रविवार, 16 सितंबर 2018

मुफ़्तखोर समाज का निर्माण !

यह सर्व विदित है कि केंद्र या राज्य सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जब तब सिर्फ मुठ्ठीभर संगठित मजदूर कर्मचारी और किसानहीआवाज उठाते रहते हैं,जबकि देश का आम आगमी इस संघर्ष से कोई सरोकार ही नहीं रखना चाहता,तो सर्वहारा क्रांति का क्या होगा?इस प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत है यह आलेख:शीर्षक-*भारत में मुफ़्तख़ोरी की पराकाष्ठा!*
मुफ़्त दवा, मुफ़्त जाँच, लगभग मुफ़्त राशन, मुफ़्त शिक्षा, मुफ्त विवाह, मुफ्त जमीन के पट्टे, मुफ्त मकान बनाने के पैसे, बच्चा पैदा करने पर पैसे, बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी) करने पर पैसे, स्कूल में खाना मुफ़्त, मुफ्त जैसी बिजली 200 रुपए महीना, मुफ्त तीर्थ यात्रा, मरने पर भी पैसे!
जन्म से लेकर मृत्यु तक सब मुफ्त । मुफ़्त बाँटने की होड़ मची है, फिर कोई काम क्यों करेगा ? देश का विकास मुफ्त में पड़े पड़े कैसे होगा?
पिछले दस सालों से ले कर आगे बीस सालों में एक एेसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है और पूंजीवादी दलों के भ्रस्ट नेता बना रहे हैं!और इनके रहते तो पूर्णतया मुफ़्त खोर होगीही!
अगर आप को पिलंबर चाहिये,विद्दुत सुधार मेकेनिक चाहिये,पैंटर चाहिये,,अव्वल तो मिलेंगे नही,इनको फोन करो तो कलेक्टर से ज्यादा व्यस्त पाये जायेंगे!काम करने को कहेंगे तो गाली दे कर कहेंगे की सरकार क्या कर रही है?
ये मुफ़्त खोरी की ख़ैरात कोई भी राजनैतिक पार्टी अपने फ़ंड से नही देती। टैक्स दाताओं का पैसा इस्तेमाल करती है!
हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं!
देश का अल्पसंख्यक टैक्स दाता बहुसंख्यक मुफ़्तखोर समाज को कब तक पालेगा ?
जब ये आर्थिक समीकरण फ़ेल होगा तब ये मुफ़्त खोर पीढ़ी बीस तीस साल की हो चुकी होगी जिसने जीवनमें कभी मेहनतकी रोटी नही खाई होगी!वो हमेशा मुफ़्त की खायेगा! नहीं मिलने पर, ये पीढ़ी चोर,चैन स्नैचर बन जाएगी!उग्रवादी बन जाएगी किंतु काम नही कर पाएगी!
सोचने की बात है कि सरकारें और समाज के रहनुमा कैसे समाज का और कैसे देश का निर्माण कर रहे हैं ?

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