हमारी आँखें जो कुछ भी देखती हैं,यह जरूरी नही कि वह सत्य हो!हम आइने में अपना जो चेहरा देखते हैं वह हमारी सूरत का पूरा सच नही है! दरसल आइने की गुणवत्ता,आँखों की विजुवलिटी और देशकाल परिस्थितियाँ तय करती हैं,कि हम किसी वस्तु के आभासी रूप को कितना परफैक्ट देख सकते हैं!# ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या!
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