मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

'लव -जेहाद' की चर्चा - वैज्ञानिक विमर्श से कोसों दूर है।

 भारत में विदेशियों के आक्रमण और विदेशी गुलामी के दौर में भी ये तथाकथित 'लव -जेहाद' नामक बीमारी हुआ करती थी।   सोलहवीं सदी में मांडव [धार] का तुर्क मुसलमान राजा - बाज बहादुर नरवर की राजकुमारी  के रूप सौंदर्य ही नहीं बल्कि उस राजकुमारी की कोकिलकंठी गायकी पर भी  फ़िदा  था। उसने रूपमती को जबरन अपने हरम में डाल  लिया। जैसा कि  दुनिया में चलन है कि 'समर्थ को नहीं दोष गुसाईं ' अतः जब  बाज बहादुर ने उसे अपने हरम डाला तो  दिल्ली के बड़े सुलतान ने उससे रूपमती को अपने हरम के लिए माँगा ,नहीं देने पर -बाज बहादुर और रानी रूपमती को आत्महत्या करनी पड़ी। इस घटना में दो मुस्लिम आक्रांता  और एक हिन्दू अबला नारी पात्र मौजूद  हैं।   चूँकि बाज बहादुर  इस जंग में मारा गया इसलिए  उसको इतिहासकारों  ने   एक 'रसिक प्रेमी' मानकर हीरो बना दिया गया। जबकि उसने भी आखिरकार  एक हिन्दू गरीब  लड़की का  जबरन शील हरण ही किया था.गुलामी के इतिहास में इस तरह की अनगिनत घटनाएँ हुईं हैं। ततकालीन समाज में -गैर हिन्दुओं की अधिकांस उपज- इन्ही बलात दुर्घटनाओं का परिणाम है।
              इस अनाचारी परम्परा   के कारण हिन्दू ओरतों को  उतसर्ग या जोहर भी  करने पड़े  हैं।  रानी पद्मावती  को ही नहीं बल्कि अनेक हिन्दू नारियों को  उस दौर में शासकों की हवश  से बचने के लिए 'अग्नि प्रवेश ' करना पड़ा था।  ओरछा के राजा के दरवार की राजनर्तकी 'रायप्रवीण' की भी करूँण  गाथा है इस सबसे निराली है  ।  रायप्रवीण के रूप सौंदर्य और उसकी नृत्यकला की अनुगूंज जब मुग़ल दरबार में पहुंची तो दिल्ली के 'तख़्त' से   आदेश हुआ कि  'फ़ौरन से पेश्तर उसे मुग़ल हरम में पेश किया जाए ", चूँकि बुंदेलखंड के राजा स्वाभिमानी और वीर थे किन्तु उनकी वीरता मुग़ल सल्तनत  के सामने ज्यादा देर नहीं टिक सकी। जब मुग़ल सिपाही रायप्रवीण को डोली में   बिठाकर दिल्ली पहुंचे तो उसने शहंशाह को लिखा ;-

    विनती  राय प्रवीण की ,सुनिए शाह सुजान।

    जूँठी  पातर  भकत  है , बारी -बायस -  श्वान।  

अर्थ ;- हे शहंशाह !आप विद्द्वान हैं ,मेरी विनती सुने ! जूंठी पत्तल केवल सूअर,कौआ और कुत्ते ही चांटते  हैं।

 अर्थात -हे सम्राट !  मैं किसी और की हो चुकी हूँ ,मुझे जूँठन समझकर ही  छोड़ दीजिये। [ क्योंकि  आप तो उनमें से अवश्य ही  नहीं हैं !] इतिहासकार  मानते हैं की दिल्ली के शहंशाह ने 'रायप्रवीण' को बाइज्जत बाअदब ओरछा वापिस भेज दिया था।  इस घटना से यह तो सिद्ध होता है की ताकतवर और  ऐयाश पुरुष को तो  किसी भी धरम - मजहब कीलड़की या औरत से परहेज नहीं। उसे रोकने वाला  पर लव जेहाद का आरोप जड़ने वाला   भी कोई नहीं।  क्योंकि वास्तव में   अकबर,सलीम,,बैरमख़ाँ,शाह रंगीले,जैसे सैकड़ों उदाहरण हैं  जो इस्लाम के लिए नहीं  बल्कि अपनी हवश के लिए ओरत खोर माने गए हैं। सामन्तकाल से अब तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। सिर्फ बोतल बदल दी जाती है शराब वही है। इस दौर में लव जेहाद की चर्चा  से चली है जो वैज्ञानिक विमर्श से  कोसों दूर है।   

 कुछ लोग  जो नहीं मानते की  लव-जेहाद  भी  कोई मुद्दा है ।  कुछ  लोग अपने मजहब से बाहर की लड़कियों या ओरतों पर नजर रखते हैं वे चाहे किसी भी धर्म-मजहब के हों यदि वे किसी के परिवार को या समाज को अपनी हवस के लिए शर्मशार करेंगे तो क्या यह सही है ? सिर्फ यह कह  देना की 'मिया बीबी राजी -तो क्या करेगा काजी '  उचित है ?  वेशक लव-जेहाद  न सही किन्तु इस विमर्श में ऐंसा तो अवश्य है कि  जिस वर्ग की लड़की को फुसलाया जाता है या धर्म -परिवर्तन  की तिकड़म बनाई जाती है उसमे अक्सर छद्मवेशी  बदमाश और हवश का पुजारी  ही क्यों निकलता है।  यदि कोई नेता [जैसे की शाहनवाज हुसेन,मुख्तार अंसारी ] ,कोई फ़िल्मी एक्टर , डॉ ,प्रोफेसर ,कलेक्टर , इंजीनियर या  सामाजिक  कार्यकर्ता यह 'लव-मेरिज' या 'प्रतिलोम विवाह' करता  है  तो  किसी को कोई  परेशानी नहीं होती। किन्तु जब कोई  गुमराह -आतंकवादी या गुंडा यह दुस्साहस करता  है तो उसे अपने मजहब की आड़ लेनी पड़ती है. मजहब की शह  पाकर वह गुनाहगार लम्पट 'धर्मयोद्धा'बन जाता है। वह लड़की के समाज वालों ,परिवार वालों को लतियाने में कभी कभार जब खुद ढेर हो जाता है तो उस लड़के के समाज जन पगला जाते हैं। उनका पागलपन ही 'लव -जेहाद ' है।  शायद ऐंसे   ही  लम्पट  लुच्चों का समर्थन करने  वालों में वे भी शामिल हो जाते हैं जिन्हे लगता है कि  'धर्मनिरपेक्षता खतरे में है 'इसलिए वे भी  समाज के  इस अनैतिक कृत्य को जायज ठहराने  लगते हैं। इनमे वे भी हैं जो अपने आप  को प्रगतिशील  और वामपंथी समझते हैं। मार्क्सवाद तो इस लव-जेहाद का समर्थन  कदापि नहीं करता।
  जो चीज मजहबी वैमनस्य या मजहबी संघर्ष पैदा करे वो तो 'वर्ग संघर्ष ' के खिलाफ ही मानी जाएगी। इस मायने में लव -जेहाद तो 'वर्ग संघर्ष' का भी शत्रु हुआ। मतलब साफ़ है कि  ये घटनाएँ सर्वहारा वर्ग  की एकता को खंडित  करती हैं। ये लव-जेहाद या कोई और  झगड़े की जड़ 'वर्ग संघर्ष' की धार को भौंथरी करती है। 
                     आजादी के ६७ साल बाद यह समस्या किस रूप में दरपेश हो रही है इसे समझने के लिए यह एक उदाहरण पर्याप्त है।   खरखौदा थाना -जिला मेरठ [उत्तरप्रदेश] के एक गाँव की वह   लड़की   -  जिसके साथ विगत अगस्त में दुष्कर्म और  गैंग रेप   की वारदात हुई थी -अब वो  स्वयं ही इस  वारदात से इंकार कर  रही  है। उस तथाकथित पीड़िता ने अब  अपने ही माता-पिता  और परिवार वालों को जेल भिजवाने का पूरा इंतजाम कर दिया है।हिंदुत्व वादियों का दवाव  ठुकराकर  वह अपने प्रेमी कलीम के साथ - 'लव-जेहाद ' पर  जाने को तैयार हो गई  है।

        अभी तक तो 'लव-जेहाद' के प्रसंग में दो ही नजरिये दरपेश हुए हैं। एक नजरिया  उनका  है  जो कि अपने आपको  हिन्दुत्ववादी या राष्ट्रवादी कहते हैं। उनका मानना है की अलपसंख्यक- मुस्लिम समाज के युवा  एक विचारधारा के तहत हिन्दू समाज की लड़कियों  या ओरतों को बरगला कर प्यार के जाल में फंसा कर उनका धर्म परिवर्तन किया  करते हैं।  उनके मतानुसार यह इस्लामिक वर्ल्ड का वैश्विक एजेंडा है।   इसीलिये 'लव-जेहाद' के विरोध के  बहाने ये हिन्दुत्ववादी - तमाम  हिन्दुओं को संगठित कर हरेक चुनाव में साम्प्रदायिक आधार पर - बहुसंख्यक वोटों का  भाजपा के  पक्ष में  ध्रवीकरण करने के लिए मशहूर हैं।  दूसरा नजरिया उनका है जो अपने आप को  न  केवल   प्रगतिशील  -धर्मनिरपेक्ष   बल्कि  बुद्धिजीवी या साम्यवादी भी समझते हैं। इनका  मत है कि प्यार -मोहब्बत पर कोई पहरेदारी नहीं की जा सकती। यह स्त्री -पुरुष अर्थात 'दो सितारों का जमी पर  मिलन'  जैसा ही है।   ये श्रेष्ठ मानव  - समतावादी  विज्ञानवादी   प्रगतिशील - धर्मनिरपेक्ष प्राणी कहलाते हैं। ये  निरंतर उन  तत्वों से  संघर्ष करते रहते हैं ,जो राजनीति  में धरम -मजहब का घालमेल करते हुए  पाये जाते हैं। किन्तु जब यही काम अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा होता है तो बगलें झाँकने लगते हैं।  पश्चिम बंगाल के वर्धमान  जिला अंतर्गत - खगरागढ़  के  मकान में हुए बम विस्फोट और   उस घटना  स्थल पर- जिसमे -वहां बम बनाते हुए मारे गए और   घायल तृणमूल के  नेता पाये गए  -यदि वे  हिन्दू होते तो सोचो  क्या गजब  हो गया होता ? चूँकि वे अल्पसंख्यक वर्ग के थे. इसलिए  अपनी धर्मनिरपेक्षता के वशीभूत  किसी ने भी  उनकी कोई आलोचना नहीं की। यही वजह है कि  एक बेहतरीन विचारधारा  होने के वावजूद बंगाल में वामपंथ को  गहरा आघात पहुंचा है और एक फ़ूहड़ -पाखंडी महिला के  भृष्टाचार  को नजरअंदाज कर  वहां की जनता उसे ही  बार-बार चुनाव  जिता  रही है। खैर यह मामला यही छोड़ मैं पुनः 'लव -जेहाद' पर आता हूँ।

     खरखौदा गैंग  रेप काण्ड के विमर्श में -  सरसरी तौर  पर उपरोक्त  दोनों  ही धड़े अपने-अपने स्थान पर सही लगते हैं। लेकिन 'लव-जेहाद'  के असर से  खरखौदा गाँव की  लड़की ने जब अपने माँ -बाप को  ही आरोपी बना दिया  तो उपरोक्त दोनों धड़े भी  कठघरे  में खड़े  हो चुके  हैं। उस लड़की ने जो नया स्टेण्ड लिया है उससे हिन्दुत्ववादी  संगठन और भाजपा नेता  तो  'बैक  फुट ' पर आ  ही गए हैं।  किन्तु  उस लकड़ी  के द्वारा -  अपराधियों  को  बचाने और माँ -बाप को उलझाने  से  सिद्ध होता है कि 'लव-जेहाद ' न केवल  एक  हकीकत है बल्कि अब वह एक लाइलाज  नासूर भी बन   चुका  है। . निश्चय ही ' यह लव-जेहाद' नामक विमर्श  सभी भारतीयों के लिए   गम्भीर  चिंता का विषय   है।   इससे यह भी सिद्ध होता है कि'लव-जेहाद' नामक  इस विषय को  प्रतिबद्धता से परे   होकर -निष्पक्ष और  सापेक्ष सत्य के अनुरूप विश्लेषित  किये  जाने की आवश्यकता है।
   

                      ;-श्रीराम तिवारी
 

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