हरएक स्याह रात के बाद ,
नई सुबह जरूर आएगी।
तलाश है ज़िसकी मानव को,
वो मौसमे बहार फिर आएगी।।
दैहिक कामनाओं से इतर मन,
जब उठने लगेगा कुछ ऊपर,
सुख दुख के उस पार बहुत दूर,
छितिज में जिंदगी मुस्कराएगी।
समष्टि चेतना की अर्चना करोगे,
रूहानी इबादत करोगे तत्वम् असि,
संवेदनाओं की बगिया खिलखिलाएगी।
जिंदगी की तान सुरीली हो,
कदम ताल सधे हों राह में ,
तो जीवन व्योम में बज उठेंगे,
वाद्य वृन्द भोर गुनगुनायेगी!
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