मंगलवार, 31 अगस्त 2021

इस्लाम जैसा आक्रामक मजहबी संगठन हिंदुओं का कभी नहीं रहा .

 दुनिया के तमाम अखवारों में रोते बिलखते भूखे मुस्लिम बच्चे,इस्लामिक आतंकियों की शिकार मुस्लिम महिलाओं के रुदन करते अश्रूपूर्ण नेत्र चीख चीख कर कह रहे हैं कि जो कुछ आज सीरिया,यमन, सूडान, ईराक, अफगानिस्तान और गिलगित बलुचिस्तान में बर्बर अत्याचार हो रहा है उसके लिये इस्लाम नही,बल्कि इस्लाम के मदरसे और कट्टरपंथी कठमुल्ले जिम्मेदार हैं!

अफगानिस्तान सहित समस्त इस्लामिक जगत में जो हो रहा है,वह सीधे सच्चे अमन पसंद मुसलमानों को और खास तौर से मुस्लिम महिलाओं को कतई पसंद नही है! महबूबा मुफ्ती और आशियां अंद्रावी जैसी भारत विरोधी मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ एक हफ्ते के लिये अफगानिस्तान भेज दिया जाए, ये यदि वहां से सलामत लौट पाईं तो भी इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आ जाएगी!
भारतमें कुछ ईसाई मुस्लिम और कुछ लकीर के फकीर अधकचरे प्रगतिशील बुद्धिजीवी लोग गाहे-बगाहे आरएसएस (संघ) की तुलना आईएसआईएस,अल-कायदा तालिवान या खूँखार हक्कानियों से करते रहते हैं। किंतु यह तुलना बेहद अफसोशनाक,हास्यापद और भ्रामक है। यह तुलना बंदर और घड़ियाल की जातक कथा को भी मात करती है!
इस काल्पनिक तुलनात्मकता में वैज्ञानिकता और तार्किकता का घोर अभाव है। वेशक मूलरूप से तत्वतः सभी साम्प्रदायिक संगठनों में 'धर्मान्धता' ही उनका लाक्षणिक गुण है। RSS[संघ ]और आईएसआईएस में समानता सिर्फ इतनी है कि दोनों संगठनों में 'अक्ल के दुश्मन' ज्यादा हैं! इसके अलावा इनमें और कोई समानता नहीं है!
मजहबी आधार पर इस्लामिक संगठनों के निर्माण ,उत्थान- पतन का इतिहास उतना ही पुराना है,जितना कि इस्लाम का इतिहास पुराना है।जबकि 'हिंदुत्व' का कॉन्सेप्ट ही तब अस्तित्व में आया जब मुस्लिम शासकों ने 1000 साल तक हिंदुओं पर राज किया, उनका हमेशा कत्लेआम किया,'जजिया' कर लगाया!
अंग्रेजों के आने के बाद ज्यों-ज्यों हिंदुओं पर दोहरे अत्याचार बढ़ते गये और हिंदु-मुस्लिम को एक सा मानने वाले दारा शिकोह जैसे मुगल वलीअहद और उसके उस्ताद को जब औरंगजेब के इस्लामिक कट्टरवाद ने लील लिया और जब हजारों पद्मनियों को जलती ज्वाला में जौहर करना पड़ा ,जब तमाम हिंदू ग्रंथ जला दिये गये और पंडित कतल कर दिये गये,तब हिंदुत्व का विचार *स्वामी समर्थ रामदास* जैसे संतों के मानस पटल पर अस्तित्व में आया !
किन्तु 'तब भी जेहादियों की तरह हिंदुओं का संगठन बनने का कोई साक्ष्य नहीं है। बेशक छत्रपति शिवाजी,अहिल्या बाई होल्कर और पेशवा जैसे हिन्दू जागीरदारों ने जरूर संकट ग्रस्त हिंदुत्व को 'संजीवनी' प्रदान की ! किन्तु इस्लाम जैसा आक्रामक मजहबी संगठन हिंदुओं का कभी नहीं बना।
1925 में जबसे RSS की स्थापना हुई तबसे श्यामाप्रसाद मुखर्जी,दीनदयाल उपाध्याय जैसे अनेक हिंदुवादी नेता और संघ के लाखों कार्यकर्ता मारे गये!तमाम कश्मीरी पंडित भी हलाक कर दिये गये! मैने व्यक्तिगत तौर पर हमेशा कट्टर हिंदुवाद की निंदा की है और अभी भी पहलू खां के हत्यारों की घोर निंदा करता हूँ! किंतु यह व्यापक तौर पर तब तक संभव नही जब तक कि मैं घातक इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना भी खुलकर न करूं! यह संभव नही कि केवल हिंदूओं की निंदा करते रहो और इस्लामिक आतंकवाद पर चुप रहो!
जो लोग हिंदू संगठनों की तुलना ISI या तालिवान से करते रहते हैं, वे दोगले हैं! वे बेईमान हैं! क्या शाकाहारी गाय की तुलना हिंसक भेड़ियों से की जा सकती है? निरीह अहिंसक हिंदूओं की तुलना खूँखार मुस्लिम आतंकियों से करना सरासर पाखंड है!यह उनका दोगलापन है,जिसे हिंदुओं ने पहचान लिया और 2014 -2019 में केंद्रीय सत्ता से निर्वासित भी कर दिया !

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