बुधवार, 11 अगस्त 2021

🍁नास्तिक बनाम आस्तिक

जीवन में आस्तिक जीत जाता है, लेकिन तर्क में सदा नास्तिक जीतता है। आज तक कोई भी #आस्तिक नास्तिक से जीत नहीं सका है। यह सुनकर आपको हैरानी होगी। आस्तिक कभी ऐसा कहते नहीं, लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि कोई आस्तिक कभी #नास्तिक से तर्क में जीता नहीं है। जीत ही नहीं सकता। क्योंकि जो उसका आधार है, वह अतर्क्य है। वह जीतेगा कैसे? नास्तिक सिद्ध कर सकता है कि नहीं है। क्योंकि आपके सब तर्क तोड़े जा सकते हैं।

आस्तिक ने जितने तर्क दिए हैं सारे के सारे जमीन पर हैं, वे बंधे-बंधाए हैं, पिटे-पिटाए हैं; उनमें कुछ नया नहीं है। या तो तर्क यह है कि जगत का कोई बनाने वाला होना चाहिए। लेकिन नास्तिक पूछता है कि अगर हर चीज को बनाने वाले की जरूरत है, तो परमात्मा को बनाने वाला कौन? मुसीबत खड़ी हो जाती है। फिर परमात्मा पर भी और कोई परमात्मा। फिर उसके पीछे कोई और परमात्मा। इनफिनिट रिग्रेस--फिर अंतहीन खड्ड हो जाता है। उसमें कोई हल नहीं है।
कहीं भी जाओ, नास्तिक पूछेगा, फिर इसको किसने बनाया? और अगर आप कहो कि नहीं, जगत को बनाने वाले की जरूरत है और #परमात्मा को बनाने वाले की कोई जरूरत नहीं। तो नास्तिक कहता है, जब बिना बनाए परमात्मा हो सकता है, तो जगत बिना बनाए क्यों नहीं हो सकता? सीधी बात है, साफ बात है। जब आप मानते ही हो कि कोई चीज बिना बनाई हो सकती है, तो फिर कोई कठिनाई नहीं रही; जगत बिना बनाया हुआ है। तो आस्तिक बेईमान मालूम पड़ता है कि जगत के लिए वह यह नियम नहीं छोड़ता--बिना बनाया, और परमात्मा के लिए यही नियम छोड़ता है।
फिर नास्तिक कहता है कि जगत दिखाई पड़ता है। अगर नियम ही बनाना है तो यही नियम ठीक है कि जगत बिना बनाया, अनक्रिएटेड है। परमात्मा तो तुम्हारा दिखाई नहीं पड़ता। इसको व्यर्थ बीच में लाने की क्या जरूरत है? और आखिर में तुम्हें भी स्वीकार करना पड़ता है कि परमात्मा बिना बनाया हुआ है, तो बिना बनाई हुई घटना घट सकती है, तो जगत बिना बनाए क्यों नहीं घट सकता?
आस्तिक के पास कोई उत्तर नहीं है। सच तो यह है कि आस्तिक #तर्क देता ही नहीं। ये पंडित हैं, जो तर्क देते रहते हैं कि है। और पंडित नास्तिकों से हारते रहते हैं। नास्तिक से कोई आस्तिक पंडित जीत नहीं सकता। नास्तिक जिस भूमि पर चल रहा है, वहां तर्क सार्थक है। आस्तिक जिस भूमि पर चल रहा है, वहां तर्क का कोई संयोग ही नहीं, संबंध ही नहीं है। आप दूसरे की भूमि पर लड़ने जाएंगे--हारेंगे। लेकिन जीवन में आस्तिक जीतता है, नास्तिक हारता है।
एक भी नास्तिक बुद्ध के जीवन को नहीं पा सका। एक भी नास्तिक महावीर की गरिमा नहीं पा सका। एक भी नास्तिक जीसस की करुणा नहीं पा सका। एक भी नास्तिक कृष्ण जैसा नृत्य से भरा हुआ नहीं देखा गया है। नास्तिक जीवन में तो बुरी तरह हारता है। लेकिन बुद्धि में नास्तिक की बड़ी गति है। वहां उससे जीतने का कोई उपाय नहीं है।
अब सवाल यह है कि तर्क में जीतकर भी होगा क्या? मेरे पास लोग आते हैं। तो मैं उनसे कहता हूं कि मुझे कोई अड़चन नहीं है, तुम नास्तिक रहो, लेकिन तुम नास्तिकता से पा क्या रहे हो? वही मैं जानना चाहता हूं। अगर तुम्हें कोई महाशांति, कोई महान आनंद, कोई अपूर्व घटना घट रही है, तो तुम्हारी नास्तिकता बढ़े, ऐसी मैं प्रभु से प्रार्थना करूं; तुम ठीक रास्ते पर हो। तुम बिल्कुल बढ़े चले जाओ।
पर वे कहते हैं कि कहीं कोई #आनंद भी नहीं बढ़ रहा है, कोई #शांति भी नहीं बढ़ रही है, जीवन दुख से भरा है। लेकिन ईश्वर नहीं है। उनको मैं कहता हूं, तुम फिर से सोचो। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ईश्वर को अस्वीकार करने के कारण ही जीवन दुख से भरा है? क्योंकि जिन्होंने उसे स्वीकार किया है, उनका जीवन आनंद से भर गया है।
