गुरुवार, 20 सितंबर 2018

अथ 'श्री मच्छर कथायाम्'....


जिस किसी पढ़े लिखे व्यक्ति ने संस्कृत नीति कथा 'पुनर्मूषको- भव:' नहीं पढ़ी,उसे मेरी यह नव उत्तर-आधुनिक 'मच्छरकथा' अवश्य रुचिकर लगेगी ! लोक कल्याण के लिए और 'स्वच्छ भारत' एवं स्वश्थ भारत के निर्माण के लिए यह सद्यरचित स्वरचित मेरी मच्छरकथा फेसबुक,ट्विटर,गूगल्र,वॉट्सएप समर्पयामि....
++++ ===++++==अथ मच्छर कथा प्रारम्भ ====+======+===++++
यद्द्पि मैं कोई तीसमारखां नहीं हूँ ! फिर भी एक खास तुच्छ प्राणी को छोड़कर और किसी भी ज्ञात-अज्ञात ताकत से नहीं डरता। यद्द्पि मुझे अपनी इस मानव देह से बड़ा लगाव है,किन्तु फिर भी मैं मृत्यु से किंचित भी नहीं डरता।
मैं कोई आदमखोर जल्लाद ,हिंसक 'मॉब लिंचड़',भेड़िया,बाघ,चीता या शेर नहीं हूँ ! मैं कोई देवीय अवतार,दुर्दांत दैत्य या दानव भी नहीं हूँ। फिर भी मैं यम से भी नहीं डरता। यद्द्पि मैं ज़रा-व्याधि और नितांत मरणधर्मा और मेहनतकश इंसान रहा हूँ। मैं एक महज सीधा-सरल सा मानव मात्र हूँ। फिर भी मैं किसी भी भूत-प्रेत -पिशाच से नहीं डरता। क्योंकि उसके लिए बाजार में चमत्कारीऔर शक्तिशाली 'हनुमान ताबीज'हैं,और 'अल्लाह लाकेट'भी उपलब्ध हैं। उसकेलिए चर्च वालों के पास एक खास किस्म का 'जल' और एक क्रास भी उपलब्ध है।मैं भूकम्प,सूखा ,बाढ़ और सुनामी से नहीं डरता। क्योंकि उससे बचने के लिए मेरे भारत में तैतीस करोड़ देवता ,चार धाम तीर्थ यात्रायें हैं। लाखों - मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे और चर्च हैं!सैकड़ों बाबा,स्वामी,गुरू घंटाल,धर्म-मजहब-पंथ हैं।
मैं गरीबी ,बेरोजगारी और मुफलिसी से नहीं डरता क्योंकि उनसे निजात दिलाने के लिए 'गरीबी हटाओ' के नारे हैं ,'मन की बातें हैं ' मनरेगा है,साइंस हैं ,टेक्नॉलॉजी है ,जन संगठन हैं,हड़तालें हैं,पक्ष-विपक्ष के बेहतरीन नेता हैं। मैं चीन की विशाल सैन्य ताकत से नहीं डरता ,पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और उसकी परमाणु बम्ब की धमकी से नहीं डरता!क्योकि उसकी काटके लिए हमारे पास अम्बानी,अडानी,टाटा,बिड़ला,बांगर हैं! और इनके अलावा मोदीजीतो हैं ही!मैं किसी आईएसआईएस,अलकायदा, तालीवान,या जमात-उड़-दावा और जेहादियों से नहीं डरता क्योंकि मैं मुसलमान नहीं हूँ। जबकि आतंकी जेहादी-इराक,सीरिया पाकिस्तान, अफगानिस्तान ,यमन और सूडान में चुन चुन कर केवल गैर सुन्नी मुसलमानों को ही मार रहे हैं। भारत -पाकिस्तान सीमा पर और कष्मीर में भी अधिकांस मुसलमान ही मारे जा रहे हैं। यद्द्पि हिन्दुओं को भी वे नहीं छोड़ते,किन्तु यह केवल अपवाद ही है।
