रविवार, 12 अक्तूबर 2014

डाकुओं,नक्सलियों या स्थानीय दवंगों के आतंक से मुक्ति पाने की उम्मीद तो अभी खुद मंत्रियों ,कलेक्टरों और पुलिस के ' सिघमों' को भी नहीं है।

     

         केंद्र सरकार की-सांसद आदर्श  ग्राम  योजनान्तर्गत- 'मॉडल'गाँव की अवधारणा को साकर करने की जो  शर्तें   पी.एम ने रखी  हैं -उनसे आम तौर  पर  सांसदों के परिवार वाले, और खास तौर  से  'साले- सालियां ' बहुत नाराज हैं। जबसे उन्हें खबर लगी है कि  उनके 'सांसद जीजाश्री ' अब 'ससुराल गेंदाफूल ' को लालू जी की तरह,शिवराज जी की तरह ,चौटाला की तरह  या मुलायम जी की तरह 'आउट ऑफ टर्न' उपकृत   नहीं कर  सकेंगे , तबसे  देश भर में  तमाम सांसदों के 'सास-ससुर' -साला-साली - और सपरिजन -बेहद ग़मगीन हैं। लकिन  जैसा कि  कहा गया है कि  'राजनीति  में कुछ भी असंभव नहीं है' -अतएव जल्दी ही इन  मोदी ब्राण्ड  निषेधात्मक  शर्तों का तोड़  खोज लिया जाएगा।
                      भारतीय समाज में  यह एक पारम्परिक - कुलरीत है कि चाहे वो नेता हो , महात्मा हो ,साधु  संत हो ,कलेक्टर हो,आईजी हो,थानेदार हो,चपरासी हो ,आम नागरिक हो या  सांसद हो- यदि वह बाल-बच्चे वाला है।यदि वह  'परिवारवाद' में आस्था रखता है तो निश्चय ही सार्वजनिक जीवन में कोई भी लोकप्रिय  नेता  अपने 'हितग्राहियों' को उपकृत किये बिना रह नहीं सकता।  चूँकि  मोदी जी का परिवार बहुत बड़ा है ,वे जिस 'परिवार को रात -दिन उपकृत करने के प्रयास करते रहते हैं- वो संसार का सबसे बड़ा 'परिवार है। उसे बोलचाल में 'संघ'-लिखत-पढ़त  में- 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ'  और राजनीतिक शब्दावली में 'संघ परिवार' भी कहते हैं। चूँकि 'संघ परिवार' का विस्तार  जापान से लेकर अमेरिका तक और मॉरीशस से लेकर मास्को तक फैला है इसलिए उसके हितों के सामने किसी सांसद या मंत्री की 'ससुराल ' का गाँव-खेड़ा कहाँ टिक सकता  है ?
                  भारतीय समाज में किसी  भी सद्गृहस्थ  द्वारा सम्पन्न किये गए  व्यक्तिगत या सामजिक -धार्मिक - अधिकांस कार्यों के कार्यान्वन में उसकी धर्मपत्नी का  योगदान अवश्य  हुआ करता है।  यही  धर्म पत्नी  ही  दोनों परिवारों का सेतु याने -"दोउ कुल की उजियारी" कहलाती  है।  किसी सांसद  या नेता के पैतृक  गाँव की समस्या हो या ससुराल  के विकाश की बात जब होगी-तो  मोदी जी की इस  शर्त  कि -''ससुराल या पैतृक गाँव को  गोद  नहीं ले सकते'' ।   इसके पीछे छिपे  मोदी जी के मर्मान्तक   दर्द को सहज ही समझा जा सकता है। चूँकि वे बिना धर्मपत्नी के सहयोग के ही 'सुर्खरू' हो  सके हैं इसलिए उन्हें यह पुरता है। किन्तु यदि उनके इस सिद्धांत  पर अन्य सांसदों -मंत्रियों द्वारा  अमल किया जाता है. तो तमाम सांसद पत्नियों  अपने-अपने सांसद पति   के खिलाफ विद्रोह भले ही न करें किन्तु जिस कुटुंब-कबीले के दम  पर वे जीत कर  आये हैं उनके आक्रोश का क्या होगा ?  यह भी सम्भव है कि  'मायका बचाओ आंदोलन ' या 'ससुराल गेंदा फूल' की रक्षा के लिए अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव को जंतर -मंतर पर भूंख हड़ताल करनी पड़े ! मोदी जी की तो बीसों घी में हैं ,  सिर  हिंदुत्व की कड़ाई में  है और पैर सत्ता के सोपान पर मजबूती से  टिके  हैं।
