वन बाग़ खेत मेढ़ चारों और हरियाली,
उदभिज गगन अमिय झलकावे है !
पिहुँ पिहुँ बोले पापी पेड़ों पै पपीहरा,
चिर बिरहन तन मन हुलसावै है !!
जलधि मिलन चली इठलाती सरिताएँ,
गजगामनि मानों पिया घर जावे है !
झूम झूम बरसें सावन सरस घन ,
झूलने पै गोरी मेघ मल्हार गावे है !!
श्रीराम तिवारी
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