दुनिया में सबसे बड़ा, है भारत गणतंत्र।
गण को उल्लू बना कर , मौज करे धनतंत्र।।
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भारत के जनतंत्र को ,लगा भयानक रोग।
राजनीति में लग रहा ,जाति -धर्म का भोग।।
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आदमखोर पूँजी करे ,श्रम शोषण पुरजोर।
सत्ता -सारथि बन रहे ,चोर-मुनाफा खोर।।
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बढ़ते वयय के बजट की , बनी आर्थिक नीति।
ऋण पर ऋण लेते रहो ,यही सनातन रीति। ।
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अानंन फानन बिक रहे ,खेत-खनिज -वन -नीर।
पुनः विदेशी हाथ में ,भारत की तकदीर।।
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ओने-पौने बिक चुके ,बीमा टेलीकॉम।
तेजी से अब हो रहे ,राष्ट्र रत्न नीलाम।।
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लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा माफिया राज।
ऊपर से नीचे तलक ,है रिश्वत का राज।।
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मल्टिनेसनल संग करें ,नेता जी अनुबंध।
नव निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तटबन्ध।।
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खूब खुशामद हो रही , मान मनौवल शाल।
विगत गुलामी में नहीं ,इनकी मिटी खुजाल।।
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नयी आर्थिक नीति पर ,खड़े है नए सवाल।
दुनिया के बाजार में , क्यों भारत बेहाल।।
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{ नयी आर्थिक नीति के दोहे - श्रीराम तिवारी }
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