शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

लगता है कि जनाब बुखारी जी को राजनीति का तेज बुखार चढ़ा हुआ है !



  नरेंद्र दामोदरदास मोदी से असहमत हुआ जा सकता है। भाजपा से असहमति या प्रतिष्पर्धा कोई अनैतिक आचरण नहीं है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वैचारिक मतभिन्नता कोई बेजा बात नहीं है।  एक निर्वाचित सरकार के काम-काज की आलोचना या समीक्षा कोई असंवैधानिक  आचरण नहीं है। किन्तु  इमाम बुखारी का - भारत जैसे विराट  लोकतांत्रिक देश के   निर्वाचित -प्रधानमंत्री  को पाकिस्तान के  टुच्चे नेताओं के साथ नथ्थी करते हुए   नीचा  दिखाना  कहाँ तक उचित  है ? क्या  इमाम बुखारी की यह हरकत देश को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने की - नकारात्मक  ध्रुवीकरण की प्रक्रिया  को और तेज  नहीं करेगी ? क्या भारत के  प्रधानमंत्री को न्यौता  न देकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री  के तलुवे चांटने   को लालायित -घोर साम्प्रदायिकता वादी तत्वों   की यह कुटिल चाल उग्र हिन्दुओं को विचलित नहीं करेगी ?  क्या नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति  के अतीत की साम्प्रदायिक  छवि  इस दुर्भाग्यपूर्ण -अपमानजनक स्थति के लिए अनंतकाल तक  उत्तरदायी रहेगी  ?  क्या उन्हें  भारत के  प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए देश की जनता  को कसूरवार ठहराया जा सकता है  ? क्या  इस विध्वंशक  सिलसिले को स्वीकार्य  करते रहने को भारत की जनता सदा-सदा के लिए अभिशप्त है  ?  वेशक  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को 'बुलौआ'  देकर इमाम बुखारी  ने भले ही कोई अनैतिक कार्य न किया हो ! किन्तु अपने ही देश के हमवतन प्रधानमंत्री को चिढ़ाने की क्या जरुरत  है ? क्या इमाम बुखारी को  अपने-पराये का ज्ञान नहीं है ? क्या वह धर्मनिरपेक्ष भारत, महान  प्रजातंत्र  भारत को पाकिस्तान जैसे साम्प्रदायिक और उग्रवादी देश से निम्नतर  समझता  है ? क्या उसकी इस हरकत से हिंदुत्व वादियों को अपनी ताकत बढ़ाने में मदद नहीं मिल रही ? क्या यह इमाम बुखारी  पूरी की पूरी देशभक्त मुस्लिम कौम  का अहित नहीं कर रहा  ?यदि वाकई   वह इस्लाम का बहुत बड़ा आलिम है या कौम का   बहुत  बड़ा लोकप्रिय  नेता है  तो  अपने बेटे को निरंकुश तरीके से  'बलीअहद'  बनाने  की तिकड़म क्यों भिड़ा रहा है ? यदि वह इतना ही  काबिल है , 'दीनो-ईमान'  का 'आलिम' है तो वह  लोकतांत्रिक तौर  तरीके से नायब इमाम चुनने का दायित्व  भारत के या दिल्ली के मुसलमानों  पर क्यों नहीं छोड़ देता  ?     भारत के मुसलमान  खुद अपनी  पसंद का नायब इमाम या शाही   'इमाम'  क्यों नहीं चुन सकते ? इस्लाम की किस किताब में लिखा है कि "अपन हथ्था -जगन नथ्था " ? जो बुखारी  अपने दामाद को  सांसद तो क्या विधायक भी नहीं  बनवा  सके, वो हिन्दुस्तान के २५ करोड़ मुसलमानो का नेता  बनने  का हक  कैसे  पा  सकता है ?  