               मैं संजय दॄष्टि  से देख रहा हूँ कि महाराष्ट्र और हरियाणा में मोदी लहर कांग्रेस के लिए हुदहुद तूफ़ान बन चुकी है। मोदी का आभा मंडल और ज्यादा तेजोमय होने जा रहा है। इस तेज में खतरे भी कम नहीं हैं।  व्यक्तिवादी नियंत्रण के लिए ये घटनाएँ त्वरण का काम करती हैं। मेरा सुझाव है कि  सभी पार्टियों के  सभी सांसदों   प्रतिश्पर्धा छोड़ कर आपस में  यह समझौता कर लें कि वे दलगत राजनीति  से ऊपर उठकर 'मोदीवाद' का सामना करें। ग्राम सुधार योजना हो या कोई और  मद - वे  दि ए गए धन या फंड से - वे एक  दूसरे  की ससुरालो और पैतृक गाँवों में घुसपैठ कर  वहाँ का विकाश अवश्य करें। इससे मोदी जी की शर्त की इज्जत  बच  जायेगी और सांसदों के पैतृक गाँव या ससुरालों का भी 'कल्याण' होता  रहेगा। चूँकि सांसदों के गाँव या ससुराल भी आखिरतः  देश का ही हिस्सा हैं इसलिए मोदी जी को भी इसमें कोई खामी नहीं दिख सकेगी  ।
                    मोदी जी  की योजना है की  लोक सभा और राज्य सभा के सभी ८०० सांसद मिलकर २०१९ तक ३-३ गाँवों का विकाश कर २५०० गाँवों को 'मॉडल गाँव' बनायंगे. २०२४ तक ५-५ गाँव  गोद  लेकर  सांसदों के हाथों देश के  ४०००   गाँव का कल्याण हो जाएगा।  जो,रूस ,अमेरिका ,ब्रिटेन , फ़्रांस चीन के किसी गाँव को नसीब है। सभी को  इस योजना का समर्थन  करना चाहिए।  हम  यह मुद्दा छेड़कर  कि देश के बाकी  उन  लाखों गाँवों का क्या होगा  ? जहां इंटरनेट , जीपीएस,वाई-फाई  या रियल  टाइम वेब आधारति मानीटरिंग सिस्टम -की मांग नहीं है।-बल्कि ज़िंदा रहने के लिए पीने के  स्वच्छ पानी की -एक  कांदा  -दो रोटियां की  दरकार मात्र है।   न्यूनतम पुलिस सुरक्षा,बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा ,रिश्वत विहीन कार्यालय ,मुनाफाखोरी -मिलावट विहीन बाजार और जीवन के न्यूनतम संसाधन तो अभी दिल्ली मुंबई,  कोलकाता ,चेन्नई या इंदौर  वालों को भी नसीब नहीं  है. फिर देश के लाखों गाँवों  के गऱीबों की क्या बिसात कि वो सब कुछ पा  सकें जिसके  वे सदियों से हकदार हैं।  डाकुओं,नक्सलियों या स्थानीय दवंगों  के आतंक से मुक्ति पाने की उम्मीद तो अभी खुद मंत्रियों ,कलेक्टरों और पुलिस के ' सिघमों' को भी नहीं है। 
केंद्र सरकार जो कर रही है वो उसका विजन है। गाँव की जनता  हो या  शहर की यदि उसे सम्मान से जीना है तो संगठित होकर संघर्ष करना ही होगा।  भरोसे की भेंस पाड़ा  नहीं जनती ! लोग समझते हैं कि केवल वोटों के ध्रवीकरण से  या मोदी-मोदी के नमोगान से भाजपा को केंद्र में और अब -महाराष्ट्रमें  ,हरियाणा में  सत्ता मिल रही है तो  क्या यह मान लिया जाए कि  इस विजय में कांग्रेस के कुशासन या भृष्ट आचरण की कोई भूमिका नहीं है ?
 किसी ने ठीक ही कहा है ;-
                       तेल जरे  बाती  जरे , नाम दिया का होय।

                        लल्ला खेलें काउ के ,नाम पिया का होय। ।

                               श्रीराम तिवारी

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