शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

इन बेचारों को भी कहाँ पता था कि घर का जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध होने जा रहा है।





       लगभग तीन साल पहले जब तालिवानियों  ने एक १४ साल की लड़की  के  सिर  में गोली मारी तो दुनिया ने इस का संज्ञान लिया। उस लड़की को  महज इसलिए  गोली मार दी गई  ,क्योंकि वो पाकिस्तान के घोर  पुंसवादी और कबीलाई समाज के  पख्तुरवा  इलाके में बालिकाओं  के पढ़ने-लिखने  की वकालत किया करती थी। इस लड़की  को समय पर इंग्लैंड में- सही इलाज मिला और बच गई। जब उसे होश आया तो उसने फिर से वही अपना संकल्प दुहराया। उसकी प्रगतिशील  और  कट्टरतावाद विरोधी  वैचारिक प्रतिबध्दता को यूएन समेत सारे संसार ने सराहा। उसे कई सम्मान  भी दिए गए। वह संयुक राष्ट्र में बालिकाओं की शिक्षा  की आई कान बना दी  गई। जब तालिवानियों  ने उससे माफ़ी मांगी और वतन [पाकिस्तान] लौटने की गुजारिश की तो उसने मना कर दिया। आज  वह पाकिस्तान  की आवाम और  सरकार के लिए भी "मलाला यूसुफ जई "  हो चुकी है। अब वह एक सेलिब्रटी हो गई है।  जब  उसे भारत के 'कैलाश  सत्यार्थी के  साथ नोबल पुरस्कार  के लिए नामित किया गया  तो  मलाला के नाम पर तो  किसी को कोई अचरज नहीं हुआ ,किन्तु कैलाश सत्यार्थी के बारे में जरूर  मदर टेरेसा या अमर्त्य सेन  के साथ  हुए व्यवहार की पुनरावृत्ति  महसूस की गई है।
                                             जब कैलाश सत्यार्थी को शांति का संयुक्त नोबल पुरूस्कार दिए जाने का ऐलान हुआ तो अधिकांस  चेहरों पर  प्रश्नबाचक चिन्ह जड़े  हुए देखे गए। किसी राज्य सरकार ने ,केंद्र सरकार ने या  सामाजिक  संगठन ने उन्हें  शायद ही गंभीरता से लिया हो। हालाँकि  नोबेल पुरस्कार पाना कैलाश सत्यार्थी के  संकल्प का   अभीष्ठ  नहीं था।  वे अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव जैसे विदूषक भांड भी नहीं  हैं  कि  जंतर- मंतर पर या दिल्ली के रामलीला मैदान पर दुनिया को अपनी नौटंकी दिखाते। यदि सत्यार्थी का मिशन दुनिया भर के बच्चों का बचपन लौटाने की जिद तक न होता  या वे सत्ता के गलियारों में भगवा दुपट्टा डालकर घूमते  होते तो शायद एक आध पद्मश्री  तो अब तक उन्हें अवश्य ही मिल गया होता। कांग्रेस से तो किसी को भी तब तक  उम्मीद नहीं  जब तक उनके ' हाई कमान'की नजरे इनायत न हो जाए।   चूँकि  कैलाश से  न तो चापलूसी  की उम्मीद है और न ही वह भाजपा की 'भजन मण्डली' में  भजन गए सकते हैं । इसलिए  भाजपा की मोदी सरकार  के द्वारा कुछ संज्ञान लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता। यह भी कहा जा सकता है कि  उन्हें तो सिर्फ ५ महीने ही सत्ता में आये  हुए हैं।  अब बारी है  मध्य प्रदेश  की शिवराज सरकार  की जिन्हे न केवल १२ साल हो चुके हैं बल्कि  कैलाश सत्यार्थी  नामक व्यक्ति तो  उनके इलाके याने विदिशा में ही जन्मा है। 
                                                    अब ये तय है कि  न केवल भारत सरकार बल्कि मध्यप्रदेश सरकार  भी  कैलाश सत्यार्थी को बड़े-बड़े सम्मान देकर अपनी जग हंसाई कराने से  नहीं  चूकने  वाली? दुनिया वाले कहते हैं तो कहते रहें कि  कल तक कहाँ थे ?  वेशक इन बेचारों को भी कहाँ  पता  था कि  घर का जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध होने जा रहा है।  ये तो उन्ही को  सम्मानित करते हैं जिनकी सूची संघ बनाता है जो शख्स चालीस साल से भोपाल, विदिशा,झाबुआ ,मन्दसौर ,जबलपुर और ग्वालियर में मारा -मारा फ़िरता  रहा  हो उसे अब आप रातों रात मध्यप्रदेश का या देश का आई कान  बना लें तो इसमें आप की   क्या थराई  ? ये तो नोबल कमिटी  की महानता है कि  उसने ;-

                       हीरा पड़ा बाजार में, रहा धुल लपटाय। 

                      बहुतक  मूर्ख चले गए ,पारखी लिया  उठाय।।  

                                               श्रीराम तिवारी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें