महँगाई में दुर्गा माता ।
दीन -दुखी कुछ समझ न पाता ।।
चेहरे बुझे -बुझे हों जिनके ।
गरवा रास उन्हें क्या भाता ?
दुर्लभ ईंधन महँगा राशन ।
मेहनतकश क्या सहज ये पाता ?
शुम्भ निशुम्भ अब शासक हो गए ।
रक्तबीज अब रिश्वत खाता ।।
भूंख कुपोषण लाचारी में।
निर्धन जन के दिन भये लम्बे।।
गाँव गली दंगा फैलाते ।
जाति - धरम के नित नए पंगे ।।
लक्ष्मीपति अब भये मधु कैटभ ।
जय -जय -अम्बे ! जय -जगदम्बे।। !
मंत्री नेता अफसर बाबू।
इनपर नहीं किसी का काबू।।
भले -बुढ़ापा आ जाए पर।
पदलिप्सा पर नहीं न काबू ।।
झूंठे नारे झूंठे वादे।
झंडे -डंडे भीड़ -लबादे।।
सत्ता के पलड़े पर भारी।
जाति -धर्म के नित नए -दंगे।
अंधे पीसें कुत्ते खाएं - माँ !
जय-जय अम्बे -जय जगदम्बे।।
श्रीराम तिवारी
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