मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

हम भारत के लोग तो 'हीरो' या अवतार में ही अटूट विश्वाश करते हैं।



    प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका  यात्रा  के  दौरान अमेरिकी  राट्रपति  मिस्टर ओबामा  के साथ  लगभग  एक दर्जन के करीब  द्विपक्षीय  समझोते सम्पन्न हुए हैं। अधिकांस समझौतों और   करारों पर मत- मतान्तर   हो सकते हैं  किन्तु उनमें  जो सबसे खतरनाक और  भारत विरोधी समझोता है - "बौद्धिक सम्पदा पर उच्चस्तरीय कार्य समूह  का गठन और उसके पेटेंट निष्पादन अधकार''-   इस  करार  के बहाने अमेरिका ने  हम भारतीयों को जोरदार झटका दिया  गया है।इस संधि के बहाने अमेरिका को याने उसके उद्द्य्मियों को भारत में दवाओं के पेटेंट की व्यवस्था को उदार बनाने का अबाधित अधिकार प्राप्त हो जाएगा। यह  जानकारी भी अमेरिकी मीडिया को अमरीका के ही एक ज्ञान प्रसार संबंधी -गैर सरकारी संगठन -'नॉलेज  इकोलॉजी इंटरनेशलन 'के निदेशक मिस्टर जिमी  लॉव  ने दी है। उन्होंने खुद ही इस षड्यंत्र की पोल खोलते हुए उ  नके ही मुल्क अमेरिका  की सरकार को लताड़ लगाईं है। उन्होंने भारत को भी आगाह किया है कि इस संधि से भारत पर उदारता से दवा पेटेंट देने और दवाओं की अनिवार्य लायसेंस व्यवस्था के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का और कीमतों के निर्धारण का बेजा अधिकार तथा दवाव  डाले जाने की पूरी संभावनाएं हैं।  स्वाभाविक है कि  इसका खामियाजा देश की जनता को ही भुगतना होगा।
                                    हम भारत के लोग या  तो किसी  'हीरो' या किसी अ वतार   में या किसी डॉन  में ही अ टूट  विश्वाश करते हैं। हम  और हमारा मीडिया तो रूप और आकर में ही रमण  करता है।  चाहे वो कितना ही बड़ा ढोंगी या पाखंडी हो किन्तु हम अ पने 'नायक' की   चरण वंदना के लिए दुनिया  भर में बदनाम हैं।  जब कोई भारतीय  नेता  विदेश में होता है या किसी विदेशी से अपनी ही सरजमीं पर कोई ट्रीटी -ब्रीटी  करता है  तो   हम सभी  नत मस्तक होकर आत्ममुग्धता के वशीभूत हो जाया  करते हैं। परिणाम में हम   पाते  हैं  कि  सामने वाला तो हमें निचोड़ने की फिराक में   ही  है और हमारा  नेता अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व ऐंसा  पेश कर रहा  है कि  कोई सामन्तकालीन विदूषक भाँड  भी शर्मा  जाए।  हमारा  प्रिंट-छप्य -दृश्य,श्रव्य और सोशल मीडिया  यह देखने में जुट जाता है कि  हमारे नेता ने क्या पहना है ? हमारे नेता  ने क्या  खाया है ?  हमारे  नेता ने एक दिन में कितने कुर्ते बदले हैं ?उपवास किया है या नहीं ? उपवास के दौरान गर्म पानी पिया या ठंडा ?हमारे नेता को सुनने वालों ने तालियां बजाईं या नहीं ? कितने बार तालियां बजी? ? हमारे नेता ने ढोलक या बांसुरी क्यों बजाई ? हमारे नेता ने किसी  बच्चे के कान क्यों ऐंठे ? यह मात्र  भारतीय  मीडिया और भारतीय बुद्धिजीवियों की मानसिकता का ही  मापदंड नही है   . यह केवल वैयक्तिक चापलूसों या स्वार्थियों के कदाचरण का सवाल नहीं है यह तो देश के सम्पूर्ण आवाम और उस राजनैतिक   विपक्ष का भी सवाल है जो केवल नकारात्मक निंदा या उथली आलोचना के  सिंड्रोम से पीड़ित है।                                                                                                                          
                                   हमारा नेता विदेशी जमीन पर  अपने ही पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों या नेताओं को कितना जलील करता है ?वह भावनाओं में बहकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को भी तैयार  हो जाता है। हम भारत के जनगण  चाटुकारिता के लिए दुनिया भर  में बदनाम हैं. इसलिए हम केवल 'यस वास ' या  यस सर में विलीन हो जाते हैं. हम  बिना  आगा -पाछा सोचे सब कुछ  अपने ' नेता' या तारणहार के भरोसे   छोड़ दिया करते हैं। लेकिन अमेरिका  के पूंजीपतियों की ,मीडिया की और एनजीओ की एक खूबी है कि  वे अपने देश के हितों की कीमत पर व्यापार नहीं करते।  भारत का उद्द्यमी, एनजीओ या मीडिया तो  वास्तव में 'धंधेबाज' ही है। वो अपने प्रधानमंत्री  के साथ अमेरिका जापान यूरोप या आसियान  में जाकर धंधे की बात तो  करता  है ,उनका समर्थन पाकर  अरबपति से खरबपति भी बन  जाता है।  वह अफसरों को रिश्वत देता है। वह चुनाव में उन  नेताओं  या पार्टियों  को ज्यादा चंदा देता है जो  सत्ता में आने के बाद उसके इशारों पर नाचे उसके साथ मिलकर देश की आवाम  को  उल्लू बनाने में जुट जाता है।  इन दिनों ये तत्व मोदीजी के इर्द-गिर्द ज़रा ज्यादा ही मंडरा रहे हैं। .
                              श्रीराम तिवारी 

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