाहिये! बल्कि उद्दाम पूंजावाद के खिलाफ किसानों मजूरों और युवाओं का एकजुट संघर्ष होना चाहिये!
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