शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

लगता है कि जनाब बुखारी जी को राजनीति का तेज बुखार चढ़ा हुआ है !



  नरेंद्र दामोदरदास मोदी से असहमत हुआ जा सकता है। भाजपा से असहमति या प्रतिष्पर्धा कोई अनैतिक आचरण नहीं है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वैचारिक मतभिन्नता कोई बेजा बात नहीं है।  एक निर्वाचित सरकार के काम-काज की आलोचना या समीक्षा कोई असंवैधानिक  आचरण नहीं है। किन्तु  इमाम बुखारी का - भारत जैसे विराट  लोकतांत्रिक देश के   निर्वाचित -प्रधानमंत्री  को पाकिस्तान के  टुच्चे नेताओं के साथ नथ्थी करते हुए   नीचा  दिखाना  कहाँ तक उचित  है ? क्या  इमाम बुखारी की यह हरकत देश को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने की - नकारात्मक  ध्रुवीकरण की प्रक्रिया  को और तेज  नहीं करेगी ? क्या भारत के  प्रधानमंत्री को न्यौता  न देकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री  के तलुवे चांटने   को लालायित -घोर साम्प्रदायिकता वादी तत्वों   की यह कुटिल चाल उग्र हिन्दुओं को विचलित नहीं करेगी ?  क्या नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति  के अतीत की साम्प्रदायिक  छवि  इस दुर्भाग्यपूर्ण -अपमानजनक स्थति के लिए अनंतकाल तक  उत्तरदायी रहेगी  ?  क्या उन्हें  भारत के  प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए देश की जनता  को कसूरवार ठहराया जा सकता है  ? क्या  इस विध्वंशक  सिलसिले को स्वीकार्य  करते रहने को भारत की जनता सदा-सदा के लिए अभिशप्त है  ?  वेशक  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को 'बुलौआ'  देकर इमाम बुखारी  ने भले ही कोई अनैतिक कार्य न किया हो ! किन्तु अपने ही देश के हमवतन प्रधानमंत्री को चिढ़ाने की क्या जरुरत  है ? क्या इमाम बुखारी को  अपने-पराये का ज्ञान नहीं है ? क्या वह धर्मनिरपेक्ष भारत, महान  प्रजातंत्र  भारत को पाकिस्तान जैसे साम्प्रदायिक और उग्रवादी देश से निम्नतर  समझता  है ? क्या उसकी इस हरकत से हिंदुत्व वादियों को अपनी ताकत बढ़ाने में मदद नहीं मिल रही ? क्या यह इमाम बुखारी  पूरी की पूरी देशभक्त मुस्लिम कौम  का अहित नहीं कर रहा  ?यदि वाकई   वह इस्लाम का बहुत बड़ा आलिम है या कौम का   बहुत  बड़ा लोकप्रिय  नेता है  तो  अपने बेटे को निरंकुश तरीके से  'बलीअहद'  बनाने  की तिकड़म क्यों भिड़ा रहा है ? यदि वह इतना ही  काबिल है , 'दीनो-ईमान'  का 'आलिम' है तो वह  लोकतांत्रिक तौर  तरीके से नायब इमाम चुनने का दायित्व  भारत के या दिल्ली के मुसलमानों  पर क्यों नहीं छोड़ देता  ?     भारत के मुसलमान  खुद अपनी  पसंद का नायब इमाम या शाही   'इमाम'  क्यों नहीं चुन सकते ? इस्लाम की किस किताब में लिखा है कि "अपन हथ्था -जगन नथ्था " ? जो बुखारी  अपने दामाद को  सांसद तो क्या विधायक भी नहीं  बनवा  सके, वो हिन्दुस्तान के २५ करोड़ मुसलमानो का नेता  बनने  का हक  कैसे  पा  सकता है ?  वेशक  किसी खास  मतानुसार यह उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो सकता है ,  किन्तु उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि   दुनिया भर में  डंका पीटकर अपनी व्यक्तिगत और  पोशीदा खुजलाहट दिखाने  का कोई हक़ नहीं है ! वेशक  हिन्दुत्ववाद का साम्प्रदायिक एजेंडा देश  हित  में नहीं है लेकिन  बुखारियों ,ओवेशियों और मुजाहदीनों  का एजेंडा   भी  देशभक्तिपूर्ण नहीं  है!साम्प्रदायिक नंगा नाच दिखाने की छूट  किसी को भी नहीं दी जा सकती। धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म सापेक्षता कदापि नहीं हो सकता।नायाब इमाम की ताजपोशी के बहाने जो कुछ हो रहा है 
                       उससे   लगता है कि  जनाब बुखारी जी को राजनीति  का तेज बुखार चढ़ा हुआ है !
          बड़े दुःख की बात है कि  कुछ  लोग इतनी सी बात अभी तक  नहीं समझ  पाये कि नरेंद्र  मोदी न तो साम्प्रदायिक हैं और न ही हिन्दुत्ववादी  हैं !  वास्तव में वे केवल  शुद्धतम सर्व सत्तावादी  हैं ,घोर पूँजीवाद  परस्त और अधिनायकवादी हैं। इसी की खातिर उन्होंने  कभी मीडिया को मैनेज किया ,कभी खुद को हिंदुत्व की कतारों का 'नायक' प्रचारित किया ,कभी  साधुओं-संतो -बाबाओं और शंकराचार्यों   को भी फुसलाया। कभी हिन्तुत्व की तान सुनाई।  कभी गुजरात की गौरव गाथा  गाई।  जब  मोदी जी को   लगा कि इतने से काम नहीं चलेगा तो उन्होंने विकाश और सुशासन  की  धुन बनाई ,जो आधुनिक भारतीय युवाओं को खूब  पसंद आई। चूँकि केंद्र में १० साल से  कांग्रेस नीत  यूपीए का महाभृष्टम् [कु] राज था ,अतएव उसे हराना  कोई मुश्किल काम नहीं था। चूँकि भाजपा और संघ परिवार ने राजनीती की गटर गंगा में मोदी जी को शिद्द्त धकेल  दिया था ,  इसीलिये   वे 'रिपट पड़े  सो  हर-हर गंगे हो गए।'  चूँकि अपनों को लतियाये वगैर सत्ता शिखर चढ़ पाना असंभव था. इसलिए उन्होंने आडवाणी ,मुरलीमनोहर या किसी भी अन्य समकालिक भाजपाई से ज्यादा आक्रामक हिंदुत्व वादी  रूप धारण  कर लिया । उन्होंने  मंदिर या  हिंदुत्व को त्यागकर अपनी ' भीष्म प्रतिज्ञा  '-'कांग्रेस मुक्त भारत' पर केंद्रित कर दी। इस संकल्प  को पूरा करने के लिए  ही मोदी जी ने -'ऊधो सब कारे अजमाए ', उन्होंने इतने सारे किरदार निभाये  कि  वे सुर्खरू होने में सफल हो गए। उसी का परिणाम  है  कि  अब  देश  की संसद में प्रचंड बहुमत प्राप्त भाजपा नीत  एनडीए का शासन है.  इस प्रचंड बहुमत की ओर  से  श्री नरेंद्र भाई दामोदरदास मोदी अब  भारत के प्रधानमंत्री हैं। उनसे यदि  इमाम  बुखारी को कोई परेशानी है , तो वे  उसका खुलासा करें। केवल उनके प्रति  अपनी मजहबी  खुन्नस का बैर  पालना  ओछी मानसिकता और मजहबी टुच्चापन है। यदि  बुखारी में संघर्ष का माद्दा है तो उनसे निवेदन है कि  वे  केवल मुसलमानों के खैरखुवाह बनने का नाटक न करें। हालाँकि  सबको पता है कि  वे किसी के भी खैरखुवाह नहीं हैं। उन्हें केवल अपने रुतवे  और अपने परिवार की फ़िक्र है। उनमे ज़रा भी अक्ल होती तो   वे तृणमूल  कांग्रेस - ममता बेनर्जी में या मुलायम सिंग में मुसलमानों की तरक्की देखने के  की गलती नहीं करते।  शायद वे नहीं जानते कि  देश के  न केवल  हिन्दुओं , न केवल मुसलमानों बल्कि  तमाम  मेहनतकश आवाम का  कल्याण तभी संभव  है जब  की देश की सरकारें अपनी मौजूदा विनाशकारी आर्थिक नीतियों  से तौबा कर लें।  चूँकि वैकल्पिक जनवादी नीतियों के लिए   देश  की  धर्मनिरपेक्ष  वामपंथ ताकतें  और संगठित मजदूर वर्ग  पहले से ही निरंतर संघर्षरत है. यदि बुखारी जी  में तनिक भी इंसानियत है तो  वे  इन हरावल दस्तों  के संघर्ष का  साथ दें।  वर्ना  इमाम बुखारी हो , शंकराचार्य हों , लामा हों ,बाबा हों  या कोई भी मजहबी मठाधीश हों -उन्हें  केवल अपनेअखाड़े  -धर्म-कर्म के धंधे तक ही सीमित रहना चाहिए ।यदि उन्हें राजनीति  से  भी कोई लगाव है तो वे  खुलकर केंद्र और राज्य  सरकार की उन नीतियों  के खिलाफ संघर्ष  करें , जिनसे  न केवल गरीब मुसलमान बल्कि गरीब हिन्दू या गरीब  बौद्ध भी शोषित-पीड़ित होरहे हैं।   जिन नीतियों  के कारण देश के चंद  अमीर और ज्यादा अमीर हो गए हैं। जिन नीतियों से  अम्बानी,अडानी,डावर,टाटा,बिरला,सिंघानिया और अन्य पूँजीपति दिन-दूने  रात चौगुने बढ़ रहे हैं।
                                         जिन नीतियों के कारण   आम आदमी -भृष्टाचार ,महँगाई ,हिंसा और आभाव में-चौतरफा   पिस  रहा है  ज़िन नीतियों के कारण देश की सम्पदा  देशी -विदेशी  लुटेरों को सौंपी  जा रही है, उन नीतियों से लड़ने के लिए इमाम बुखारी जी का स्वागत है।शंकराचार्य जी का स्वागत है ,सभी मंदिर-मस्जिद-गिरजा,गुरुद्वारे और पूजाघरों -[हालाँकि  अभी तो ये व्यभिचार और दौलाखोरी के अड्डे बने हुए हैं ]- में तैनात  'सेवादारों'  का आह्वान है कि  वे  अपने प्रभाव का उपयोग  'दरिद्र नारायण'के पक्ष में और शोषण की काली ताकतों के खिलाफ इस्तेमाल करें.  वेशक  बुखारी जी   या कोई और धर्मगुरु यदि  इन  अधोगामी नीतियों के खिलाफ लड़ते हैं ,  यदि शासक वर्ग या उसकी नकारात्मक नीतियों  के खिलाफ कोई आंदोलन छेड़ते तो  शायद वे  आज सर्वत्र आदर के पात्र होते ! अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम में  यदि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने की  बुखारी में  कूबत थी तो अपने हमवतन प्रधानमंत्री 'नरेन्र्द मोदी को न्यौता  नहीं देना तो कोरा  टुच्चापन  ही है ! यह नरेंद्र मोदी का नहीं , भारत के  प्रधानमंत्री का नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र का  अपमान है !कोई भी देशभक्त नागरिक बुखारी की इस हरकत को जस्टिफाई नहीं  कर सकता !  
                         
श्रीराम तिवारी

 

बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

अबहूँ नाव मझधार में ,न जाने क्या होय।।



      महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के दरम्यान शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे और मनसे नेता राज ठाकरे की सिंह गर्जना से समूची  भाजपा   सहमी हुई थी।'सामना' ने मोदी को जितना अपमानित किया उतना तो किसी ओवेसी या पाकिस्तानी ने नहीं किया।  जब महाराष्ट्र की जनता ने ठाकरे बंधुओं को  उनकी औकात  दिखाई  और  मोदी जी ने भी अपने चहेते देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री नामित कर , 'एकला चलो रे' का सिद्धांत लागू किया  याने  सत्ता रुपी दही की मटकी  को अपनी अंगुली पर टांग दिया, तो अब शिवसेना के ' शेर 'याने ठाकरे बंधू 'म्यायुं -म्यायुं ' कर रहे हैं। ऐंसे ही लोगो को कबीरदास जी कह  गए हैं ;-

      कबीरा गरब ने कीजिये ,कबहुँ  न हंसिये  कोय।

     अबहूँ नाव मझधार में ,न जाने क्या होय।।

      इधर  महाराष्ट्र की जनता ने कांग्रेस के कुशासन और भृष्ट  आचरण का दण्ड तो  दिया ,किन्तु भाजपा को भी  वांछित बहुमत न देकर दम्भी  नेताओं को कड़ा सन्देश दिया है कि लोक सभा की  अपनी  प्रचंड जीत को स्थाई न  समझे और उस जीत पर  ज्यादा न इतराएँ ! किसी ने  ठीक ही कहा है कि; -

  पुरुष  बली  नहिं  होत  है ,समय होत  बलवान।

  भिल्लन लूटी गोपिका ,वही  अर्जुन वही  बाण।। [अज्ञात]

              श्रीराम तिवारी

   

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014

उन कालेधन वालों को संरक्षण नहीं फांसी होनी चाहिए !




       नंगे -  भूँखों  को  ब्रह्म  ज्ञान नहीं , राशन -पानी  चाहिये।

       मुर्दों  को  बैंक का  खाता  नहीं, बदन पर कफ़न  चाहिए।।

      स्वच्छता सदाचार सुशासन पर राजनैतिक  लफ्फाजी नहीं ,

      हरएक को बाजिब  शिक्षा और हर हाथ को काम होना चाहिए।

       प्रजातंत्र में दलगत जुबानी जंग कोई बुरी बात नहीं  है ,

       वशर्ते  !  देश की अखंडता पर आंच नहीं आनी  चाहिए।।

      संभव नहीं की हर किसी के मन की मुराद पूरी हो जाए ,

     किन्तु न्यूनतम संसाधनों  की पूर्ती तो होना ही  चाहिए।

      इतना तो  वह सब इस  देश में  अवश्य  ही  उपलब्ध है ,

    जितना  उसके वाशिंदों  को जिन्दा रहने के लिए चाहिए।।

     मुनाफाखोरी ,शोषण ,उत्पीड़न और  बेकारी  का निजाम ,

     मीडिया के मार्फ़त  महिमा मंडित नहीं किया जाना चाहिए।

     पूंजीपवादी  सत्ता परिवर्तन  से  जिनका  होता रहा  विकाश  ,

    उन  कालेधन वालों को संरक्षण नहीं फांसी  होनी चाहिए।।

                    श्रीराम तिवारी

    


   

    

      

रविवार, 26 अक्टूबर 2014

मियाँ ममनून हुसेन आप को भरम है कि आप पाकिस्तान के 'सदर 'हैं !"



   
पाकिस्तानी अखवार "दुनिया न्यूज' के हवाले से खबर है कि  २८ अक्टूबर को डॉ मनमोहनसिंह पाकिस्तान के  राष्ट्रपति  की हैसियत से 'पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स 'के दीक्षांत  समारोह की अध्यक्षता  करने  जा रहे हैं। दरसल पाकिस्तान के एक जाने-माने आर्थिक शोध संस्थान के अफसरों से गंभीर  चूक हो गई। इस संस्थान के प्रायोजकों ने २८ अक्टूबर को होने जा रहे उक्त वार्षिक समारोह की अध्यक्षता के लिए''पाकिस्तानी इस्लामी गणतंत्र के राष्ट्रपति मनमोहन सिंह''को निमंत्रण दे डाला है। संस्थान के सरकारी आमंत्रण में 'ममनून हुसेन' के स्थान पर 'मनमोहनसिंह ' का नाम छप गया है। हालाँकि  यह गलती  दुरुस्त कर ली गई किन्तु  तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि यह निमंत्रण पत्र कतिपय गणमान्य अतिथितयों तक  भी पहुँच चूका था। डॉ मनमोहनसिंह जी के नाम का  एक निमंत्रण पत्र पाकिस्तान के राष्ट्रपति की टेबल पर  भी रखा है जो  उनका मजाक उड़ा  रहा है।   मानो कह रहा हो कि "मियाँ ममनून हुसेन आप को भरम है कि  आप पाकिस्तान के 'सदर 'हैं  !"
                                                        श्रीराम तिवारी 

शनिवार, 25 अक्टूबर 2014



     सत्ता परिवर्तन का असर ,  होता है सब दूर।

     'नमो ' - ध्यान में रम गए ,भैया शशि थरूर।। 

  तरुवर ताशु विलम्बिये ,बारह मास फलंत।

 शीतल छाया गहर फल ,पंछी केलि करंत।। 

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014



     सदा दिवाली संत की , बारह  मास  वसंत।

     प्रेम रंग जिनपर चढ़ा ,उनका रंग अनंत।।


    या अनुरागी चित्त की ,गति समझे नहिं  कोय।

   ज्यों-ज्यों बूढ़े*श्याम रंग ,त्यों-त्यों उज्जवल होय।।

      * [बूढ़े =डूबे] 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

इसीलिये मोदी का मजाक उड़ाने वाले जनता की नजरों में विदूषक नजर आ रहे हैं


 भाजपा के सर्वोच्च नेता और भारत के शक्तिशाली प्रधानमंत्री बनने के बाद -श्री नरेंद्र भाई   मोदी अब व्यक्ति नहीं बल्कि एक विराट संस्थान बन चुके हैं। वे एक खास विचारधारा के प्रतिनिधि  तो   पहले से ही थे किन्तु  विदेश यात्राओं  के तेवरों ने  और देश में चुनावी -उत्तरोत्तर सफलताओं ने उन्हें अपनी पुरानी नकारात्मक छवि से मुक्त होने के लिए  शायद शिद्द्त से  प्रेरित किया है। तमाम  विरोधी पार्टियाँ ,एनडीए के  सहयोगी दल   [शिवसेना जैसी ] , भाजपा या संघ परिवार में उनके व्यक्तिगत  प्रतिदव्न्दी  मौजूद हैं। आइन्दा जो  कोई भी  वयक्ति या दल  नरेंद्र मोदी की पुरानी छवि के आधार पर उनसे जूझने की कोशिश करेगा, तो उसकी हार सुनिश्चित है।
                      दरसल अपने मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत - मोदी  जी अब व्यक्ति नहीं बल्कि  एकसर्वाधिक लोकप्रिय  'नायक'  जैसे या एकसर्वाधिक - आकर्षक  'विचारधारा' के प्रतीक जैसे  हो चुके हैं ।वेशक   उनकी  कटटर- साम्प्रदायिक और पूँजीवादी  विचारधारा  के  दुष्प्रभाव से अमीर और ज्यादा अमीर होते चले जाएंगे जबकि निर्धन किसान -मजदूर -बेरोजगार  युवा और अन्य छोटे -छोटे व्यापारी या कुटीर उद्योग वाले सभी - बेमौत मारे जायंगे।   मोदी जी की विचारधरा से विकाश तो होगा किन्तु बेहद  अनगढ़  होगा। वह अति  क्रूर और   एकपक्षीय ही होगा। सुशासन तो होगा किन्तु वह  केवल सरमायेदारों की  जान-माल की सुरक्षा के काम आएगा। आम आदमी और वंचित-शोषित समाज के लिए मोदी के पास कुछ भी योजना नहीं है।  भले ही वे कितनी ही देशभक्तिपूर्ण और भावोद्देग भाषणबाजी करते रहें ।
            जो लोग नरेंद्र मोदी के खिलाफ हैं और यदि वाकई उन्हें हराना चाहते हैं  तो  उन्हें चाहिए कि वे मोदी जी के  चाल -ढाल या पहनावे की आलोचना करने ,भद्दे कार्टून बनाने ,उनकी  भौगोलिक या ऐतिहासिक  अज्ञानता का मजाक उड़ाने या खोखली आलोचना से बचें ।मोदी के विरोधियों द्वारा -जब तक मोदी जी की आक्रामक दक्षिणपंथी -विनाशकारी  नीतियों के सापेक्ष  कोई बेहतर  वैकल्पिक नीति और कार्यक्रम आवाम के बीच ठीक से नहीं रखा जाता एवं  जब तक मुख्यधारा का मीडिया व्यक्तिगत चाटुकारिता से  ऊपर  उठकर देश की आवाम के प्रति न्याय दृष्टिकोण नहीं अपनाता -तब  तक हर  वह नेता और  दल  जो मोदी   से जूझ रहा है -हांरने को  ही  अभिशप्त  है।इसीलिये मोदी का मजाक उड़ाने वाले जनता की नजरों में विदूषक नजर आ रहे हैं
                   मोदी तो अपने आप को तेजी से बदल रहे हैं ,वे अपने विरोधियों की हर चुनौती कबूल कर रहे हैं। मोदी के राजनैतिक तौर  तरीके आधुनिक और कारगर हैं जबकि उनके विरोधी निहायत लकीर के फ़कीर और जुबानी जंग के  कागजी शेर सावित हो रहे हैं।  चाहे कांग्रेस  हो ,चाहे जनता परिवार हो ,चाहे  उद्धव हों,राज ठाकरे हो,चाहे प्रगतिशील वामपंथी हों या अल्पसंख्यक  नेता हों -सभी ने मोदी की समय -समय पर खूब खिल्ली उड़ाई है। मेने भी सैकड़ों बार उनकी आलोचना की है। मतदाताओं के बीच,आवाम के बीच - मोदी जी के ये  सारे आलोचकअभी तो   केवल  हताश और  खिसयाये ही नजर आ रहे हैं।
 
       श्रीराम तिवारी 



   कहाँ पर जलाएं दिया अनिकेत अनगिन,

  जीवन ही जिनका अमावस की रात है।

   ख़ुशी मौज मस्ती अमीरों  के चोंचले ,

  निर्धन के पेट में तो भूंख को निवास है।।

   कहाँ से पकाएं खीर -मोद्क - पकवान सब ,

   चौदहवीं  का चाँद जिन्हे रोटी  दिखात  है।


   श्रीराम तिवारी 



    बहुराष्ट्रीय निगमों का शिकंजा ,कसता  जाता भारत पर।

     बंद  हो  रही  मिलें  फैक्टरी , संकट कुल  उत्पादन  पर।।

     नयी  आर्थिक  नीति  ने  देखो ,कैसा  सत्यानाश  किया।

      सार्वजनिक संपत को साले  बदमाशों  ने  हड़प  लिया।

      बाजारों की चकाचौंध ने ,निर्धन जन को रुला दिया।

     अमर शहीदों की मजार पर ,एक जलता दीपक रो दिया। ।


  ;- श्रीराम तिवारी 

     यों  रहीम गति  दीप  की ,कुल कपूत गति सोय।

      वारें     उजयारो     करे ,   बढे    अंधेरो     होय। ।


बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

वर्तमान युग की 'पटाखा दीवाली' पर बारूदी दुर्गन्ध का आतंक छाया हुआ है। कैसे कहूँ कि शुभकामनायें !



    अयोध्या के युवराज श्रीराम चन्द्र ,अनुज लक्ष्मण और धर्मपत्नी जानकी - जब चौदह वर्षीय - 'वनवास' से  अवधपुरी -लौटे होंगे तो उस रोज कार्तिक की अमावस्या रही होगी। अँधेरी शाम  या गोधूलि वेला में अयोध्या के नर-नारियों  ने -उनका हार्दिक अभिनंदन किया होगा। चूँकि  श्रीराम ने -२० दिन पहले ही लंका के राजा रावण को युद्ध में मार गिराया था इसलिए अवध की  जनता ने और खास तौर   से  खाते -पीते घरानों  ने  स्वागत द्वार भी  लगाए गए होंगे। जो और ज्यादा सक्षम होंगे उन्होंने घी के दिए भी जलाये होंगे !  यह  परम्परा दीपावली पर्व के रूप में - अयोध्या से  निकलकर - पूरे आर्यावर्त याने- उत्तर भारत में और कालांतर में दक्षिणापथ -याने दक्षिण भारत में भी लोकमान्य होती चली गई।  प्रारम्भ में जो भारतीय -कबीले या समाज  इस परम्परा से जुड़ने में लेट हो गए  ,कालांतर में उन्होंने भी किसी न किसी बहाने अपने समाज और परिवार को इस दीवाली पर्व से जोड़ ही  लिया।किसी के धर्मगुरु का यह जन्म दिन हो गया ,किसी का मरण दिन हो गया और किसी को तो 'ज्ञान' या बोध भी इसी  अमावस्या को ही प्राप्त हुआ होगा।    इसी तरह अन्य भारतीय त्यौहार - होली , रक्षाबंधन ,दसहरा  , ओणम ,बिहू एवं  रथयात्रा इत्यादि  त्यौहारों के  अस्तित्व में आने की भी अनेक मान्यताएं और कहानियां हैं।मानव सभ्यता के उत्तरोत्तर विकाश की उच्चतर अवस्था में -  पुरातन -मदनोत्सव ,वसंतोत्सव  तथा अन्य  वैदिक पर्व  क्यों लुप्त होते चले गए  जबकि वे  प्रकृति और मानव समाज  में तादतम्य  स्थापित करने में सक्षम थे।
           आज की युवा पीढ़ी को मालूम हो कि  बारूद की खोज या पटाखों के निर्माण से  भी हजारों साल पहले से 'दीयों की दीवाली'  मनाई जाती रही है। लेकिन तब यह वास्तव में 'दीपावली' ही थी।   वर्तमान युग की इस जान लेवा -'पटाखा  दीवाली'  पर  बारूदी दुर्गन्ध का  आतंक छाया हुआ है। हवा में बारूदी दुर्गन्ध  'महक' रही है। अस्थमा ,फेफड़ों का इन्फ़ेक्सन , सर्दी -खांसी और क्षय रोग से पीड़ित नर-नारी इसकानफोड़ू और नाक सिकोडू    त्यौहार सेआतंकित  रहते हैं।   यदि  वह कोई अस्थाई मजदूर,गरीब किसान या आर्थिक रूप से  विपन्न श्रद्धालु है तो  यह पटाखा - दीवाली  उसके जीवन की भयानक  अमावस्या ही है।

          धर्मभीरु  व्यक्ति ,अंधश्रद्धालु  समाज और मजहबी अफीम में मस्त-किंकर्तब्यविमूढ़ जनता अपनी मानसिक ,शारीरिक और आत्मिक गुलामी  के दलदल में पहले से ज्यादा  गहरे धसी  हुई है।

    चूँकि भारत में तो दीपावली या दीवाली अब सभी की है तो  इस सर्वसम्मत  पर्व पर सभी को लख -लख  बधाइयाँ। यदि इस पर्व  का तात्पर्य - आत्मप्रकाश ,सचेतनता या आंतरिक- बाह्य जीवन  के  'उजास' से है  तो मेरी ओर  से भी  सभी मित्रों ,शुभचिंतकों और हितैषियों को इस महानतम पर्व - 'दीपोत्सव' की अनेकानेक   शुभकामनाएं !

            श्रीराम तिवारी


'लव-जेहाद' तो साम्प्रदायिकता से परे सारे संसार की सामाजिक समस्या है




     कुछ अपवादों को छोड़कर -दुनिया  के अधिकांस देशों में ,प्रायः सभी समाजों में ,सभी सभ्यताओं में ,सभी मजहबों-धर्मों में ,सभी जातियों -गोत्रों और बिरादरियों  में, लिंगानुपात -पुरुष बनाम नारी के बीच का असंतुलन- अब  अपने  चरम  पर  है। बढ़ती आबादी के बरक्स और पुरुषसत्तामक ढर्रे के कारण  स्त्री-पुरुष  के  अनुपात में  बेजा अंतर गुणात्मक रूप से बढ़ता ही जा रहा  है।   दुनिया के  समाजशास्त्री इस समस्या को   एक भयानक  सामाजिक  समस्या के रूप में  प्रस्तुत करने में असफल रहे  हैं। जो  मानवता  के हितेषी हैं ,शुभचिंतक  हैं, वे अवश्य  ही इस जेंडर -असंतुलन के निदान बाबत  -यूएनओ स्तर से लेकर अपने -अपने कार्यक्षेत्र  पर्यन्त -   निरंतर प्रयासरत हैं। किन्तु  इन सब  प्रयासों के वावजूद -भयानक  कुरीतियों ने ,पाश्चात्य सभ्यताओं के संघर्ष की   युद्धाग्नि ने ,इस गंभीर बीमारी को वैश्विक बना डाला है।  भारत में तो यह समस्या लव-जिहाद के नाम से राजनीति  और समाज में  साम्प्रदायिक संघर्ष का ईधन बन चुकी है।  भारत में इस आग को  हवा देने के  लिए  हिन्दुत्वादी जड़ता ,उंच-नीच ,छुआछूत ,आर्थिक असमानता और  अराजकतावादी  आतंक वाद  तो जिम्मेदार है ही किन्तु इस समस्या को ज्वालामुखी बनाने में इस्लामिक  आतंकियों का भी कम योगदान नहीं है।  हिन्दुओं को तो फिर भी अनेक सामाजिक -कानूनी बंदिशें हैं किन्तु  इस्लामिक जगत में इस समस्या पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है।
                                             चाहे वे 'आईएसआईएस' के लड़ाके  हों, चाहे वे 'बोकुहरम'  के खूरेंजी हों ,चाहे वे 'तालिवानी'  हों ,चाहे वे 'अल-कायदा' वाले हों या चाहे वे 'आईएम' या 'सिमी' के ही आतंकी ही  क्यों ने हों -सभी आतंकियों को एक बन्दुक और एक  अदद  औरत  तो अवश्य ही  चाहिए। चूँकि इस्लामिक अमीरों  में पहले से ही -एक -एक की चार-चार- बीबियों के होने   का चलन अभी भी बरकरार   है , चूँकि इस्लामिक सभ्यता में -अशिक्षा,पर्दानशीनी , शारीरिक दोर्बल्यता  और परावलंबन  का असर -पुरुषों के सापेक्ष  महिलाओं और बच्चियों  में  सर्वाधिक है।  इसीलिये  जब कोई  धनिक -   मुसलमान,नेता, आतंकवादी  या अभिनेता -अपनी हवश की खातिर अपने मजहब और अपनी  सभ्यता के  अंतर्गत कोई  काबिल 'जीवन संगनी'  की तलाश  करता है  तो वह पाता  है की आतंकी तो सभी जबान लड़कियों और मुस्लिम महिलाओं को पहले ही 'छाँट ' चुके हैं। इसलिए बाकी के मुस्लिमों को - अपने समाज में चारों ओर शेष बची हुईं  -बेहद डरी   हुईं,पर्दानशीन ,कुपोषित,अपढ़ - और अनाकर्षक लडकियाँ  या औरतें दिखाई देतीं है।  अरब देशों  के , यूएई या गल्फ के शेख सुलतान इसी वजह से न केवल भारत ,अपितु  बांगला देश ,पाकिस्तान ,नेपाल ,श्रीलंका और थाईलैंड या अन्य गरीब राष्ट्रों  की निर्धन और कम उम्र की लड़कियाँ को -  भारी  दामों में खरीद कर अपने 'हरम' में  डाल  देते  हैं। इस घ्रणित  खरीद -खरीद फरोख्त में   न तो पवित्र  'लव -जिहाद' है और न ही साम्प्रदायिक कदाचार। वेशक  यह इस्लाम के उसूलों   के खिलाफ अवश्य है। यह  तो केवल देह  व्यापार ही  है। जिन धनी 'शेखों' के पास  दिनार है। दिरहम है ,डॉलर है या पेट्रोलियम  है वे  किसी भी  जाति  मजहब की टीन  एजर्स को अपनी हवश का शिकार बना लिया करते हैं।
            भारतीय उपमहादीप में जब कोई जन्मना मुस्लिम [आचरण से नहीं ] सैयद मोदी,नबाब पटौदी ,आमेर खान,अरबाज खान,शाहरुख़ खान ,सैफ अली खान ,अमजद अली खान ,सलीम खान ,या मुजफ्फर अली -अपने मुस्लिम समाज में अनुकूल जीवन संगनी की तलाश करता है तो  उसको यह देखकर ग्लानि होती है कि  उसके समाज में उसके समकक्ष या अनुकूल कोई लड़की या औरत  नहीं है। वह अपने समाज की  किसी मैली  कुचैली  -असहाय -अबला परित्यक्ता -मुस्लिम नारी   को लाइफ पार्टनर बनाने के बजाय अन्य समाजों -हिन्दू -ईसाई ,सिखों या पारसी  इत्यादि समाजों की लड़कियों की  ओर अपनी ललचाई निगाहें डालता है। हिन्दू समाज  के उच्च माध्यम वर्ग की कुछ लडकियां इनके जाल में फंसकर  'तार शाहदेव' बन जाया करती हैं।   
                         इन वैश्विक उग्रवादियों  का अपने पवित्र मजहब इस्लाम में कितना यकीन है ?यह तो इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि  उनके मार्फत  जाल में फंसाई  गईं  कितनी  हिन्दू लडकियां -' दाऊद की या अबु सालेम  के हरम की शोभा बढाती रहीं हैं। इन बदमाशों की  तीन-तीन मुसलमान बीबियाँ पहले से ही  हैं।  उन्हें  एक्स्ट्रा - दो-दो हिन्दू औरतें और चाहिए।  सीरिया से लेकर सूडान तक और इंडोनेशिया से लेकर इराक तक   आतंकियों ने 'हरम' स्थापित कर रखे हैं। आस्ट्रिया ,ब्रिटेन तथा  चेचन्या  तक से लड़कियों को आतंकी हरम  का ओजार  बनाया जा रहा है। दुनिया  की हे हर  जात -मजहब की लड़कियां  इनके हरम में  देखी  जा सकतीं हैं  जब  इस्लामिक उग्रवादियों को एक-एक भी नहीं मिल पा रही  है। तो आस्ट्रिया, से लेकर इंग्लैंड तक और चेचन्या से लेकर भारत तक एक ही आवाज गूँज रही है की "गैर इस्लामिक लड़कियों को हथियाओ" उन्हें मुसला,मान बनाओ.! चूँकि गैर इस्लामिक समाजों में भी पहले  से ही नारी की स्थति ठीक नहीं है और भारत में तो लोक सभा चुनाव से लेकर मुनिसिपल्टी के चुनाव तक -  साम्प्रदायिकता के भरपूर दोहन  का  नाटक  देखा जा सकता है।  विभिन्न धर्मों-मजहबों - समाजों के टकराव ने नारी पात्र को  हासिये पर धकेल दिया है। सभ्यताओं के संघर्ष से  उत्पन्न मजहबी उन्माद  ने ' नारी मात्र' को भी संघर्ष का असलाह बना डाला है। चूँकि साम्प्रदायिकता किंचित  अन्योन्याश्रित हुआ करती है.अतएव मध्य एशिया या  भारतीय सीमाओं के पार नारी मात्र के खिलाफ जो भी हरकत होती है  उसका असर - प्रतिक्रिया  भारत में भी   होना स्वाभाविक  है।
                                                  भारत  में लोकतांत्रिक ताना -बाना मजबूत है , भारतीय न्यायपालिका भी आत्मविश्वाश से लबरेज है ,  भारतीय मीडिया भी कमोवेश स्वतंत्र है ,पुरातन बेड़ियों में जकड़ा हुआ भारतीय  समाज भी विज्ञान और प्रगतिशील वाम-जनवादी आन्दोलनों के प्रकाश में धीरे-धीरे मानसिक गुलामी से मुक्त होने को  अग्रसर  है। इन  सकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से भारतीय जन - मानस   को  लिंगानुपात के विक्षोभ का एहसास अवश्य  हुआ  है।  भारत की ये सकारात्मक शक्तियां और जनता का  प्रबुद्ध वर्ग -एक  ओर  तो कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ  संघर्ष  के लिए   कटिबद्ध है तो दूसरी ओर सभी समाजों में स्त्री शिक्षा के लिए कृतसंकल्पित है।  यह दुर्भाग्य ही है कि आधुनिक सूचना और संचार क्रांति  से मानवता का भला करने के बजाय कुछ युवा लड़के -लड़कियां गुमराह होकर देश में 'लव-जेहाद' नामक हौआ पैदा करने में लगे हैं।
                       
                                  चूँकि  भारत के पास धर्मनिपेक्षता  का परम पावन सूत्र है।  चूँकि भारत में गंगा-जमुनी तहजीव की   शानदार परम्परा विकसित की जा चुकी  है।  चूँकि भारत एक बहुभाषी-बहुधर्मी-बहुवर्णी और बहुपंथी पुष्पमाला  को  धारण करने वाला प्राकृतिक रूप से सम्पन्न राष्ट्र है। इसलिए यह कदापि शोभनीय नहीं है कि किसी शक्तिशाली समाज द्वारा  भारत के  किसी  अन्य  समाज को  किंचित भी आहत किया जाए।  वेशक यहाँ  अल्पसंख्यक  समाजों को पूरा सम्मान प्राप्त है। उनके दोहरे  अधिकार[एक तो उनके मजहब का अधिकार -पर्सनल ला इत्यादि  -दूसरा भारतीय  संविधान के प्रदत्त अधिकार]  भी  यहां  सुरक्षित हैं। किन्तु यह सब बहुसंख्यक समाज के त्याग और बलिदान की  कीमत  पर  कदापि आहरत नहीं किया  जाना चाहिए। भारत   में इन दिनों यह एक परम्परा  ही  बन चुकी है कि किसी भी साम्प्रदायिक टकराव या छेड़छाड़ की स्थिति में -  अल्पसंख्यकों को सहलाने के लिए बहुसंख्यक समाज  के  एक हिस्से को बिना जाँचे -परखे दोषी ठहरा दिया जाता है। इसी का नतीजा है की देश में पहली बार  बहुसंख्यक वर्ग के साम्प्र्दायिकतावादी  नेतत्व को प्रचंड बहुमत प्राप्त हो  गया।  

         श्रीराम तिवारी

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

अब जो सरकार महाराष्ट्र में बनने जा रही है - वो 'नीम चढ़ा करेला ही होगी "




       भाजपा पर आरोप है की वह धुर दक्षिणपंथी -भृष्टतम -उग्र  पूंजीवाद  -को शिरोधार्य करने के साथ -साथ उग्रतम  बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता  की तरफदार है। महाराष्ट्र में चूँकि उसे वांछित बहुमत नहीं मिल पाया है.  अतएव सवाल है कि  सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उसे सरकार बनाने के लिए  राज्यपाल महोदय जब बुलाएंगे तो उसके  'बाह्य और  आंतरिक अलायन्स पार्टनर  दोनों होंगे।  दरसल भाजपा के सहयोगी बनने के लिए महाराष्ट्र  में शिवसेना ,राकांपा ही नहीं कुछ कांग्रेसी भी सत्ता के गलियारे में संभावनाएं तलाश रहे हैं। इसीलिये बहुत संभव  है कि गडकरी प्रभाव में-धुर दक्षिणपंथी पूँजीवादी भृष्ट - राकांपा -और हिंदुत्व  की दुहाई देने वाली - 'मराठी अस्मिता'  से महिमामंडित - शिवसेना -दोनों ही भाजपा के अगल-बगल होंगे.याने  अब जो सरकार महाराष्ट्र में बनने जा रही  है - वो  'नीम चढ़ा करेला ही होगी " इस पर तुर्रा ये की आइन्दा  महाराष्ट्र में राजनैतिक स्वरूप  जो भी होगा - उस पर वर्चस्व केवल   'नमो' का  ही होगा।

                                           श्रीराम तिवारी 

रविवार, 19 अक्टूबर 2014




     राज  ठाकरेऔर कुलदीप बिश्नोई ...को समर्पित . !


     अर्ज किया  है -  

 है पहलवानी का  दावा ,नाजुक कमर है।

खुआब नाजनियों के ,दूध की  उमर  है। । 



      रूठे स्वजन मनाइये  ,जो रूठें सौ बार।

      रहिमन पुनि-पुनि पोइये , टूटे मुक्त हार। ।



शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

काले धन के नाम पर देश की जनता को मिलेगा -बाबा जी का ठुल्लु !


स्विस खाता  धारक  भारतीय धनकुबेरों को  या मेरे शब्दों में कहूँ कि कालेधन के  'बिग  चोट्टों ' को उनके बेंकर्स ने आगाह कर दिया है कि वे अमुक तारीख तक अपना पैसा निकाल लें वरना  ....!   इधर केंद्र सरकार के- नेता कम- मंत्री- ज्यादा- या कहूँ कि मंत्री -कम -वकील ज्यादा  श्रीमान जेटली जी ने  उन कांग्रेसियों की नींद हराम कर रखी  है  जिन्हे  स्विस बैंकों की गोपनीयता पर बड़ा नाज था। जेटली जी की अदा है 'की हमारा  मुँह  मत खुलवाओ  वरना  … …! एक दूसरे  बड़े वकील साब हैं -श्री राम जेठमलानी जी वे केंद्र सरकार का टेंटुआ दवा रहें कि 'बताना ही होगा -कौन -कोन हैं उस लिस्ट में '. लिस्ट याने ८०० व्यभिचारियों-मुनाफाखोरों या कहें की देश के गद्दारों की सूची। सरकार ने ८०० में से १३६ छाँट  लिए हैं। कांग्रेस के अजय माकन को मालूम है  कि उन  का नाम इस सूची में नहीं है  इसलिए वे शिद्द्त से  सरकार को उकसा रहे हैं की 'बेलेक्मेल क्यों करते हो -दम  हो तो बताओ न ! की कौन हैं -बिग चोट्टे ' उधर  कालाधन विरोधी गैर राजनैतिक जनों-अण्णा ,रामदेव और अन्य की इज्जत  दाँव  पर है इसलिए वे अब केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री पर दवाव बना रहे हैं कि कुछ न सही  दस-बीस  के  नाम तो  बता  ही दो ! इसलिए यह तय है कि  कालाधन खोदने पर देश की जनता को बाबा जी का ठुल्लु मिलने जा रहा है।
                  यूपीए [गठबंधन] सरकार के तत्कालीन विदेश मंत्री , वित्तमंत्री,कानून मंत्री और खुद प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह ने कई   बार  संसद में और सैकड़ों बार प्रेस - मीडिया  के माध्यम से देश की जनता  को बताया था ,कि  विदेशों में जमा  -खास तौर  से स्विस बैंकों में जमा -काला धन के खाताधारकों के नामों का खुलासा कर पाना कानूनी रूप से सम्भव नहीं है।  इस पर देश के 'व्हिसिल ब्लॉबर्स' से लेकर खुद भाजपा ने भी धरती आसमान एक कर रखा  था। अब जबकि दिल्ली में  भाजपा की ही  निखालिस ईमानदार[?]मोदी सरकार   सत्तासीन है, तो अब उसके  ही  मंत्री क्यों उवाच-रहे हैं कि  खाताधारकों के नाम उजागर कर पाना संभव नहीं है? कांग्रेस तो चूँकि अभी अवसाद ग्रस्त है ,  किंचित अपराधबोध से भी पीड़ित है। कि न्तु अण्णा  हजारे,किरण वेदी,सुब्रमण्यम स्वामी,श्री-श्री रविशंकर ,अरुण शौरी ,यशवंत सिन्हा जी और मीडिया के  देशभक्त  चिंतक   अपनी-अपनी  जुबान पर दही जमाये क्यों बैठे हैं ?

    वैसे यह   विदेशों में जमा काले धन की वापसी के बारे में- इस धन के मालिकों- याने 'बिग चोट्टों'  के लिए अच्छी  खबर है। उन्हें मालूम है कि चाहे मनमोहनसिंह की यूपीए सरकार हो या वर्तमान 'मोदी सरकार' - उनका कोई बाल-बाँका  नहीं कर सकता। स्विट्जरलैंड सरकार तो तब भी  नाम बताने और सहयोग करने को तैयार थी जब भाजपा विपक्ष में और सत्ता में यूपोऐ सरकार थी। तब  बहुतेरे  कपटी मुनि -अण्णा  हजारे,  नेता वल्द अफसर -केजरीवाल ,दवंग कम- उत्साही  ज्यादा किरण वेदी , आधुनिक नारद मुनि अवतार -सुब्रमण्यम स्वामी  और बाबा कम धंधेबाज ज्यादा -स्वामी रामदेव ने देश और दुनिया में   तत्कालीन  यूपीए सरकार  की नाक में दम  कर रखा था।   इस काले धन की वापिसी के मुद्दे को  पहले मीडिया ने और  बाद में फिर  देश की जनता ने भी  हाथों -हाथ लिया था। परिणाम भी सामने है कि  लोक सभा चुनावों में , भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतत्व  में ,अभूतपूर्व सफलता मिली है।  स्विट्जरलैंड सरकारआज भी   वो सब  बताने के लिए राजी ही  जो भारत सरकार चाहती  है।  तो वर्तमान मोदी सरकार भी कुछ उसी अंदाज में इन कालेधन वाॅलों  को उसी तरह उपकृत करने  जा रही है जैसे कि  'मोनी बाबा'  की सरकार कर चुकी है।  चूँकि  जिन्होंने एकजुट  होकर यूपीए को खदेड़ा और कांग्रेस को निचोड़ा वे अब वर्तमान मोदी   सरकार   के  शरणम गच्छामि हो चुके हैं  अतः  देखने  लायक ये हैं कि  देश की जनता क्या करती है ?
                     
                                  श्रीराम तिवारी

 

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014

'लव -जेहाद' की चर्चा - वैज्ञानिक विमर्श से कोसों दूर है।

 भारत में विदेशियों के आक्रमण और विदेशी गुलामी के दौर में भी ये तथाकथित 'लव -जेहाद' नामक बीमारी हुआ करती थी।   सोलहवीं सदी में मांडव [धार] का तुर्क मुसलमान राजा - बाज बहादुर नरवर की राजकुमारी  के रूप सौंदर्य ही नहीं बल्कि उस राजकुमारी की कोकिलकंठी गायकी पर भी  फ़िदा  था। उसने रूपमती को जबरन अपने हरम में डाल  लिया। जैसा कि  दुनिया में चलन है कि 'समर्थ को नहीं दोष गुसाईं ' अतः जब  बाज बहादुर ने उसे अपने हरम डाला तो  दिल्ली के बड़े सुलतान ने उससे रूपमती को अपने हरम के लिए माँगा ,नहीं देने पर -बाज बहादुर और रानी रूपमती को आत्महत्या करनी पड़ी। इस घटना में दो मुस्लिम आक्रांता  और एक हिन्दू अबला नारी पात्र मौजूद  हैं।   चूँकि बाज बहादुर  इस जंग में मारा गया इसलिए  उसको इतिहासकारों  ने   एक 'रसिक प्रेमी' मानकर हीरो बना दिया गया। जबकि उसने भी आखिरकार  एक हिन्दू गरीब  लड़की का  जबरन शील हरण ही किया था.गुलामी के इतिहास में इस तरह की अनगिनत घटनाएँ हुईं हैं। ततकालीन समाज में -गैर हिन्दुओं की अधिकांस उपज- इन्ही बलात दुर्घटनाओं का परिणाम है।
              इस अनाचारी परम्परा   के कारण हिन्दू ओरतों को  उतसर्ग या जोहर भी  करने पड़े  हैं।  रानी पद्मावती  को ही नहीं बल्कि अनेक हिन्दू नारियों को  उस दौर में शासकों की हवश  से बचने के लिए 'अग्नि प्रवेश ' करना पड़ा था।  ओरछा के राजा के दरवार की राजनर्तकी 'रायप्रवीण' की भी करूँण  गाथा है इस सबसे निराली है  ।  रायप्रवीण के रूप सौंदर्य और उसकी नृत्यकला की अनुगूंज जब मुग़ल दरबार में पहुंची तो दिल्ली के 'तख़्त' से   आदेश हुआ कि  'फ़ौरन से पेश्तर उसे मुग़ल हरम में पेश किया जाए ", चूँकि बुंदेलखंड के राजा स्वाभिमानी और वीर थे किन्तु उनकी वीरता मुग़ल सल्तनत  के सामने ज्यादा देर नहीं टिक सकी। जब मुग़ल सिपाही रायप्रवीण को डोली में   बिठाकर दिल्ली पहुंचे तो उसने शहंशाह को लिखा ;-

    विनती  राय प्रवीण की ,सुनिए शाह सुजान।

    जूँठी  पातर  भकत  है , बारी -बायस -  श्वान।  

अर्थ ;- हे शहंशाह !आप विद्द्वान हैं ,मेरी विनती सुने ! जूंठी पत्तल केवल सूअर,कौआ और कुत्ते ही चांटते  हैं।

 अर्थात -हे सम्राट !  मैं किसी और की हो चुकी हूँ ,मुझे जूँठन समझकर ही  छोड़ दीजिये। [ क्योंकि  आप तो उनमें से अवश्य ही  नहीं हैं !] इतिहासकार  मानते हैं की दिल्ली के शहंशाह ने 'रायप्रवीण' को बाइज्जत बाअदब ओरछा वापिस भेज दिया था।  इस घटना से यह तो सिद्ध होता है की ताकतवर और  ऐयाश पुरुष को तो  किसी भी धरम - मजहब कीलड़की या औरत से परहेज नहीं। उसे रोकने वाला  पर लव जेहाद का आरोप जड़ने वाला   भी कोई नहीं।  क्योंकि वास्तव में   अकबर,सलीम,,बैरमख़ाँ,शाह रंगीले,जैसे सैकड़ों उदाहरण हैं  जो इस्लाम के लिए नहीं  बल्कि अपनी हवश के लिए ओरत खोर माने गए हैं। सामन्तकाल से अब तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। सिर्फ बोतल बदल दी जाती है शराब वही है। इस दौर में लव जेहाद की चर्चा  से चली है जो वैज्ञानिक विमर्श से  कोसों दूर है।   

 कुछ लोग  जो नहीं मानते की  लव-जेहाद  भी  कोई मुद्दा है ।  कुछ  लोग अपने मजहब से बाहर की लड़कियों या ओरतों पर नजर रखते हैं वे चाहे किसी भी धर्म-मजहब के हों यदि वे किसी के परिवार को या समाज को अपनी हवस के लिए शर्मशार करेंगे तो क्या यह सही है ? सिर्फ यह कह  देना की 'मिया बीबी राजी -तो क्या करेगा काजी '  उचित है ?  वेशक लव-जेहाद  न सही किन्तु इस विमर्श में ऐंसा तो अवश्य है कि  जिस वर्ग की लड़की को फुसलाया जाता है या धर्म -परिवर्तन  की तिकड़म बनाई जाती है उसमे अक्सर छद्मवेशी  बदमाश और हवश का पुजारी  ही क्यों निकलता है।  यदि कोई नेता [जैसे की शाहनवाज हुसेन,मुख्तार अंसारी ] ,कोई फ़िल्मी एक्टर , डॉ ,प्रोफेसर ,कलेक्टर , इंजीनियर या  सामाजिक  कार्यकर्ता यह 'लव-मेरिज' या 'प्रतिलोम विवाह' करता  है  तो  किसी को कोई  परेशानी नहीं होती। किन्तु जब कोई  गुमराह -आतंकवादी या गुंडा यह दुस्साहस करता  है तो उसे अपने मजहब की आड़ लेनी पड़ती है. मजहब की शह  पाकर वह गुनाहगार लम्पट 'धर्मयोद्धा'बन जाता है। वह लड़की के समाज वालों ,परिवार वालों को लतियाने में कभी कभार जब खुद ढेर हो जाता है तो उस लड़के के समाज जन पगला जाते हैं। उनका पागलपन ही 'लव -जेहाद ' है।  शायद ऐंसे   ही  लम्पट  लुच्चों का समर्थन करने  वालों में वे भी शामिल हो जाते हैं जिन्हे लगता है कि  'धर्मनिरपेक्षता खतरे में है 'इसलिए वे भी  समाज के  इस अनैतिक कृत्य को जायज ठहराने  लगते हैं। इनमे वे भी हैं जो अपने आप  को प्रगतिशील  और वामपंथी समझते हैं। मार्क्सवाद तो इस लव-जेहाद का समर्थन  कदापि नहीं करता।
  जो चीज मजहबी वैमनस्य या मजहबी संघर्ष पैदा करे वो तो 'वर्ग संघर्ष ' के खिलाफ ही मानी जाएगी। इस मायने में लव -जेहाद तो 'वर्ग संघर्ष' का भी शत्रु हुआ। मतलब साफ़ है कि  ये घटनाएँ सर्वहारा वर्ग  की एकता को खंडित  करती हैं। ये लव-जेहाद या कोई और  झगड़े की जड़ 'वर्ग संघर्ष' की धार को भौंथरी करती है। 
                     आजादी के ६७ साल बाद यह समस्या किस रूप में दरपेश हो रही है इसे समझने के लिए यह एक उदाहरण पर्याप्त है।   खरखौदा थाना -जिला मेरठ [उत्तरप्रदेश] के एक गाँव की वह   लड़की   -  जिसके साथ विगत अगस्त में दुष्कर्म और  गैंग रेप   की वारदात हुई थी -अब वो  स्वयं ही इस  वारदात से इंकार कर  रही  है। उस तथाकथित पीड़िता ने अब  अपने ही माता-पिता  और परिवार वालों को जेल भिजवाने का पूरा इंतजाम कर दिया है।हिंदुत्व वादियों का दवाव  ठुकराकर  वह अपने प्रेमी कलीम के साथ - 'लव-जेहाद ' पर  जाने को तैयार हो गई  है।

        अभी तक तो 'लव-जेहाद' के प्रसंग में दो ही नजरिये दरपेश हुए हैं। एक नजरिया  उनका  है  जो कि अपने आपको  हिन्दुत्ववादी या राष्ट्रवादी कहते हैं। उनका मानना है की अलपसंख्यक- मुस्लिम समाज के युवा  एक विचारधारा के तहत हिन्दू समाज की लड़कियों  या ओरतों को बरगला कर प्यार के जाल में फंसा कर उनका धर्म परिवर्तन किया  करते हैं।  उनके मतानुसार यह इस्लामिक वर्ल्ड का वैश्विक एजेंडा है।   इसीलिये 'लव-जेहाद' के विरोध के  बहाने ये हिन्दुत्ववादी - तमाम  हिन्दुओं को संगठित कर हरेक चुनाव में साम्प्रदायिक आधार पर - बहुसंख्यक वोटों का  भाजपा के  पक्ष में  ध्रवीकरण करने के लिए मशहूर हैं।  दूसरा नजरिया उनका है जो अपने आप को  न  केवल   प्रगतिशील  -धर्मनिरपेक्ष   बल्कि  बुद्धिजीवी या साम्यवादी भी समझते हैं। इनका  मत है कि प्यार -मोहब्बत पर कोई पहरेदारी नहीं की जा सकती। यह स्त्री -पुरुष अर्थात 'दो सितारों का जमी पर  मिलन'  जैसा ही है।   ये श्रेष्ठ मानव  - समतावादी  विज्ञानवादी   प्रगतिशील - धर्मनिरपेक्ष प्राणी कहलाते हैं। ये  निरंतर उन  तत्वों से  संघर्ष करते रहते हैं ,जो राजनीति  में धरम -मजहब का घालमेल करते हुए  पाये जाते हैं। किन्तु जब यही काम अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा होता है तो बगलें झाँकने लगते हैं।  पश्चिम बंगाल के वर्धमान  जिला अंतर्गत - खगरागढ़  के  मकान में हुए बम विस्फोट और   उस घटना  स्थल पर- जिसमे -वहां बम बनाते हुए मारे गए और   घायल तृणमूल के  नेता पाये गए  -यदि वे  हिन्दू होते तो सोचो  क्या गजब  हो गया होता ? चूँकि वे अल्पसंख्यक वर्ग के थे. इसलिए  अपनी धर्मनिरपेक्षता के वशीभूत  किसी ने भी  उनकी कोई आलोचना नहीं की। यही वजह है कि  एक बेहतरीन विचारधारा  होने के वावजूद बंगाल में वामपंथ को  गहरा आघात पहुंचा है और एक फ़ूहड़ -पाखंडी महिला के  भृष्टाचार  को नजरअंदाज कर  वहां की जनता उसे ही  बार-बार चुनाव  जिता  रही है। खैर यह मामला यही छोड़ मैं पुनः 'लव -जेहाद' पर आता हूँ।

