लोकतंत्र की मांद में,नेता नहीं गम्भीर।
भाषणबाज बहुत हैं,बातों के शमशीर।।
भारत के जनतंत्र को,लगा भयानक रोग।
सत्तापक्ष में घुस गए,सब दलबदलू लोग।।
नयी आर्थिक नीति से देश हुआ कंगाल।
काजू-किशमिश हो गयी,देशी अरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का,चो्ट्टे हुऐ फरार।
पक्ष विपक्ष में हो रही,फोकट की तकरार।।
भारत के बाजार में,अटा विदेशी माल!
डालर जी मदमस्त हैं,रुपया हुआ हलाल!!
अच्छे दिन उनके हुए,अफसर और दलाल।
मुठ्ठी भर धनवान भये,बाकी सब कंगाल।।
जात-पांत आधार पर,आरक्षण की नीति।
बिकट बढ़ीअसमानता,निर्धनजन भयभीत!!
आवारा पूँजी कुटिल,नाच रही चहुं ओर।
मल्टीनेशनल लूटते,दुष्ट मुनाफाखोर।।
बढ़ते व्ययके बजटकी,कुविचारित यहनीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशीके गीत !!
धीरे धीरे सब किये,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर,लदा माफिया राज।
ऊपर से नीचे तलक,बंधा कमीशन आज।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़े गये तटबंध।
आनन-फानन कर दिये,श्रमविरुद्ध अनुबंध !!
कोरोना के कोप से,धरती हुई श्मशान!
मनुज बड़ा कमजोर है,समय बड़ा बलवान!!
श्रीराम तिवारी
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