तो अब यह तुम सोच लो कि तुम्हें तर्क की निष्पत्तियां ज्यादा प्रिय हैं, या जीवन का आनंद ज्यादा प्रिय है? तुम्हें जीवन में एक अहोभाव चाहिए, या सिर्फ एक गणित का हिसाब चाहिए? अगर तुम गणित के हिसाब से तृप्त हो, तो ठीक है, ईश्वर नहीं है। और अगर तुम जीवन के हिसाब से अतृप्त हो, तो तुम्हें ईश्वर को खोजना ही पड़ेगा। तुम्हें अपने को किसी भांति बदलना ही पड़ेगा कि तुम उसके अस्तित्व को एहसास कर सको।
क्या रास्ता है फिर? जो लोग सहज उसके अनुभव को उपलब्ध नहीं होते, उनके लिए क्या मार्ग है?
उनके लिए पहली तो यह बात समझ लेने जैसी है कि ध्यान बुद्धि और तर्क पर न दें, ध्यान जीवन पर दें। इस बात की फिक्र करें कि मेरे जीवन की उपलब्धि क्या है?
एक आदमी प्यासा नदी के किनारे खड़ा हो और हम उसे कहें कि तू पानी पी ले, नदी बह रही है, तेरी प्यास मिट जाएगी। वह कहे कि कैसे प्यास पानी से मिट सकती है, इसका तर्क चाहिए। क्यों प्यास पानी से मिटेगी? इसका क्या प्रमाण है? पानी बना है हाइड्रोजन और आक्सीजन से। न तो हाइड्रोजन पीने से प्यास मिटती है, न आक्सीजन पीने से प्यास मिटती है। तो जब दोनों में ही प्यास मिटाने का कोई गुण नहीं है, तो दोनों के जोड़ से प्यास कैसे मिट सकती है?
वह तर्क में आपको हरा देगा। वह कहेगा, पानी का विश्लेषण करो। इसमें प्यास मिटाने वाली कौन-सी चीज है? न तो हाइड्रोजन से प्यास मिटती है, न आक्सीजन से प्यास मिटती है। दोनों से मिलकर पानी बना है। और जब दोनों से नहीं मिटती, तो दोनों के जोड़ से कैसे मिट सकती है? प्यास को मिटाने वाला गुण कहां से आ सकता है? तुम गलती में हो। तुम कुछ भ्रांति में पड़ गए हो।
लेकिन वह आदमी नदी के किनारे खड़ा हुआ प्यासा मरेगा। तर्क तो वह ठीक दे रहा है। और अगर लोगों ने तर्क करके ही पानी पीया होता, तो सारे लोग कभी के मर गए होते। लेकिन लोग तर्क करते नहीं, पानी पीते हैं और प्यास बुझा लेते हैं। क्योंकि लोग कहते हैं, तर्क से हमें प्रयोजन नहीं; प्रयोजन प्यास के बुझने से है। प्यास कैसे बुझती है, यह भी व्यर्थ है। प्यास को बुझाने वाला पानी में कौन-सा तत्व है, यह भी सार्थक नहीं है। हम इतना ही जानते हैं कि पानी पीते हैं और प्यास बुझती है।
आप अपने जीवन की फिक्र करें कि आपका जीवन दुख, संताप, गहन पीड़ा से भरा है। वह जो परमात्मा के जीवन में जीने वाला व्यक्ति है, वह दुख, पीड़ा और संताप से मुक्त हो गया। उसके जीवन में एक नृत्य, एक संगीत, एक सुगंध है। वही सुगंध, वही संगीत अगर आपके लिए आकर्षण बन जाए, खिंचाव बन जाए, तो आपके जीवन से नास्तिकता गिरेगी। और उसके होने के भाव का उदय होगा।
नास्तिक को मैं मानता हूं कि वह आत्मघाती है। आत्मघाती इसलिए कि वह उस सबसे अपने को वंचित कर रहा है, जिसके बिना जीवन का फूल पूरा खिल ही नहीं सकता। और मनुष्य-जाति का इतिहास इसका प्रमाण है। बड़े से बड़ा नास्तिक भी छोटे से छोटे आस्तिक के मुकाबले भी जीवन का फूल नहीं खिला पाया। बड़े से बड़ा नास्तिक छोटे से छोटे आस्तिक से भी जीवन में हार जाता है।
#बर्ट्रेंड_रसेल जैसा बड़े से बड़ा विचारशील नास्तिक भी रामकृष्ण परमहंस के मुकाबले क्या है? तर्क में #रामकृष्ण_परमहंस रसेल से जीत नहीं सकते; बुरी तरह हारेंगे। रसेल के सामने चारों खाने चित्त रामकृष्ण पड़ेंगे। कोई तर्क रसेल को राजी नहीं कर सकता। और रामकृष्ण जो भी कहेंगे, रसेल सभी कुछ खंडित कर सकता है। लेकिन यह बात ही मूल्यवान नहीं है। रसेल और रामकृष्ण आमने-सामने खड़े होंगे, तो रसेल का जीवन फीका है। उसमें कोई रस, स्निग्ध-धार नहीं है। एक गहन उदासी है। रामकृष्ण के जीवन में एक आभा है, एक पुलक है, एक ऊर्जा है, जो किसी महास्रोत से आती हुई मालूम पड़ती है।
हम अगर #बुद्धि का ही विचार कर रहे हैं, तो नास्तिकता सार्थक मालूम पड़ेगी। अगर हम जीवन का चिंतन कर रहे हैं, तो बहुत जल्दी हम प्रभु है, परमात्मा है, ऐसे आभास को उपलब्ध हो जाएंगे। जीवन पर ध्यान रखें।

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