बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

वर्तमान युग की 'पटाखा दीवाली' पर बारूदी दुर्गन्ध का आतंक छाया हुआ है। कैसे कहूँ कि शुभकामनायें !



    अयोध्या के युवराज श्रीराम चन्द्र ,अनुज लक्ष्मण और धर्मपत्नी जानकी - जब चौदह वर्षीय - 'वनवास' से  अवधपुरी -लौटे होंगे तो उस रोज कार्तिक की अमावस्या रही होगी। अँधेरी शाम  या गोधूलि वेला में अयोध्या के नर-नारियों  ने -उनका हार्दिक अभिनंदन किया होगा। चूँकि  श्रीराम ने -२० दिन पहले ही लंका के राजा रावण को युद्ध में मार गिराया था इसलिए अवध की  जनता ने और खास तौर   से  खाते -पीते घरानों  ने  स्वागत द्वार भी  लगाए गए होंगे। जो और ज्यादा सक्षम होंगे उन्होंने घी के दिए भी जलाये होंगे !  यह  परम्परा दीपावली पर्व के रूप में - अयोध्या से  निकलकर - पूरे आर्यावर्त याने- उत्तर भारत में और कालांतर में दक्षिणापथ -याने दक्षिण भारत में भी लोकमान्य होती चली गई।  प्रारम्भ में जो भारतीय -कबीले या समाज  इस परम्परा से जुड़ने में लेट हो गए  ,कालांतर में उन्होंने भी किसी न किसी बहाने अपने समाज और परिवार को इस दीवाली पर्व से जोड़ ही  लिया।किसी के धर्मगुरु का यह जन्म दिन हो गया ,किसी का मरण दिन हो गया और किसी को तो 'ज्ञान' या बोध भी इसी  अमावस्या को ही प्राप्त हुआ होगा।    इसी तरह अन्य भारतीय त्यौहार - होली , रक्षाबंधन ,दसहरा  , ओणम ,बिहू एवं  रथयात्रा इत्यादि  त्यौहारों के  अस्तित्व में आने की भी अनेक मान्यताएं और कहानियां हैं।मानव सभ्यता के उत्तरोत्तर विकाश की उच्चतर अवस्था में -  पुरातन -मदनोत्सव ,वसंतोत्सव  तथा अन्य  वैदिक पर्व  क्यों लुप्त होते चले गए  जबकि वे  प्रकृति और मानव समाज  में तादतम्य  स्थापित करने में सक्षम थे।
           आज की युवा पीढ़ी को मालूम हो कि  बारूद की खोज या पटाखों के निर्माण से  भी हजारों साल पहले से 'दीयों की दीवाली'  मनाई जाती रही है। लेकिन तब यह वास्तव में 'दीपावली' ही थी।   वर्तमान युग की इस जान लेवा -'पटाखा  दीवाली'  पर  बारूदी दुर्गन्ध का  आतंक छाया हुआ है। हवा में बारूदी दुर्गन्ध  'महक' रही है। अस्थमा ,फेफड़ों का इन्फ़ेक्सन , सर्दी -खांसी और क्षय रोग से पीड़ित नर-नारी इसकानफोड़ू और नाक सिकोडू    त्यौहार सेआतंकित  रहते हैं।   यदि  वह कोई अस्थाई मजदूर,गरीब किसान या आर्थिक रूप से  विपन्न श्रद्धालु है तो  यह पटाखा - दीवाली  उसके जीवन की भयानक  अमावस्या ही है।

          धर्मभीरु  व्यक्ति ,अंधश्रद्धालु  समाज और मजहबी अफीम में मस्त-किंकर्तब्यविमूढ़ जनता अपनी मानसिक ,शारीरिक और आत्मिक गुलामी  के दलदल में पहले से ज्यादा  गहरे धसी  हुई है।

    चूँकि भारत में तो दीपावली या दीवाली अब सभी की है तो  इस सर्वसम्मत  पर्व पर सभी को लख -लख  बधाइयाँ। यदि इस पर्व  का तात्पर्य - आत्मप्रकाश ,सचेतनता या आंतरिक- बाह्य जीवन  के  'उजास' से है  तो मेरी ओर  से भी  सभी मित्रों ,शुभचिंतकों और हितैषियों को इस महानतम पर्व - 'दीपोत्सव' की अनेकानेक   शुभकामनाएं !

            श्रीराम तिवारी


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