     खरखौदा गैंग  रेप काण्ड के विमर्श में -  सरसरी तौर  पर उपरोक्त  दोनों  ही धड़े अपने-अपने स्थान पर सही लगते हैं। लेकिन 'लव-जेहाद'  के असर से  खरखौदा गाँव की  लड़की ने जब अपने माँ -बाप को  ही आरोपी बना दिया  तो उपरोक्त दोनों धड़े भी  कठघरे  में खड़े  हो चुके  हैं। उस लड़की ने जो नया स्टेण्ड लिया है उससे हिन्दुत्ववादी  संगठन और भाजपा नेता  तो  'बैक  फुट ' पर आ  ही गए हैं।  किन्तु  उस लकड़ी  के द्वारा -  अपराधियों  को  बचाने और माँ -बाप को उलझाने  से  सिद्ध होता है कि 'लव-जेहाद ' न केवल  एक  हकीकत है बल्कि अब वह एक लाइलाज  नासूर भी बन   चुका  है। . निश्चय ही ' यह लव-जेहाद' नामक विमर्श  सभी भारतीयों के लिए   गम्भीर  चिंता का विषय   है।   इससे यह भी सिद्ध होता है कि'लव-जेहाद' नामक  इस विषय को  प्रतिबद्धता से परे   होकर -निष्पक्ष और  सापेक्ष सत्य के अनुरूप विश्लेषित  किये  जाने की आवश्यकता है।
   

                      ;-श्रीराम तिवारी
 

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

इसीलिये इस दौर में वही जीतेगा जो सबसे बड़ा खौआ है।।

 महाराष्ट्र में  भाजपा -शिवसेना का गठबंधन टूट गया।

   खबर है कि  कांग्रेस राकांपा का भी गठबंधन टूट गया।।

   हरियाणा में भी मच रही  दल-दल में  सत्ता की  तकरार।

   यह  विचारों का संघर्ष  नहीं केवल चुनावी  खुन्नस बरकरार।। 

   'सामना ' ने लिखा है की  भाजपा तो  केवल  श्राद्ध  का कौवा है।

   चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि  किसका - कितना  पौवा है।।

    चौतरफा मुश्किलों के दौर में जनता  बहुत  दिग्भर्मित   है। 

     इसीलिये  इस दौर में  वही जीतेगा  जो सबसे बड़ा  खौआ  है।।

                        श्रीराम  तिवारी   



    हिन्दी  शब्दकोश  में आयुष्मान का अर्थ है -दीर्घायु ,चिरंजीवी !  आपके अनुसार तो दीर्घायु को दीर्घायुनी या चिरंजीविनी  भी लिखा जाना चाहिए !यह भाषा का शुद्धिकरण नहीं अपितु आपके अनुसार   भाषायनी   खुरापातिनी  है. हालाँकि साहित्यकार इसे भाषाई खुरापात  ही   कहा करते हैं।    भारतीय परम्परा में जब कोई- नर-नारी - भद्रजन [भद्रजनी नहीं !] अपने से वरिष्ठ को प्रणाम करे या नमस्कार करे या मात्र स्मरण ही करे तो वरिष्ठजन   उसे -आयुष्मान  भव : कहकर आशीष देते हैं।  चूँकि आयुष्मान एक विशेषण  है और विशेषण की यह  विशेषता है कि  उसे जेंडर [लिंग]  की जरुरत नहीं है। उदाहरण ;-गंगा निर्मल करो!अब आप चाहें तो गंगा को निर्मलनी करती रहें !


{ नयी आर्थिक नीति के दोहे - श्रीराम तिवारी }



         दुनिया  में  सबसे बड़ा, है भारत गणतंत्र।

        गण  को उल्लू बना कर  , मौज करे  धनतंत्र।। 


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      भारत के जनतंत्र को ,लगा  भयानक रोग।

     राजनीति  में  लग रहा  ,जाति -धर्म का  भोग।।


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    आदमखोर पूँजी  करे  ,श्रम  शोषण पुरजोर।

    सत्ता -सारथि बन रहे ,चोर-मुनाफा खोर।।


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बढ़ते वयय के बजट की , बनी  आर्थिक नीति।

ऋण पर ऋण लेते रहो ,यही  सनातन  रीति। ।

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अानंन फानन बिक रहे ,खेत-खनिज -वन -नीर।

पुनः विदेशी हाथ में ,भारत की तकदीर।।


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  ओने-पौने बिक चुके ,बीमा टेलीकॉम।

    तेजी से अब हो रहे ,राष्ट्र रत्न नीलाम।।


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लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा  माफिया राज।

ऊपर से नीचे तलक ,है रिश्वत का राज।।

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मल्टिनेसनल संग करें ,नेता जी अनुबंध।

नव निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तटबन्ध।। 

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    खूब खुशामद हो रही , मान मनौवल शाल।

   विगत  गुलामी में नहीं  ,इनकी मिटी  खुजाल।।

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नयी आर्थिक नीति पर ,खड़े है नए सवाल।

दुनिया के बाजार में , क्यों भारत बेहाल।।

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      { नयी आर्थिक नीति के दोहे -  श्रीराम तिवारी }








रविवार, 12 अक्टूबर 2014




        यह   हुदहुद तूफ़ान   भी ,आफत लाया संग।

        हिट एंड रन जैसे किया ,हुड़हुड़ दवंग -दवंग।। 

                          -;श्रीराम तिवारी 

डाकुओं,नक्सलियों या स्थानीय दवंगों के आतंक से मुक्ति पाने की उम्मीद तो अभी खुद मंत्रियों ,कलेक्टरों और पुलिस के ' सिघमों' को भी नहीं है।

     

         केंद्र सरकार की-सांसद आदर्श  ग्राम  योजनान्तर्गत- 'मॉडल'गाँव की अवधारणा को साकर करने की जो  शर्तें   पी.एम ने रखी  हैं -उनसे आम तौर  पर  सांसदों के परिवार वाले, और खास तौर  से  'साले- सालियां ' बहुत नाराज हैं। जबसे उन्हें खबर लगी है कि  उनके 'सांसद जीजाश्री ' अब 'ससुराल गेंदाफूल ' को लालू जी की तरह,शिवराज जी की तरह ,चौटाला की तरह  या मुलायम जी की तरह 'आउट ऑफ टर्न' उपकृत   नहीं कर  सकेंगे , तबसे  देश भर में  तमाम सांसदों के 'सास-ससुर' -साला-साली - और सपरिजन -बेहद ग़मगीन हैं। लकिन  जैसा कि  कहा गया है कि  'राजनीति  में कुछ भी असंभव नहीं है' -अतएव जल्दी ही इन  मोदी ब्राण्ड  निषेधात्मक  शर्तों का तोड़  खोज लिया जाएगा।
                      भारतीय समाज में  यह एक पारम्परिक - कुलरीत है कि चाहे वो नेता हो , महात्मा हो ,साधु  संत हो ,कलेक्टर हो,आईजी हो,थानेदार हो,चपरासी हो ,आम नागरिक हो या  सांसद हो- यदि वह बाल-बच्चे वाला है।यदि वह  'परिवारवाद' में आस्था रखता है तो निश्चय ही सार्वजनिक जीवन में कोई भी लोकप्रिय  नेता  अपने 'हितग्राहियों' को उपकृत किये बिना रह नहीं सकता।  चूँकि  मोदी जी का परिवार बहुत बड़ा है ,वे जिस 'परिवार को रात -दिन उपकृत करने के प्रयास करते रहते हैं- वो संसार का सबसे बड़ा 'परिवार है। उसे बोलचाल में 'संघ'-लिखत-पढ़त  में- 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ'  और राजनीतिक शब्दावली में 'संघ परिवार' भी कहते हैं। चूँकि 'संघ परिवार' का विस्तार  जापान से लेकर अमेरिका तक और मॉरीशस से लेकर मास्को तक फैला है इसलिए उसके हितों के सामने किसी सांसद या मंत्री की 'ससुराल ' का गाँव-खेड़ा कहाँ टिक सकता  है ?
                  भारतीय समाज में किसी  भी सद्गृहस्थ  द्वारा सम्पन्न किये गए  व्यक्तिगत या सामजिक -धार्मिक - अधिकांस कार्यों के कार्यान्वन में उसकी धर्मपत्नी का  योगदान अवश्य  हुआ करता है।  यही  धर्म पत्नी  ही  दोनों परिवारों का सेतु याने -"दोउ कुल की उजियारी" कहलाती  है।  किसी सांसद  या नेता के पैतृक  गाँव की समस्या हो या ससुराल  के विकाश की बात जब होगी-तो  मोदी जी की इस  शर्त  कि -''ससुराल या पैतृक गाँव को  गोद  नहीं ले सकते'' ।   इसके पीछे छिपे  मोदी जी के मर्मान्तक   दर्द को सहज ही समझा जा सकता है। चूँकि वे बिना धर्मपत्नी के सहयोग के ही 'सुर्खरू' हो  सके हैं इसलिए उन्हें यह पुरता है। किन्तु यदि उनके इस सिद्धांत  पर अन्य सांसदों -मंत्रियों द्वारा  अमल किया जाता है. तो तमाम सांसद पत्नियों  अपने-अपने सांसद पति   के खिलाफ विद्रोह भले ही न करें किन्तु जिस कुटुंब-कबीले के दम  पर वे जीत कर  आये हैं उनके आक्रोश का क्या होगा ?  यह भी सम्भव है कि  'मायका बचाओ आंदोलन ' या 'ससुराल गेंदा फूल' की रक्षा के लिए अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव को जंतर -मंतर पर भूंख हड़ताल करनी पड़े ! मोदी जी की तो बीसों घी में हैं ,  सिर  हिंदुत्व की कड़ाई में  है और पैर सत्ता के सोपान पर मजबूती से  टिके  हैं।
               मैं संजय दॄष्टि  से देख रहा हूँ कि महाराष्ट्र और हरियाणा में मोदी लहर कांग्रेस के लिए हुदहुद तूफ़ान बन चुकी है। मोदी का आभा मंडल और ज्यादा तेजोमय होने जा रहा है। इस तेज में खतरे भी कम नहीं हैं।  व्यक्तिवादी नियंत्रण के लिए ये घटनाएँ त्वरण का काम करती हैं। मेरा सुझाव है कि  सभी पार्टियों के  सभी सांसदों   प्रतिश्पर्धा छोड़ कर आपस में  यह समझौता कर लें कि वे दलगत राजनीति  से ऊपर उठकर 'मोदीवाद' का सामना करें। ग्राम सुधार योजना हो या कोई और  मद - वे  दि ए गए धन या फंड से - वे एक  दूसरे  की ससुरालो और पैतृक गाँवों में घुसपैठ कर  वहाँ का विकाश अवश्य करें। इससे मोदी जी की शर्त की इज्जत  बच  जायेगी और सांसदों के पैतृक गाँव या ससुरालों का भी 'कल्याण' होता  रहेगा। चूँकि सांसदों के गाँव या ससुराल भी आखिरतः  देश का ही हिस्सा हैं इसलिए मोदी जी को भी इसमें कोई खामी नहीं दिख सकेगी  ।
                    मोदी जी  की योजना है की  लोक सभा और राज्य सभा के सभी ८०० सांसद मिलकर २०१९ तक ३-३ गाँवों का विकाश कर २५०० गाँवों को 'मॉडल गाँव' बनायंगे. २०२४ तक ५-५ गाँव  गोद  लेकर  सांसदों के हाथों देश के  ४०००   गाँव का कल्याण हो जाएगा।  जो,रूस ,अमेरिका ,ब्रिटेन , फ़्रांस चीन के किसी गाँव को नसीब है। सभी को  इस योजना का समर्थन  करना चाहिए।  हम  यह मुद्दा छेड़कर  कि देश के बाकी  उन  लाखों गाँवों का क्या होगा  ? जहां इंटरनेट , जीपीएस,वाई-फाई  या रियल  टाइम वेब आधारति मानीटरिंग सिस्टम -की मांग नहीं है।-बल्कि ज़िंदा रहने के लिए पीने के  स्वच्छ पानी की -एक  कांदा  -दो रोटियां की  दरकार मात्र है।   न्यूनतम पुलिस सुरक्षा,बेहतर स्वास्थ्य सुरक्षा ,रिश्वत विहीन कार्यालय ,मुनाफाखोरी -मिलावट विहीन बाजार और जीवन के न्यूनतम संसाधन तो अभी दिल्ली मुंबई,  कोलकाता ,चेन्नई या इंदौर  वालों को भी नसीब नहीं  है. फिर देश के लाखों गाँवों  के गऱीबों की क्या बिसात कि वो सब कुछ पा  सकें जिसके  वे सदियों से हकदार हैं।  डाकुओं,नक्सलियों या स्थानीय दवंगों  के आतंक से मुक्ति पाने की उम्मीद तो अभी खुद मंत्रियों ,कलेक्टरों और पुलिस के ' सिघमों' को भी नहीं है। 
केंद्र सरकार जो कर रही है वो उसका विजन है। गाँव की जनता  हो या  शहर की यदि उसे सम्मान से जीना है तो संगठित होकर संघर्ष करना ही होगा।  भरोसे की भेंस पाड़ा  नहीं जनती ! लोग समझते हैं कि केवल वोटों के ध्रवीकरण से  या मोदी-मोदी के नमोगान से भाजपा को केंद्र में और अब -महाराष्ट्रमें  ,हरियाणा में  सत्ता मिल रही है तो  क्या यह मान लिया जाए कि  इस विजय में कांग्रेस के कुशासन या भृष्ट आचरण की कोई भूमिका नहीं है ?
 किसी ने ठीक ही कहा है ;-
                       तेल जरे  बाती  जरे , नाम दिया का होय।

                        लल्ला खेलें काउ के ,नाम पिया का होय। ।

                               श्रीराम तिवारी

शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

इन बेचारों को भी कहाँ पता था कि घर का जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध होने जा रहा है।





