यह सर्वमान्य तथ्य है कि सभ्यताओं के उदयकाल से ही पूर्वी यूरोप , मध्य एशिया और उत्तर-पश्चिम एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप पर अबाधित आक्रमण होते रहे हैं।मानव इतिहास में इस भूभाग पर तीन बड़े आक्रमणों या 'यायावर समूहों' के आगमन के अनेक प्रमाण मौजूद हैं। पहला आक्रमण या लम्बा और श्रंखलाबद्ध आगमन जिनका रहा होगा शायद वे ही कालांतर में 'आर्य' कहलाये । सिंधु घाटी सभ्यता , हड़प्पा ,मोहन-जोदड़ो ,सुमेर, द्रविड़ तथा मय सभ्यता के पराभव उपरान्त, उन्ही के ध्वंशवसेषों पर जिस अति-उन्नत सभ्यता ने साम गीत गया। उसी पुरातन आर्य सभ्यता का कार्यक्षेत्र अर्थात भूभाग आर्यावर्त कहलाया। कालान्तर में गंगा,यमुना, सरस्वती, चर्मण्यवती[चम्बल], वेत्रवती[बेतवा], दशार्ण [धसान] इत्यादि सरिताओं से आप्लावित यह भूभाग - हस्तिनापुर ,इंद्रप्रस्थ ,काशी ,कौशल ,अबध ,कैकेय ,चेदि , मगध ,लिच्छवी - वैशाली, मल्ल्य , कान्यकुब्ज ,जेजाकभुक्ति तथा सूरसेन इत्यादि जनपदों - गणतंत्रों में विभक्त होकर आपस में निरंतर संघर्ष करता रहा। शनेः-शनेः सांस्कृतिक और भौगोलिक वैषम्यता के वावजूद भी भारतीय उपमहादीप का अधिकांस भूभाग [सुदूर दक्षिण भारत को छोड़कर] एक दमनकारी और शोषण की कुटिल सभ्यता में रूपांतरित होता चला गया। विश्व की दीगर सभ्यताओं ने जहां भू स्वामी-और दास वर्ग के आपसी संघर्ष को सामंती व्यवस्था के खिलाफ - प्रभु के खिलाफ- एकजुट किया वहीँ भारत में चातुर्वर्ण्य समाज की मजबूत पकड़ के कारण शक्तिशाली वर्ग-शोषणकारी ताकतों - के खिलाफ एकजुट आंदोलन नहीं पनप सके। चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के चतुर संचालकों [मनु ,वशिष्ठ,शंकराचार्य -जैसे महान ऋषियों ]ने चारों वर्णों को एक-एक त्यौहार पकड़ा दिया। आवाम से कहा जाता रहा कि "ब्रह्म सत्यम जगन्मिथ्या " ! आपस में पैर,जंघा ,भुजा और मुख की मानिंद एकसूत्र में बांधकर "जीवेत शरद शतम " ! ब्राह्मणों को रक्षाबंधन ,क्षत्रियों को दशहरा या विजयदशमी ,वैश्यों को दीवाली और शूद्रों को होली का त्यौहार थमाकर कहा गया कि "राजा के खिलाफ मत बोलो क्योंकि वो तो साक्षात विष्णु का अवतार है। धनाढ्य वर्ग के खिलाफ मत बोलो क्योंकि वे तो 'श्रीमतां गेहे योगभृष्टोभिजायते 'है। हानि-लाभ ,जीवन-,मरण ,सुख-दुःख जय-पराजय ,मान-अपमान ,आजादी और गुलामी सब कुछ ईश्वर की इक्षा पर छोड़ दो। साल में एक दिन -विजयादशमी मना लो -शक्ति की पूजा -आराधना कर लो मुक्ति मिल जायेगी। विश्वामित्र ,परशुराम और चाणक्य जैसे कुछ प्रगतिशील विद्द्वानों ने आसुरी प्रवृत्तियों अर्थात शोषण की ताकतों से संघर्ष करने के लिए 'नव -दुर्गा' की आराधना का अभिप्राय यह सुनिश्चित किया कि' ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं जो खुद पर भरोसा करते हैं " वेदों ,पुराणों तथा तमाम हिन्दू धर्म ग्रंथों का सार है कि दुर्गा अर्थात शक्ति का अभिप्राय -जनता जनार्दन की सकारात्मक एकता हो। जो शोषण - गरीबी,लूट, व्यभिचार,हिंसा ,आतंक,दुर्भिक्ष्य महँगाई तथा गुलामी इत्यादि के खिलाफ - आसुरी प्रवृत्तियों वाले शोषक शासक वर्ग के खिलाफ जन-आकांक्षाओं के पक्ष की पक्षधर हो। विजयदशमी के पावन पर्व पर जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए ,मानवता की बेहतरी के लिए - विराट जन -नर्मेदिनी की हुंकार का आह्वान किया जाना चाहिए !
श्रीराम तिवारी
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