मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धांत का संबंध उनके ऐतिहासिक भौतिकवादी सिद्धांत से है।ऐतिहासिक भौतिकवाद का मुख्य विषय समाज संबंधी है।समाज का मूल मनुष्य है।मनुष्य प्रकृति की श्रेष्ठ रचना है।लेकिन यह 'समाज' मनुष्य का योग मात्र नहीं है।दर्शल समाज एक विशिष्ठ प्रणाली है।इस प्रणाली में उसके विविध क्रिया कलाप द्रष्टव्य हैं!
समाज की प्रणाली में दो मुख्य चीजें है।
पहली है सामाजिक अस्तित्व या सामाजिक सत्ता और दूसरी है सामाजिक चेतना।यह
सामजिक सत्ता ही सदैव सामाजिक चेतना का निर्धारण करती है।
पहली है सामाजिक अस्तित्व या सामाजिक सत्ता और दूसरी है सामाजिक चेतना।यह
सामजिक सत्ता ही सदैव सामाजिक चेतना का निर्धारण करती है।
मनुष्य के राजनीतिक,शैक्षणिक,दार्शनिक, सांस्कृतिक क्रिया कलापों से पहले उसकी वह जरूरतें होती हैं जिसकी पूर्ति के बिना वह और कुछ भी नहीं हो सकता।भोजन, वस्त्र,आवास,स्वास्थ्य और सुरक्षा मनुष्य की ऐसी ही अनिवार्य आवश्यकताएं हैं।इन सभी आवश्यकताओं का जन्म मनुष्य की चेतना या उसके चिंतन से नहीं हुआ। बल्किइनका अस्तित्व ही वस्तुगत है।
मनुष्य अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने की मूल सामग्री प्रकृति से प्राप्त करता है।किन्तु प्रकृति उसे अपने आप नहीं दे देती।जमीन पर गिरे पके फलों को पाने के लिए भी उसे श्रम करना पड़ता है।जीवकोपार्जन
श्रम के दौरान मनुष्य प्रकृति को बदलने के साथ ही स्वयं को भी बदलता है।
श्रम के दौरान मनुष्य प्रकृति को बदलने के साथ ही स्वयं को भी बदलता है।
श्रम को आसान बनाने के लिए वह औजार बनाता और उसको चलाता है।औजार बनाने वाला प्राणी बनते ही वह अपने अन्य जीवन धारी प्राकृतिक सहजीवियों से कुछअलग हो जाता है।उसकी परिभाषा बदल जाती है कि
'मनुष्य औजार बनाने वाला प्राणी है।'
'मनुष्य औजार बनाने वाला प्राणी है।'
अपनी विशेष बुद्धि और औजार बनाने की कला से मनुष्य अपने से कई गुना अधिक बलशाली जीवधारियों को नियंत्रित करने में सफल हो जाता है।किंतु ताकतवर मनुष्य जब निर्बल का श्रम हरण करने लगता है,प्राक्रतिक संसाधनों पर एकाधिकार करने लगता है तब वर्ग विभाजन होने लगता है और वर्ग संघर्ष भी!
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