       लगभग तीन साल पहले जब तालिवानियों  ने एक १४ साल की लड़की  के  सिर  में गोली मारी तो दुनिया ने इस का संज्ञान लिया। उस लड़की को  महज इसलिए  गोली मार दी गई  ,क्योंकि वो पाकिस्तान के घोर  पुंसवादी और कबीलाई समाज के  पख्तुरवा  इलाके में बालिकाओं  के पढ़ने-लिखने  की वकालत किया करती थी। इस लड़की  को समय पर इंग्लैंड में- सही इलाज मिला और बच गई। जब उसे होश आया तो उसने फिर से वही अपना संकल्प दुहराया। उसकी प्रगतिशील  और  कट्टरतावाद विरोधी  वैचारिक प्रतिबध्दता को यूएन समेत सारे संसार ने सराहा। उसे कई सम्मान  भी दिए गए। वह संयुक राष्ट्र में बालिकाओं की शिक्षा  की आई कान बना दी  गई। जब तालिवानियों  ने उससे माफ़ी मांगी और वतन [पाकिस्तान] लौटने की गुजारिश की तो उसने मना कर दिया। आज  वह पाकिस्तान  की आवाम और  सरकार के लिए भी "मलाला यूसुफ जई "  हो चुकी है। अब वह एक सेलिब्रटी हो गई है।  जब  उसे भारत के 'कैलाश  सत्यार्थी के  साथ नोबल पुरस्कार  के लिए नामित किया गया  तो  मलाला के नाम पर तो  किसी को कोई अचरज नहीं हुआ ,किन्तु कैलाश सत्यार्थी के बारे में जरूर  मदर टेरेसा या अमर्त्य सेन  के साथ  हुए व्यवहार की पुनरावृत्ति  महसूस की गई है।
                                             जब कैलाश सत्यार्थी को शांति का संयुक्त नोबल पुरूस्कार दिए जाने का ऐलान हुआ तो अधिकांस  चेहरों पर  प्रश्नबाचक चिन्ह जड़े  हुए देखे गए। किसी राज्य सरकार ने ,केंद्र सरकार ने या  सामाजिक  संगठन ने उन्हें  शायद ही गंभीरता से लिया हो। हालाँकि  नोबेल पुरस्कार पाना कैलाश सत्यार्थी के  संकल्प का   अभीष्ठ  नहीं था।  वे अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव जैसे विदूषक भांड भी नहीं  हैं  कि  जंतर- मंतर पर या दिल्ली के रामलीला मैदान पर दुनिया को अपनी नौटंकी दिखाते। यदि सत्यार्थी का मिशन दुनिया भर के बच्चों का बचपन लौटाने की जिद तक न होता  या वे सत्ता के गलियारों में भगवा दुपट्टा डालकर घूमते  होते तो शायद एक आध पद्मश्री  तो अब तक उन्हें अवश्य ही मिल गया होता। कांग्रेस से तो किसी को भी तब तक  उम्मीद नहीं  जब तक उनके ' हाई कमान'की नजरे इनायत न हो जाए।   चूँकि  कैलाश से  न तो चापलूसी  की उम्मीद है और न ही वह भाजपा की 'भजन मण्डली' में  भजन गए सकते हैं । इसलिए  भाजपा की मोदी सरकार  के द्वारा कुछ संज्ञान लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता। यह भी कहा जा सकता है कि  उन्हें तो सिर्फ ५ महीने ही सत्ता में आये  हुए हैं।  अब बारी है  मध्य प्रदेश  की शिवराज सरकार  की जिन्हे न केवल १२ साल हो चुके हैं बल्कि  कैलाश सत्यार्थी  नामक व्यक्ति तो  उनके इलाके याने विदिशा में ही जन्मा है। 
                                                    अब ये तय है कि  न केवल भारत सरकार बल्कि मध्यप्रदेश सरकार  भी  कैलाश सत्यार्थी को बड़े-बड़े सम्मान देकर अपनी जग हंसाई कराने से  नहीं  चूकने  वाली? दुनिया वाले कहते हैं तो कहते रहें कि  कल तक कहाँ थे ?  वेशक इन बेचारों को भी कहाँ  पता  था कि  घर का जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध होने जा रहा है।  ये तो उन्ही को  सम्मानित करते हैं जिनकी सूची संघ बनाता है जो शख्स चालीस साल से भोपाल, विदिशा,झाबुआ ,मन्दसौर ,जबलपुर और ग्वालियर में मारा -मारा फ़िरता  रहा  हो उसे अब आप रातों रात मध्यप्रदेश का या देश का आई कान  बना लें तो इसमें आप की   क्या थराई  ? ये तो नोबल कमिटी  की महानता है कि  उसने ;-

                       हीरा पड़ा बाजार में, रहा धुल लपटाय। 

                      बहुतक  मूर्ख चले गए ,पारखी लिया  उठाय।।  

                                               श्रीराम तिवारी 

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014




     भारत के सामाजिक कार्यकर्ता  कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की [निर्वासित] क्रांतिकारी छात्रा  मलाला  यूसुफ जई  को साझा नोबल पुरस्कार मिलने पर  इस पुरस्कार की सार्थकता और  प्रासंगिकता बढ़ी  है। इन बेहतरीन शख्सियतों को सम्मानित कर नोबल कमिटी धन्य हुई है। नोबल कमिटी की टिप्पणी के इन अल्फाजों - "एक हिन्दू और एक मुस्लिम ,एक भारतीय और एक पाकिस्तानी का शिक्षा के लिए और चरमपंथ के  खिलाफ साझा संघर्ष  में शामिल होना एक अति महत्वपूर्ण विंदू है " -पर दुनिया भर में और खास  तौर  से साम्प्रदायिक और कटटरपंथी कतारों   में बड़ी  बैचेनी है।  किन्तु कुछ  प्रगतिशील उत्साहीलाल  भी नोबल कमिटी की इस शब्दाबली में किसी 'चालाकी' का सन्देश ढूंढ़ रहे हैं। जबकि नोबल कमिटी ने अमेरिकन लाबी को धता बताते हुए भारत -पाकिस्तान जैसे तीसरी दुनिया के  उन  दो देशों को इस पुरस्कार के लिए चुना -जो जंग के मुहाने पर खड़े हैं। पुरस्कार के  बहाने ही सही  भारत -पाकिस्तान को उनकी पुरातन  साझी विरासत की ओर  ध्यानाकर्षण किया है।  खास  तौर  से पाकिस्तान को एक संदेश अवश्य  दिया गया  है कि   उसका मजहबी और साम्प्रदायिक आतंकवाद  बहुत ही  खतरनाक रूप  धारण कर चूका है। मलाला को भी इसी वजह से पाकिस्तान   छोड़ना पड़ा।  चूँकि पाकिस्तान के किसी शख्स को नोबल देने से पहले  भारत को  भी साधना बहुत जरुरी था. इसलिए  नोबल कमिटी ने दोनों पड़ोसियों के एक-एक बेहतरीन 'व्यक्तित्व को एक साथ नोल्बल शांति पुरस्कार के लिए  चुना।  इस संयुकत  पुरस्कार के बहाने नोबल कमिटी ने यह सन्देश दिया है की 'सभ्यताओं के संघर्ष' के इस दौर में  इस भयानक अमानवीय नर  संहार  का प्रतिरोध शिद्द्त से  करना  जरुरी हो गया है।

                                                             श्रीराम तिवारी  



     सुशासन और विकाश  के काल्पनिक व्यामोह में  खुद की  ही पीठ थपथपाने में व्यस्त देश की  'मोदी सरकार' और मध्यप्रदेश की 'शिवराज सरकार'  को  न्याय पालिका  की अभिव्यंजनात्मक निंदा का मतलब ही समझ नहीं आ रहा  है।   विगत दिनों मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भृष्टाचार के   कतिपय मामलों  में लोकायुक्त  की  बरसों से पेंडिंग अनुशंषाओं पर प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा  कोई  कार्यवाही नहीं किये जाने  के लिए फटकार् लगाईं  थी। आज खबर है की सुप्रीम कोर्ट ने 'मोदी सरकार ' को जमकर  फटकार लगाईं है। क्या  सुब्रमण्यम स्वामी जैसे चाटुकारों   को न्याय पालिका के सम्मान की तनिक भी चिंता है ?'पर्यावरण और वन सम्पदा के दुरूपयोग' से संबंधित  उस फाइल को सरकार ने दो महीने से क्यां दबा रखा है ?सुप्रीम कोर्ट की इतनी कड़ी फटकार की "कुम्भकर्ण है ये [मोदी]सरकार "  यहाँ ब्रेकिट  में मोदी शब्द मेने जोड़ा है !   क्या  स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐंसा कोई और उदाहरण है।   क्या यह नैतिक कदाचरण और असंवैधानिक कृत्य नहीं है   ?

                       श्रीराम तिवारी  



    खूँखार   तालिवानियों  की गोलियों और गालियों की परवाह किये बिना पाकिस्तान में महिलाओं और बच्चियों की शिक्षा -सुरक्षा के लिए धृणसंकल्पित मलाला युसूफ जई और भारत में बाल मजदूरों -बालस्वास्थ्य -बाल्य अधिकार के लिए संघर्ष का नेतत्व करने वाले  कैलाश सत्यार्थी  को संयुक्त नोबल शांति पुरूस्कार  के लिए नामित किये जाने पर लख -लख  बधाइयाँ !

    आज जबकि   भारत पाकिस्तान के कुछ गुमराह लोग  अपने-अपने वतन को युद्ध की आग में झोंकने के लिए उत्ताउले  हो रहे हैं ऐंसी नाजुक घड़ी में दोनों देशों  में शांति के कपोत उड़ाने  की तमन्ना रखने वालों  को ,मानवता  की हिफाजत के लिए संघर्ष करने वालों को और  शोषण -अन्याय से मुक्त करने की जद्दोजहद करने वालों को यह एक गौरवान्वित करने वाली  खबर है कि   कामरेड मलाला युसूफ जई  और साथी कैलाश  सत्यार्थी  -  दोनों के दिलों में साम्प्रदायिकता   उन्माद के लिए कोई स्थान   नहीं है।  दोनों  को बहुत-बहुत शुभकामनाएं !
     
    श्रीराम तिवारी 

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

लेकिन पाकिस्तान का बिल तो अमेरिका भरता है जेटली जी !



     भारत की जनता ने -  पाकिस्तान के शासकों  का  या  वहॉं  की आदमखोर सेनाओं  का  -कभी भी भरोसा नहीं किया। वेशक पाकिस्तान में अमनपरस्त जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है जो एक ओर  तो उधर पाकिस्तान में   गुलामी की जिंदगी जीते हुए  भी शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष कर रहा है ,दूसरी ओर  यही  संजीदा समाज पाकिस्तान में लोकतंत्र के अक्स को शिद्दत से पाल- पोश रहा है।पाकिस्तानी हुक्मरानो पर अमेरिका का वरद हस्त होने और उसी के इशारे पर  ही   पाकिस्तान में वर्ग संघर्ष   की  नाल का मुँह  भारतीय सीमाओं की ओर  कर दिया जाता रहा है। अब जबकि भारतीय नेताओं ने अमेरिका के सामने लगभग साष्टांग दंडवत ही कर दिया है तब पाकिस्तानी फोजोँ का भौंकना एक अनबूझ  पहेली है। पाकिस्तान के अधिकांस- उद्यमी, शिक्षाविद और संगठित क्षेत्र के मजदूर-किसान नहीं चाहते कि  भारत  की जनता से निरंतर  रार  ठानी जाए। पाकिस्तान के शासकों-सेनाओं और कठमुल्लों की  फितरत को वे भी समझते हैं और जो नहीं समझते उन्हें भी  समझाया  जा सकता  है ,जो पाकिस्तानी नराधम अकारण भारत पर भौंकते रहते हैं। वे क्रूर काल के हाथों जमीदोज किये जाते रहे हैं।  पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में तो पाकिस्तान ने  अमेरिकी -ऍफ़-१६  विमानों से भारतीय क्षेत्रों में अंदर तक घुसकर बमवर्षा भी की है। अमेरिका का वीटो पावर हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। तब भी भारतीय सेनाओं के द्वारा -पाकिस्तान के हमलों का  करारा जबाब ही दिया जाता रहा है। दनिया जानती है की भारत की फौजें ही थीं जिसने  पाकिस्तान की दरिंदा फौज के हथियार डलवाये थे। दुनिया जानती है कि  पाकिस्तान का  गरूर तोड़ने वाली भारतीय सेना की ताकत क्या है ? भारतीय फौज की ताकत पर ही तो पाकिस्तान के दो टुकड़े किये गए हैं। बाॅग्ला देश बनाया गया है  किन्तु  इसके लिए इंदिरा जी ने वैसी वयानबाजी नहीं की जैसी इन दिनों  भारतीय नेता और मंत्री किये जा रहे हैं।  क्या यह उचित है कि  भारतीय शासक वर्ग याने सत्तारूढ़ नेतत्व वजाय कुछ ठोस उपाय करने के -केवल कोरी लफ्फाजी में ही इस विकट संकट  की अनदेखी करता रहे ?
                       जब जेटली जी ,मोदी जी या राजनाथ जी बोलते हैं तो आशंका होती है कि  कहीं ये अनाड़ी नेता भारत को युद्ध की आग में झोंकने को आमादा तो नहीं हैं ? ये नेता कह रहे हैं कि 'पाक को  भारी कीमत चुकानी पड़ेगी ' इससे क्या तात्पर्य है ? पाकिस्तान की ऐयाश फौजो में इतना दम नहीं कि  वे भारत का मुकाबला कर  सकें। किन्तु  अमेरिका  के हथियार जो फ़्री -फ़ोकट में पाकिस्तान को मिल रहे हैं या  सऊदी अरब  और  दुबई से जो आर्थिक मदद उसे मिल रही है उसका कूटनीतिक तोड़ इन भारतीय नेताओं के पास है क्या ? पाकिस्तान को किसी चीज की कीमत नहीं चुकानी है।वह  तो  आतंकवाद ,ड्रग  माफिया और नकली करेंसी का जाल भारत में फैलाकर -कश्मीर राग छेडकर यूएनओ की नींद हराम कर रहा है। भारत से उलझने में उसे जो भी नुक्सान होगा उसकी भरपाई अमेरिका या चीन करने को उधार बैठे हैं। भारत तो एक जिम्मेदार और अमनपसंद देश है।अपनी गरीबी और ख़राब आर्थिक स्थति  का ढिंढोरा अमेरिका और जापान में पीटने के बाद भारत के नेताओं को ये कहने  की हिम्मत भिो नहीं बची की कह सकें है कि  हम आज इतने सक्षम हैं  की पाकिस्तान के चार और टुकड़े कर सकते हैं।
                           दुनिया को मालूम है कि  भारत को इतना ताकतवर बनाने में ५० साल लगे हैं।  ५० साल अवश्य लगे हैं। किन्तु इतने वरस  देश पर जिन्होंने राज किया वे नेता तो मोदी जी की नजर में नितात्न्त मक्कार और नकारा थे !   जिस पार्टी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए उस कांग्रेस   से देश को मुक्त करने की बात की जाती है। जिस नेता ने अमेरिका और पाकिस्तान दोनों को पछाड़ा उस नेता का नाम अटलजी ने भले ही 'दुर्गा' रखा हो किन्तु आज के भाजपाई नेता सत्ता मद में चूर होकर - भारतीय इत्तिहास सेउसका नाम  मिटाने और कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाने  में कुछ भी शर्म महसूस नहीं करते।  भाजपा नेताओं ने-मोदी सरकार ने -कांग्रेस की ही  पूँजीवाद  परस्त नीतियों पर अपनी दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक सोच का मुलम्मा भर चढ़ाया है।  पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को और ज्यादा आगे बढ़ाते हुए वर्तमान भाजपा नेता कांग्रेस के कुशासन से सिर्फ एक चीज में आगे हैं कि  ये ढपोरशंखी हैं।  जबकि वे मौन रहकर भी न केवल अपने देश की बल्कि पाकिस्तान की भी बारह बजाते रहे हैं।
                                श्रीराम तिवारी

विकाश नामक कुकुरमुत्ते को पैदा करने के लिए 'इन्वेस्टर्स समिट ' जरुरी है !


 मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान के   कृत संकल्प  और भाजपा के पूँजीवादी  अजेंडे की परिणीति स्वरूप
 इंदौर का दूसरा  'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' अब अपने अंतिम चरण में है। प्रधानमंत्री  श्री मोदी जी भी  इंदौर आये और 'ब्रिलिएंट कन्वेंसन 'सेंटर में  प्रकट  भये। वहाँ उपस्थित देश-विदेश के पूँजीपति  वर्ग को  वे ये बता गए की शिवराज के नेतत्व में मध्यप्रदेश   हर क्षेत्र में अव्वल   हो गया है। आप लोग उनकी सदाशयता और प्रदेश की प्रचुर सम्पदा का  भरपूर  आनंद लीजिये।आप लोग देश के वेरोजगार युवाओं का सस्ता श्रम खरीदिए। आप  उद्यमी जन सामूहिक रूप से मौके का फायदा उठाइये और हमारी सत्ता का   मजा लूटिये। उन्होंने मध्यप्रदेश  की और शिवराज की  इतनी  जमकर  तारीफ़ की- जितनी   कभी मोदी जी की  शिवराज ने भी नहीं की होगी।  क्योंकि शिवराज को तो सुषमाजी ,आडवाणी जी और अनत कुमार जैसे  ढेरों नेताओं के मिजाज का भी ध्यान रखना पड़ता था।   मोदी जी तो "परम स्वतंत्र न सर पर कोई ! भावे  मनहिं करहिं सब सोई ! !"
                               अपने प्रतिदव्न्दियों या प्रतिश्पर्धियों के प्रति   मोदी जी की यह अदा - लाक्षणिक  आदत या   राजनैतिक  मजबूरी उन्हें तब   हास्यापद  बना  देती है जब वे यही  उद्घोष अन्य प्रदेशों में भी करते हैं।  जब वे गुजरात में होते हैं तो गुजरात सारे संसार  का ही नहीं  विकसित ब्रह्माण्ड का भी 'धुरी' बन जाता है। जब वे महाराष्ट्र में होते हैं तो वह सम्पन्नता और विकाश का वैश्विक 'मॉडल' बना दिया जाता है। यहां तक  कि जब  वे कभी बिहार में  होते  हैं तो  विकाश के पुरातन गीत भी गाने लगते हैं।  वे  इतिहास की भी ऐंसी-तेंसी  करने में  नहीं  हिचकिचाते।  एक बार तो मोदीजी ने नालंदा विश्विद्यालय के बहाने - पेशावर -पाकिस्तान से 'तक्षशिला'  उठाकर  भी  बिहारी  वोटरों को दे दिया था। वे जब  निर्धनतम  राष्ट्र - भूटान या नेपाल जाते हैं तो  ये गरीब देश  भी  उन्हें  डेनमार्क  और नार्वे जैसे लगते हैं। दिल तो है दिल दिल का- क्या कीजे ?
                   बहरहाल  उन्होंने मध्यप्रदेश के भाजपाइयों  से खचाखच भरे'ब्रिलिएंट-कन्वेंसन'- सभागार में उपस्थित  चंद गिने-चुने -जाने-पहिचाने -उद्यमियों  को  देवीय वाणी से आल्हादित  कर ही  दिया।  मोदी जी के  आशीष बचन  हैं कि  - हे  पूँजीपतियों -उद्यमियो-दलालो- ठेकेदारो ,  भूस्वामियों ,सूदखोरों और   भारत के  राष्ट्रीयकृत बेंको को चुना  लगाने वालो सुनों - स्विस बैंक के खाता धारको आओ  ! अपनी मुनाफाखोरी की भूंख - देश में या मध्यप्रदेश में मिटाओ ! आप लोग  अपनी आकांक्षाओं के सपने   देखो। मैं आपके सपनों को साकार करूंगा।  उनके अनुसार  देश और प्रदेश के विकाश के लिए  इस तरह के इन्वेस्टर्स मीट या समिट  बहुत जरुरी हैं। जब तक  ये आयोजित नहीं  किये  जाएंगे, तब तक विकाश    हो ही नहीं सकता !  विकाश नामक कुकुरमुत्ते   को पैदा करने के लिए 'इन्वेस्टर्स समिट ' जरुरी है !
                                                        इस समिट से पहले मुझे यह गलत फहमी थी कि  जिस तरह मख्खियाँ खुद-ब -खुद गुड  की ओर   खिचीं  चली  आती हैं।  शायद उसी तरह धंधेबाज ,व्यापारी,दलाल,बिल्डर्स,भूमाफिया , ठेकेदार या पूँजीवादी  नेता  भी खुद -ब -खुद ही मुनाफे   की परिश्थितियाँ और चांस देखकर- मुफ्त  का चंदन घिसने पहुँच जाय करते हैं।   कौड़ी मोल जमीन ,मुफ्त -बिजली-पानी और सस्ता श्रम  देखकर  ही काइयाँ धन्धेवाज़ -अपनी लाइन चुनता है। मेरी यह ग़लतफ़हमी आधी तो शिवराज जी ने और आधी मोदी जी ने दूर कर दी है।  इन नेताओं के अनुसार देश और दुनिया में  जो उद्योग धंधे चल रहे हैं ,बाजार-मंडियां  और मेले-ठेले चल  रहे  हैं वे सब सरकारी प्रयासों का ही प्रतिफल है। तब तो ये भी  मानना  जोखिम भरा हो सकता है कि  ६७ साल में से चार माह घटा दो -उसके पहले वाला   इसी तरह का उजबक विकाश और उपलब्धियां किसी और नेता या  पार्टी के खाते में  ही लिखे  जाएंगे  ! फिर तो सूखा -बाढ़ ,आतंक,महँगाई  और सामुद्रिक तूफ़ान भी सरकार के प्रयासों का परिणाम होने  चाहिए  ! शायद सीमाओं  पर बारूदी दुर्गन्ध भी   इन्ही  के प्रयासों का परिणाम  सिद्ध किया जासकता है।
                                 इन्वेस्टर्स समिट के सारांश अनुसार -ये तो सरकार ही है जो ज्योतिषियों की तरह  -उद्योगपतियों को यह ज्ञान देती है कि  वे कहाँ-कहाँ पैसा लगाकर -सर्वाधिक मुनाफाखोरी कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें  पीले चावल भेजकर आमंत्रण  स्वरूप 'इन्वेस्टर्स समिट' के बहाने देश और प्रदेश की जनता के खून पसीने की कमाई को 'स्वागत-सत्कार' में लुटाया जा रहा है।  दूसरी और गरीब खोमचे वाला ,सब्जी वाला ,फेरी वाला ,फूटपाथ वाला ,रिक्से वाला ,सफाई वाला ,खेत-खलिहान में पसीना बहाने वाला और सभ्रांत वर्ग के  विकाश  के लिए -चौड़ी-चौड़ी सड़कें   बनाने वाला , 'नक्षत्र-ब्रिलिएंट कन्वेंसन हाल और बड़े-बड़े  माल्स बनाने वाला 'मजदूर' -शासन-प्रशासन  के मार्फ़त पूँजीपति  वर्ग के लिए  -उनके सिस्टम का पुर्जा मात्र है।

                           श्रीराम तिवारी
                                            

बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

और कोई विकल्प नहीं आसान।

       गणतंत्र हुआ धनतंत्र -महान।

      धर्मनिरपेक्षता हुई कुर्बान। । 
   
      मुफ्त में  क्या कोई किसी को,

      यूँ ही चढ़ा देगा  परवान।

      विदेशी पूँजी या भीख से ,

        नहीं बनेगा   भारत महान।। 

       सीमाओं पर अशांति निरंतर,

       सागर में नित नए  तूफ़ान।

       नेताओं के सैर  सपाटे ,

      अमेरिका दक्षेश जापान।।

      महँगाई  कालाबाजारी ,

     रिश्वत का   नहीं कोई  निदान।

    अमीर  ज्यादा  हुआ अमीर  ,

    असुरक्षित हैं मजदूर किसान।।

    वापिस लाएंगे  काला धन ,

   चुनावों में  किया था  बखान।। 

   अब पानी पी-पी कर कर रहे ,

   नेता पी पी पी का गुणगान।

   बिक  रहे जल-जंगल -जमीन ,

    फलता फूलता माफिया  महान । ।

     एकजुट संघर्ष के सिवाय अब,

    और कोई विकल्प नहीं आसान।

  गणतंत्र हुआ  धनतंत्र -महान।

   

      श्रीराम तिवारी 

क्या यह एक अस्थाई आंशिक एकाँकी नाटक जैसा कृत्य नहीं है ?

   


       वैसे तो   इंदौर  को मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है। किन्तु  देवी अहिल्याबाई होल्कर  की पावन -पुरातन-मालवा की इस   नगरी को-  यहाँ के बाजारों ,कपड़ा मिलों और उद्द्योग धंधों  ,तीज- त्यौहारों ,  झाँकियों   -की वजह से  देश और दुनिया में शोहरत पहले से ही हासिल  थी।  विगत शताब्दी  के मध्य तक तो   इंदौर का मिल क्षेत्र  देश के मजदूर आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र  भी हुआ करता था।  कभी यह मिल क्षेत्र -मजदूरों,मंडियों  और देश की  आजादी के संघर्षों का केंद्र हुआ करता था।  अब ये क्षेत्र पूँजी निवेश के नाम पर  नेताओं के निजी हितों को साधने और  मजदूर-किसानों के विनाश का साक्षी होने जा रहा  है। यहां पहले भी  भारत के पूँजीपतियों  को मुफ्त में  जल-जमीन- जंगल  उपहार में  दिए गए हैं किन्तु इस के वावजूद शिवराज सरकार को लगा कि  वे  भी मोदी जी के 'मेक-इन -इण्डिया' की तर्ज पर कुछ नया करें।  इसलिए अबकी बार - खूब मान-मनुहार  के साथ - बहरीन , बहामास , संयुक्त  अरब अमीरात, सिंगापुर,हाँगकाँग,  दुबई , इस्रायल,कांगो और साऊथ अफ्रीका  वालों को लाल-कालीन बिछाई गई है। इंदौर में  होने  जा रही तीन दिवसीय   ग्लोबल समिट के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंग चौहान और देश के प्रधान  मंत्री मोदी जी इन निवेशकों  की  इंदौर में मेजवानी  करने जा रहे हैं। इस पूँजी निवेश से किसका कितना और कब विकास होगा ये तो पता नहीं किन्तु अभी तो  इंदौर के उस हिस्से की बल्ले -बल्ले है जहां पर इन पंक्तियों के लेखक का भी स्थाई 'वसेरा' है।
                     राजनैतिक शब्दावली में इंदौर  शहर के दशमांश उत्तर पश्चिम  हिस्से को 'दो  नंबर क्षेत्र'  कहा जाता  है। यह  क्षेत्र  भाजपा के कद्दावर नेता   कैलाश विजयवर्गीय  की जन्म भूमि और कर्म भूमि भी है। उन्ही   के नेतत्व में और उनके पट्ट शिष्य  मेंदोला जी के संरक्षत्व में - इस क्षेत्र का बाकई  काफी  विकाश हुआ है। हालाँकि  यह विकाश केवल भू माफिया , बिल्डर्स ,अफसर और नेताओं  तक ही सीमित  है. किन्तु   इसी बहाने  ही सही इंदौर  के इस क्षेत्र में चौड़ी-चौड़ी बना दीं गईं।   बड़े-बड़े बंगले, सुपर कॉरिडोर,सुपर बाजार,सुपर मार्केट और सुपर ऑडिटोरियम  बना दिए गए।  बड़े-बड़े माल्स,बिग बाजार,तथा 'कन्वेंशन सेंटर' भी इसी क्षेत्र में  ही बनाये गए हैं। जिस 'नक्षत्र और ब्रिलियंट कन्वेंशन में यह  समारोह आयोजित किया गया है वह मेरे निवास से मात्र ४०० गज की दूरी पर  हैं।   जिस  कन्वेंशन सेंटर्स में तथाकथित ग्लोबल समिट की धूम मची हुई है। उसके आसपास से लेकर एयरपोर्ट तक कहीं भी गंदगी का नामोनिशान नहीं है।  न केवल इस क्षेत्र को बल्कि लगभग पूरे इंदौर  नगर को चमका दिया गया है।
                                                  मेरा अभिप्राय ये हैं कि  जब हम ये शानदार काम तीन दिन के लिए  कर सकते हैं तो हमेशा के लिए किये जाने की मनाही कहाँ है ?वही शासन ,वही सरकार,वही मजदूर ,वही आर्थिक  संसाधन होते हुए भी - तब क्यों जबाब दे जाती है जब ये समारोह खत्म हो जाता है। तब पूरा शहर फिर से सूअर-कुत्तों,गायों-सांडों और चोर- उठाईगीरों  का चरागाह क्यों बन जाता है। वेशक में जिस इलाके में रहता हूँ -उसे -दो नंबर क्षेत्र  कहते हैं। इसमें  -प्रमुखतः  नंदानगर,  सर्वहारानगर   एमआईजी, एच आई जी  , बजरंगनगर ,मेघदूतनगर ,शीतलनगर,सुखलिया, स्कीम-५४,स्कीम-७४ और स्कीम -७८  इत्यादि कालोनिया विद्द्य्मान हैं।  इसी स्कीम-७८ में प्रदेश का  अधिकांस पैसा  क्यों लुटाया जा रहा है ?आज जो  सड़कें चमक रहीं हैं वे तीन दिन बाद  गंदगी से लबरेज क्यों हो जाना चाहिए ? शहर के सड़क किनारे  वस्ने वाले -गरीब-गुरबा पता नहीं कहां भगा  दिए गए हैं ?ढोर पकड़ कर पता नहीं कहाँ छोड़े गए हैं ?कुत्ते-सूअर,तो क्या मच्छर  भी भगा दिए गए हैं?
 क्या यह एक अस्थाई आंशिक एकाँकी नाटक जैसा कृत्य नहीं है ?
   यहाँ के भाजपाई नेताओं को  -जिन्हे बड़े गर्व से दो नंबरी  कहा जाता है। अपने नेता  कैलाश विजयवर्गीय   की अनुपस्थति  से थोड़े मायूस हैं. क्योंकि वे  आजकल हरियाणा में तैनात हैं। यह सर्वविदित है कि उन्होंने ही इस क्षेत्र को इतना विकसित कराया है।  यह भी सर्वज्ञात है कि उनके जूनियर और प्रदेश में सर्वाधिक वोटों से जीतने वाले नेता और विधायक पंडित  श्री रमेश मेंदोला जीहैं।  सुना है कि जिनकी इच्छा के बिना इस क्षेत्र में पत्ता भी नहीं  हिलता उन मेंदोला जी को भी इस   'ब्रिलिएंट कन्वेंशन 'में प्रवेश के लिए पास जुटाने में पसीना आ रहा है। ऐंसा लगता है की भाजपा में सभी जगह आपसी बैरभाव का समावेश हो चूका है। यही वजह है कि   ईर्ष्यावश  या सत्ता की प्रतिद्व्न्द्िता से डरकर -मुख्यमंत्री जी ने और उद्द्योगमन्त्री यशोधरा राजे ने 'दो नंबरी नेताओं 'को  इस 'ग्लोबल समिट' से दूर रखा है। बहुत सम्भव है कि  मोदी जी भी इस समिट  को उतना भाव नहीं देंगें कि  शिवराज की सफलता में चार चाँद लग जाएँ ! ये वाक्यात यह सावित करते हैं कि  भाजपा  न केवल अंदर  ही अंदर धधक रही है बल्कि उसकी आंच से देश और प्रदेश के विकास भी प्रभावित हो रहे हैं।

