सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

{ नयी आर्थिक नीति के दोहे - श्रीराम तिवारी }



         दुनिया  में  सबसे बड़ा, है भारत गणतंत्र।

        गण  को उल्लू बना कर  , मौज करे  धनतंत्र।। 


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      भारत के जनतंत्र को ,लगा  भयानक रोग।

     राजनीति  में  लग रहा  ,जाति -धर्म का  भोग।।


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    आदमखोर पूँजी  करे  ,श्रम  शोषण पुरजोर।

    सत्ता -सारथि बन रहे ,चोर-मुनाफा खोर।।


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बढ़ते वयय के बजट की , बनी  आर्थिक नीति।

ऋण पर ऋण लेते रहो ,यही  सनातन  रीति। ।

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अानंन फानन बिक रहे ,खेत-खनिज -वन -नीर।

पुनः विदेशी हाथ में ,भारत की तकदीर।।


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  ओने-पौने बिक चुके ,बीमा टेलीकॉम।

    तेजी से अब हो रहे ,राष्ट्र रत्न नीलाम।।


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लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा  माफिया राज।

ऊपर से नीचे तलक ,है रिश्वत का राज।।

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मल्टिनेसनल संग करें ,नेता जी अनुबंध।

नव निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तटबन्ध।। 

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    खूब खुशामद हो रही , मान मनौवल शाल।

   विगत  गुलामी में नहीं  ,इनकी मिटी  खुजाल।।

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नयी आर्थिक नीति पर ,खड़े है नए सवाल।

दुनिया के बाजार में , क्यों भारत बेहाल।।

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      { नयी आर्थिक नीति के दोहे -  श्रीराम तिवारी }








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