आन बान सम्मान देश का,
प्रतिपल होता क्षरण देश का !
सत्ता में जो डटे हुए हैं,
उन्हें नहीं भय नाम लेश का।।
कारपोरेट कल्चर का मिक्चर,
सुपरमुनाफे के निवेश का।
सार्वजनिक उपक्रम सब डूबे,
निजीक्षेत्र के कपट वेश का।।
बहुराष्ट्रीय कंपनी के पौबारह
नवधनाड्य का काम ऐश का!
अन्नदाता किसान ने देखो
लंपट धूर्तों को ललकारा है!!
अमन चैंन साझा हो सबका,
तो सच्चा वतन हमारा है!
वर्ना नंगे भूँखे का कैसा वतन?
वो तो बोले सारा जहाँ हमारा है!!
आन बान सम्मान देश का !
प्रतिपल होता क्षरण देश का !!
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