वेशक  किसी खास  मतानुसार यह उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो सकता है ,  किन्तु उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि   दुनिया भर में  डंका पीटकर अपनी व्यक्तिगत और  पोशीदा खुजलाहट दिखाने  का कोई हक़ नहीं है ! वेशक  हिन्दुत्ववाद का साम्प्रदायिक एजेंडा देश  हित  में नहीं है लेकिन  बुखारियों ,ओवेशियों और मुजाहदीनों  का एजेंडा   भी  देशभक्तिपूर्ण नहीं  है!साम्प्रदायिक नंगा नाच दिखाने की छूट  किसी को भी नहीं दी जा सकती। धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म सापेक्षता कदापि नहीं हो सकता।नायाब इमाम की ताजपोशी के बहाने जो कुछ हो रहा है 
                       उससे   लगता है कि  जनाब बुखारी जी को राजनीति  का तेज बुखार चढ़ा हुआ है !
          बड़े दुःख की बात है कि  कुछ  लोग इतनी सी बात अभी तक  नहीं समझ  पाये कि नरेंद्र  मोदी न तो साम्प्रदायिक हैं और न ही हिन्दुत्ववादी  हैं !  वास्तव में वे केवल  शुद्धतम सर्व सत्तावादी  हैं ,घोर पूँजीवाद  परस्त और अधिनायकवादी हैं। इसी की खातिर उन्होंने  कभी मीडिया को मैनेज किया ,कभी खुद को हिंदुत्व की कतारों का 'नायक' प्रचारित किया ,कभी  साधुओं-संतो -बाबाओं और शंकराचार्यों   को भी फुसलाया। कभी हिन्तुत्व की तान सुनाई।  कभी गुजरात की गौरव गाथा  गाई।  जब  मोदी जी को   लगा कि इतने से काम नहीं चलेगा तो उन्होंने विकाश और सुशासन  की  धुन बनाई ,जो आधुनिक भारतीय युवाओं को खूब  पसंद आई। चूँकि केंद्र में १० साल से  कांग्रेस नीत  यूपीए का महाभृष्टम् [कु] राज था ,अतएव उसे हराना  कोई मुश्किल काम नहीं था। चूँकि भाजपा और संघ परिवार ने राजनीती की गटर गंगा में मोदी जी को शिद्द्त धकेल  दिया था ,  इसीलिये   वे 'रिपट पड़े  सो  हर-हर गंगे हो गए।'  चूँकि अपनों को लतियाये वगैर सत्ता शिखर चढ़ पाना असंभव था. इसलिए उन्होंने आडवाणी ,मुरलीमनोहर या किसी भी अन्य समकालिक भाजपाई से ज्यादा आक्रामक हिंदुत्व वादी  रूप धारण  कर लिया । उन्होंने  मंदिर या  हिंदुत्व को त्यागकर अपनी ' भीष्म प्रतिज्ञा  '-'कांग्रेस मुक्त भारत' पर केंद्रित कर दी। इस संकल्प  को पूरा करने के लिए  ही मोदी जी ने -'ऊधो सब कारे अजमाए ', उन्होंने इतने सारे किरदार निभाये  कि  वे सुर्खरू होने में सफल हो गए। उसी का परिणाम  है  कि  अब  देश  की संसद में प्रचंड बहुमत प्राप्त भाजपा नीत  एनडीए का शासन है.  इस प्रचंड बहुमत की ओर  से  श्री नरेंद्र भाई दामोदरदास मोदी अब  भारत के प्रधानमंत्री हैं। उनसे यदि  इमाम  बुखारी को कोई परेशानी है , तो वे  उसका खुलासा करें। केवल उनके प्रति  अपनी मजहबी  खुन्नस का बैर  पालना  ओछी मानसिकता और मजहबी टुच्चापन है। यदि  बुखारी में संघर्ष का माद्दा है तो उनसे निवेदन है कि  वे  केवल मुसलमानों के खैरखुवाह बनने का नाटक न करें। हालाँकि  सबको पता है कि  वे किसी के भी खैरखुवाह नहीं हैं। उन्हें केवल अपने रुतवे  और अपने परिवार की फ़िक्र है। उनमे ज़रा भी अक्ल होती तो   वे तृणमूल  कांग्रेस - ममता बेनर्जी में या मुलायम सिंग में मुसलमानों की तरक्की देखने के  की गलती नहीं करते।  