शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014




     सुशासन और विकाश  के काल्पनिक व्यामोह में  खुद की  ही पीठ थपथपाने में व्यस्त देश की  'मोदी सरकार' और मध्यप्रदेश की 'शिवराज सरकार'  को  न्याय पालिका  की अभिव्यंजनात्मक निंदा का मतलब ही समझ नहीं आ रहा  है।   विगत दिनों मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भृष्टाचार के   कतिपय मामलों  में लोकायुक्त  की  बरसों से पेंडिंग अनुशंषाओं पर प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा  कोई  कार्यवाही नहीं किये जाने  के लिए फटकार् लगाईं  थी। आज खबर है की सुप्रीम कोर्ट ने 'मोदी सरकार ' को जमकर  फटकार लगाईं है। क्या  सुब्रमण्यम स्वामी जैसे चाटुकारों   को न्याय पालिका के सम्मान की तनिक भी चिंता है ?'पर्यावरण और वन सम्पदा के दुरूपयोग' से संबंधित  उस फाइल को सरकार ने दो महीने से क्यां दबा रखा है ?सुप्रीम कोर्ट की इतनी कड़ी फटकार की "कुम्भकर्ण है ये [मोदी]सरकार "  यहाँ ब्रेकिट  में मोदी शब्द मेने जोड़ा है !   क्या  स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐंसा कोई और उदाहरण है।   क्या यह नैतिक कदाचरण और असंवैधानिक कृत्य नहीं है   ?

                       श्रीराम तिवारी  

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