                    श्रीराम तिवारी 

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

यदि बच्चों को जमाने के साथ चलना है तो खेलना जरुरी है।



   अभी-अभी दक्षिण कोरिया में सम्पन्न हुए एशियाई खेलों में  भारत  के जिन  बहादुर  खिलाडियों  ने मैडल  हासिल किये  हैं और देश का नाम रोशन किया  है ,उन्हें लख -लख  बधाई ! पदक तालिका में चीन के प्रथम  स्थान पर होने और  लगभग पौने चार सौ पदकों  का विशाल स्कोर होने के समक्ष - भारत के  ५५ पदक  और आठवाँ स्थान होना इस मायने में बहुत  लज्जास्पद है कि  हम जनसंख्या में तो  उससे आगे निकलने को भी तैयार हैं। हम  चीन से न केवल   व्यापार  में ,न केवल तकनीकि  में ,न केवल रक्षा संसाधनों में बल्कि  व्यवहार  में भी बराबरी की उम्मीद करते हैं।  किन्तु खेलों में ,शिक्षा में ,साक्षरता में  ,स्वास्थ्य में ,रोजगार में और अनुशासन में  चीन से बराबरी की कोई चर्चा करना हमारे मीडिया को या हुक्मरानों को कतई  स्वीकार नहीं। खेलों में  हम अभी भी उससे आठ पायदान नीचे हैं।   चीन के साथ  इतने विशाल अंतर के  वावजूद  हम अपने खिलाडियों के  अथक परिश्रम  को सलाम करते हैं और उनके द्वारा अर्जित  ये थोड़े से मेडल भी  हमारे  लिए बेहद कीमती  हैं।
                                    आजादी के तुरंत बाद भारत में पता नहीं किस उजबक ने  ये नारा दिया कि "पढोगे-लिखोगे बनोगे नबाब ! खेलोगे  कूंदोगे  होवगे खराब !! " एक बात मुझे सदैव सालती है कि मेरी पीढ़ी के लोग वास्तव में खेलों को बेहद हेय  दॄष्टि  से  ही देखा  करते थे। इस प्रवृत्ति ने भारत को इस कदर जकड़ा कि वो जब तक इससे उभरने की जुगत भिड़ाता  उससे पहले ही उसे  क्रिकेट रुपी विषधर ने डस  लिया। आमिर खान ने 'सत्यमेव जयते '  के मार्फ़त खेल का सच दिखाकर वाकई देशभक्तिपूर्ण कार्य किया है। इस कार्यक्रम से लोगों को जानकारी मिलेगी की 'खेल सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं बनाता बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनाता है 'तीसरी पारी का पहला शो शिद्दत  से आह्वान करता हुआ प्रतीत होता है कि स्कूली शिक्षा में खेल अब 'जरुरी' किया जाना चाहिए। गणित,हिंदी,अंग्रेजी,साइंस या ग्रामर की तरह खेल भी अनिवार्य किया जाना चाहिए।आमिर ने  यह सवाल बड़े मौके पर उठाया  है।
                हिन्दुस्तान के खिलाडी  चंद मेडल्स लेकर अभी-अभी दक्षिण कोरिया से लौटे हैं। वहीँ चीन की गर्दन में  सैकड़ों मैडल समा नहीं रहे  हैं। भारत और चीन के बीच न तो भौगोलिक दूरी है और न ही जनसंख्या में कोई खास अंतर ,फिर क्या कारण है कि न केवल एशियाड  बल्कि ओलम्पिक में भी चीन भारत से मीलों आगे निकल जाता  है। बहुत संभव है कि  जिन देशों के खिलाड़ी ज्यादा मेडल्स ले जाते हैं वहाँ खेल को इज्जत दी जाती हो। खिलाडी को बचपन से ही तराशा जाता हो। यह भी सुना गया है कि  चीन सरकार अपने खिलाडियों को न केवल बड़े-बड़े कॉटेज ,खेल के मैदान  और स्कूली अध्यन की सुविधाओं मुहैया कराती है बल्कि इस के साथ -साथ उन्हें कड़े अनुशासन में भी  रखती   है। चीन में प्रतिस्पर्धी खिलाडियों को बजीफा -आजीविका का इस तरह प्रावधान है.वहाँ यह धारणा  बन चुकी है कि खेलकूंद से बच्चा खराब नहीं होता बल्कि एक अच्छा इंसान भी बनता है. वहाँ स्कूलों में जिस तरह साइंस के पीरियड होते हैं वैसे ही  वहां खेलों के भी संजीदा पीरियड रखे जाते हैं।  कॅरियर के लिए भारत में जिस तरह इंजीनियरिंग,मेडिकल,या विजनिस  मैनेजमेंट  में स्टूडेंट अपना भविष्य तलाशते हैं उसी तरह चीन के युवा भी इन क्षेत्रों के अलावा खेलों में भी अपना कॅरियर  तलाश लिया करते हैं।  चीन में खेल कोई अनुत्पादक  श्रम  नहीं है  बल्कि खेल वहाँ व्यक्ति और राष्ट्र के लिए वहाँ सर्वोपरि है।
                                                भारत को अभी तो उस मानसिकता से निकलना होगा कि  खेलने  से बच्चा खराब हो जाएगा।   बरसों पहले ही चीन ,जापान ,चेक गणराज्य ,पूर्व सोवियत संघ ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप  में भी ये धारणा  विकसित की गई थी कि खेलकूंद से कोई बच्चा खराब नहीं होता बल्कि वह एक अनुशासित और बेहतर इंसान बनने  की अपनी शक्ति  में बृद्धि करता है। आधुनिक पतनशील समाज में खेल को बुराइयों से लड़ने का ,शोषण से लड़ने का  ओजार  बनाया जा सकता है। जो बच्चे खेलते नहीं वे अवश्य बहक सकते हैं  किन्तु जो किसी खास  खेल में रूचि रखते हैं और यदि उन्हें तदनुरूप कुछ मदद मिले तो वे न केवल बेहतर नागरिक बन सकते हैं बल्कि देश का नाम भी रोशन कर सकते हैं। सत्यमेव जयते ने इस पहलु को भी कुछ हद तक छुआ है।  आमिर को धन्यवाद और उनके कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते ' को दिखाने वालों का  भी तहेदिल से शुक्रिया  !
                                         
                                           श्रीराम तिवारी 

हम भारत के लोग तो 'हीरो' या अवतार में ही अटूट विश्वाश करते हैं।



    प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका  यात्रा  के  दौरान अमेरिकी  राट्रपति  मिस्टर ओबामा  के साथ  लगभग  एक दर्जन के करीब  द्विपक्षीय  समझोते सम्पन्न हुए हैं। अधिकांस समझौतों और   करारों पर मत- मतान्तर   हो सकते हैं  किन्तु उनमें  जो सबसे खतरनाक और  भारत विरोधी समझोता है - "बौद्धिक सम्पदा पर उच्चस्तरीय कार्य समूह  का गठन और उसके पेटेंट निष्पादन अधकार''-   इस  करार  के बहाने अमेरिका ने  हम भारतीयों को जोरदार झटका दिया  गया है।इस संधि के बहाने अमेरिका को याने उसके उद्द्य्मियों को भारत में दवाओं के पेटेंट की व्यवस्था को उदार बनाने का अबाधित अधिकार प्राप्त हो जाएगा। यह  जानकारी भी अमेरिकी मीडिया को अमरीका के ही एक ज्ञान प्रसार संबंधी -गैर सरकारी संगठन -'नॉलेज  इकोलॉजी इंटरनेशलन 'के निदेशक मिस्टर जिमी  लॉव  ने दी है। उन्होंने खुद ही इस षड्यंत्र की पोल खोलते हुए उ  नके ही मुल्क अमेरिका  की सरकार को लताड़ लगाईं है। उन्होंने भारत को भी आगाह किया है कि इस संधि से भारत पर उदारता से दवा पेटेंट देने और दवाओं की अनिवार्य लायसेंस व्यवस्था के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का और कीमतों के निर्धारण का बेजा अधिकार तथा दवाव  डाले जाने की पूरी संभावनाएं हैं।  स्वाभाविक है कि  इसका खामियाजा देश की जनता को ही भुगतना होगा।
                                    हम भारत के लोग या  तो किसी  'हीरो' या किसी अ वतार   में या किसी डॉन  में ही अ टूट  विश्वाश करते हैं। हम  और हमारा मीडिया तो रूप और आकर में ही रमण  करता है।  चाहे वो कितना ही बड़ा ढोंगी या पाखंडी हो किन्तु हम अ पने 'नायक' की   चरण वंदना के लिए दुनिया  भर में बदनाम हैं।  जब कोई भारतीय  नेता  विदेश में होता है या किसी विदेशी से अपनी ही सरजमीं पर कोई ट्रीटी -ब्रीटी  करता है  तो   हम सभी  नत मस्तक होकर आत्ममुग्धता के वशीभूत हो जाया  करते हैं। परिणाम में हम   पाते  हैं  कि  सामने वाला तो हमें निचोड़ने की फिराक में   ही  है और हमारा  नेता अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व ऐंसा  पेश कर रहा  है कि  कोई सामन्तकालीन विदूषक भाँड  भी शर्मा  जाए।  हमारा  प्रिंट-छप्य -दृश्य,श्रव्य और सोशल मीडिया  यह देखने में जुट जाता है कि  हमारे नेता ने क्या पहना है ? हमारे नेता  ने क्या  खाया है ?  हमारे  नेता ने एक दिन में कितने कुर्ते बदले हैं ?उपवास किया है या नहीं ? उपवास के दौरान गर्म पानी पिया या ठंडा ?हमारे नेता को सुनने वालों ने तालियां बजाईं या नहीं ? कितने बार तालियां बजी? ? हमारे नेता ने ढोलक या बांसुरी क्यों बजाई ? हमारे नेता ने किसी  बच्चे के कान क्यों ऐंठे ? यह मात्र  भारतीय  मीडिया और भारतीय बुद्धिजीवियों की मानसिकता का ही  मापदंड नही है   . यह केवल वैयक्तिक चापलूसों या स्वार्थियों के कदाचरण का सवाल नहीं है यह तो देश के सम्पूर्ण आवाम और उस राजनैतिक   विपक्ष का भी सवाल है जो केवल नकारात्मक निंदा या उथली आलोचना के  सिंड्रोम से पीड़ित है।                                                                                                                          
                                   हमारा नेता विदेशी जमीन पर  अपने ही पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों या नेताओं को कितना जलील करता है ?वह भावनाओं में बहकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को भी तैयार  हो जाता है। हम भारत के जनगण  चाटुकारिता के लिए दुनिया भर  में बदनाम हैं. इसलिए हम केवल 'यस वास ' या  यस सर में विलीन हो जाते हैं. हम  बिना  आगा -पाछा सोचे सब कुछ  अपने ' नेता' या तारणहार के भरोसे   छोड़ दिया करते हैं। लेकिन अमेरिका  के पूंजीपतियों की ,मीडिया की और एनजीओ की एक खूबी है कि  वे अपने देश के हितों की कीमत पर व्यापार नहीं करते।  भारत का उद्द्यमी, एनजीओ या मीडिया तो  वास्तव में 'धंधेबाज' ही है। वो अपने प्रधानमंत्री  के साथ अमेरिका जापान यूरोप या आसियान  में जाकर धंधे की बात तो  करता  है ,उनका समर्थन पाकर  अरबपति से खरबपति भी बन  जाता है।  वह अफसरों को रिश्वत देता है। वह चुनाव में उन  नेताओं  या पार्टियों  को ज्यादा चंदा देता है जो  सत्ता में आने के बाद उसके इशारों पर नाचे उसके साथ मिलकर देश की आवाम  को  उल्लू बनाने में जुट जाता है।  इन दिनों ये तत्व मोदीजी के इर्द-गिर्द ज़रा ज्यादा ही मंडरा रहे हैं। .
                              श्रीराम तिवारी