शायद वे नहीं जानते कि  देश के  न केवल  हिन्दुओं , न केवल मुसलमानों बल्कि  तमाम  मेहनतकश आवाम का  कल्याण तभी संभव  है जब  की देश की सरकारें अपनी मौजूदा विनाशकारी आर्थिक नीतियों  से तौबा कर लें।  चूँकि वैकल्पिक जनवादी नीतियों के लिए   देश  की  धर्मनिरपेक्ष  वामपंथ ताकतें  और संगठित मजदूर वर्ग  पहले से ही निरंतर संघर्षरत है. यदि बुखारी जी  में तनिक भी इंसानियत है तो  वे  इन हरावल दस्तों  के संघर्ष का  साथ दें।  वर्ना  इमाम बुखारी हो , शंकराचार्य हों , लामा हों ,बाबा हों  या कोई भी मजहबी मठाधीश हों -उन्हें  केवल अपनेअखाड़े  -धर्म-कर्म के धंधे तक ही सीमित रहना चाहिए ।यदि उन्हें राजनीति  से  भी कोई लगाव है तो वे  खुलकर केंद्र और राज्य  सरकार की उन नीतियों  के खिलाफ संघर्ष  करें , जिनसे  न केवल गरीब मुसलमान बल्कि गरीब हिन्दू या गरीब  बौद्ध भी शोषित-पीड़ित होरहे हैं।   जिन नीतियों  के कारण देश के चंद  अमीर और ज्यादा अमीर हो गए हैं। जिन नीतियों से  अम्बानी,अडानी,डावर,टाटा,बिरला,सिंघानिया और अन्य पूँजीपति दिन-दूने  रात चौगुने बढ़ रहे हैं।
                                         जिन नीतियों के कारण   आम आदमी -भृष्टाचार ,महँगाई ,हिंसा और आभाव में-चौतरफा   पिस  रहा है  ज़िन नीतियों के कारण देश की सम्पदा  देशी -विदेशी  लुटेरों को सौंपी  जा रही है, उन नीतियों से लड़ने के लिए इमाम बुखारी जी का स्वागत है।शंकराचार्य जी का स्वागत है ,सभी मंदिर-मस्जिद-गिरजा,गुरुद्वारे और पूजाघरों -[हालाँकि  अभी तो ये व्यभिचार और दौलाखोरी के अड्डे बने हुए हैं ]- में तैनात  'सेवादारों'  का आह्वान है कि  वे  अपने प्रभाव का उपयोग  'दरिद्र नारायण'के पक्ष में और शोषण की काली ताकतों के खिलाफ इस्तेमाल करें.  वेशक  बुखारी जी   या कोई और धर्मगुरु यदि  इन  अधोगामी नीतियों के खिलाफ लड़ते हैं ,  यदि शासक वर्ग या उसकी नकारात्मक नीतियों  के खिलाफ कोई आंदोलन छेड़ते तो  शायद वे  आज सर्वत्र आदर के पात्र होते ! अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम में  यदि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने की  बुखारी में  कूबत थी तो अपने हमवतन प्रधानमंत्री 'नरेन्र्द मोदी को न्यौता  नहीं देना तो कोरा  टुच्चापन  ही है ! यह नरेंद्र मोदी का नहीं , भारत के  प्रधानमंत्री का नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र का  अपमान है !कोई भी देशभक्त नागरिक बुखारी की इस हरकत को जस्टिफाई नहीं  कर सकता !  
                         
श्रीराम तिवारी

 

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