वास्तव में संसद में जो अराजकता और कार्यपालिक गतिरोध नजर आ रहा है या जो भी कुछ चल रहा है उसके लिए कोई और नहीं बल्कि देश की जनता ही जिम्मेदार हैं ! खासतौर पर बंगाली साम्प्रदायिक धुर्वीकरण की राजनीति ज्यादा जिम्मेदार है ! बंगाल की दिग्भ्रमित जनता ने विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस -वामपंथ को राजनीतिक इतिहास के बियावान में छोड़कर बहुमत अराजक तृणमूलियों को दे दिया और विपक्ष में भाजपा को बिठा दिया..
अब घनघोर घमासान जारी है!
अब संसदमें लोकतांत्रिक विपक्ष की भूमिका के लिये कोई स्पेश नही बचा!जो हुड़दंग हो रही है वह संसदीय लोकतंत्र के लिये कलंक है! अब इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि पूरे सत्रमें एक दिनभी संसद सत्र शांति पूर्ण ढंग से नही चला ! लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभाके सभापति अपनी डबडबाई आँखों से अपने-अपने सदन में भीष्म द्रोण की तरह लोकतंत्र का चीरहरण होते देखते रहे!
बेशक भाजपा को लोकतंत्र की फिक्र नही है,बल्कि उनका दुर्योधन और शकुनि की तरह पाँडव रूपी विपक्ष को पूर्णत: खत्म कर देने की घातक कार्य योजना पर ध्यान केंद्रित है!
वैसे एक अच्छी बात यह है कि आखिरकार हमेशा सत्ता में रहने वाली कांग्रेस को भी तो मालूम हो कि विपक्ष की रुसवाई कैसी होती है ? उधर सत्तापक्ष के रूप में मोदी सरकार को भी मालूम हो गया होगा कि:-
''आँधियों 'के बेर बटोर लेने से घर की रसोई नहीं चलती"
चाहे संसद में सत्तापक्ष के छुद्र अहंकारी मदमस्त नेताओं की कर्कश चीख -पुकार हो चाहे संसद से त्र्णमूल कांग्रेस के सांसदों का निलंबन हो,चाहे माननीय स्पीकर की निहायत ही विनम्र अपील हो,ये सब तो संसदीय लोकतंत्र की आवश्यक बिडंबनाएं हैं। इनसे देश का नुक्सान भले ही कितना ही होता रहे,किन्तु वर्तमान 'बनाना गणतंत्र'में इस प्रकार की असंसदीय अराजकता से बचा ही नहीं जा सकता!
जब पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता का गठजोड़ सत्ता के बहुमत में हो और विपक्ष निस्तेज हो तो संसद में वही होगा जो हो रहा है !
*बनाना* लोकतंत्र में अपढ़ कुपढ़ जनता अव्वल तो सड़क छाप लोगों को नेता बना देती है,फिर उन्हें बहुमत से जिताकर सत्ता में बिठाती है! फिर संसद में उनसे किसानों मजदूरों के खिलाफ कानून बनवाती है! उन्हें पुलिस से पिटवाती है!गरीबी-भखमरी का रोना रोती है !
और 5 साल में यही जनता इतनी भिंदरया जाती है कि सारे दुख कष्ट भूलकर उन्ही सड़क छाप सूतियों को सत्ता में बिठा देती है! *बनाना* लोकतंत्र की माया है और माया महाठगनि हम जानि!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें