जिंदगी की राह में तभी ,
स्वार्थ का शमन हो गया!
ऊषा की लालिमा छटी,
भोर का आगमन हो गया !
जीवन का तमस ढल चुका,
मन मीत से मिलन हो गया !!
दिव्यता अलौकिक सजी
अंजुरी में पुष्प थे खिले।
देह जब धरा बन गई ,
विचार तब गगन हो गया ।।
शब्द ओस बिंदु बन गए,
छंद कलरव कर चले।
जिजीविषा अनन्य हो गई ,
ह्रदय नवनीत हो गया।।
संघर्ष पूर्ण मन्त्र सध गए ,
कर्म शंखनाद हो गए ।
तभी संघर्ष यज्ञवेदी पर ,
स्वार्थ का हवन हो गया।।
अहम का वहम मिट गया,
अस्तित्व सब वयम हो गया ।
जीवन संग्राम में मेरा जब,
खुद से मिलन हो गया।।
जिंदगी की राह में तभी ,
स्वार्थ का शमन हो गया!
श्रीराम तिवारी
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