मैं दैहिक ,दैविक ,भौतिक तापों से नहीं डरता क्योंकि उसके लिए मेरे पास बाबा हैं साध्वियां हैं ,कांवड़ यात्राएं हैं, दुर्गोत्सव हैं ,गणेशोत्सव हैं , ईदोत्सव हैं ,फागोत्सव हैं ,वसंतोत्सव हैं,होली, दीवाली,दशहरा,और प्रकाशोत्सव हैं। वृत-उपवास, कथा-कीर्तन हैं। मैं सरकारी संरक्षण में पलने वाले घातक भृष्टाचारसेभी नहीं डरता क्योंकि उसके लिए आनन्द मोहन माथुर और आनंद राय जैसे व्हिस्लब्लोबर हैं। मैं ट्रांसफर माफिया से नहीं डरता क्योंकि मैं अब सेवा निवृत हो चुका हूँ। मैं दारू माफिया,बालू रेत खनन माफिया,खाद्यन्न-मिलावट माफिया,ठेका माफिया, जिंस -जमाखोर माफिया, व्यापम माफिया, भू माफिया, बिल्डर माफिया, ड्रग माफिया से भी मैं नहीं डरता ,क्योंकि इन सबसे निपटने के लिए लोकायुक्त हैं ,न्याय पालिका है,एनडीटीवी है,रवीशकुमार हैऔर जनता है ,विपक्ष के नेता हैं,बार-बार होने वाले चुनाव हैं।
और वैसे भी ये डराने वाली काली ताकतें- महापापी अपनी मौत मरते भी तो रहते हैं। इनसे क्या डरना ? इनसे तो वही डरता है जो इनसे चंदा लेकर चुनाव लड़ता है !और नेता, विधायक ,सांसद ,मंत्री बनता है। मेरे जैसे एक आम आदमी को इनसे क्यों डरना चाहिए ?
सफ़दर हाशमी,नरेंद्र दावोल्कर ,गोविन्द पानसरे ,कलीबुरगी और गौरी लंकेश को मारने वाले हिंस्र -अंधविश्वासी हत्यारों से भी मैं नहीं डरता। क्योंकि इनके हाथों मारे गये अमर शहीदों के जैसा महान क्रांतिकारी और समाज सुधारक तो मैं कदापि नहीं हूँ।
मार्क्सवादी-भौतिकवादी दर्शन पर विश्वास रखते हुए मैं भाववादियों के सभी धर्मों की अच्छी बातों और स्थापित मानवीय मूल्यों की कद्र करता हूँ। श्रीकृष्ण के इस सिद्धांत को मानता हूँ की
"नबुद्धिभेदमजनयेदज्ञानाम ,कर्मसङ्गिनाम ,जोषयेत्सर्व कर्माणि विद्वान युक्त समाचरन '' - अर्थात
"विज्ञानवादी -प्रगतिशील भौतिकवादि विद्वानों को चाहिए कि धर्म-मजहब का ज्यादा उपहास न करें ,लोगों को धर्मविरुद्ध ज्यादा ज्ञान न बघारें। उनकी गलत सलत मान्यताओं,कुरीतियों और अंधविश्वाशों पर चोट तो करें किन्तु यह सब करने से पहले खुद को आदर्श रूप में ढालें ,फिर दूसरों का पथ प्रदर्शन करें "
चूँकि मैं सच्चे मन से धर्म -मजहब को फॉलो करने वालों की इज्जत करता हूँऔर साथ ही उनको आगाह भी करताहूँ कि वे 'फतवावाद' संकीर्णतावाद,पाखंडवाद और ढोंगी पाखंडी मठाधीशों से बचकर रहें । इसीलिये कईसच्चे आस्तिक भी मेरे मित्र हैं। मैं अतल -वितल -सुतल -तलातल -तल -पाताल और भूलोक इत्यादि सातों लोकों के थलचर जलचर और नभचर इत्यादि नाना प्रकार के ज्ञात-अज्ञात भयानक आदमखोर जीव-जंतुओं से नहीं डरता। मैं कोबरा ,करैत या विशालकाय ड्रेगन से नहीं डरता। मैं चील-बाज-गिद्ध या गरुड़ से नहीं डरता। मैं कोकोडायल, ,व्हेल या सार्क से भी मैं नहीं डरता। किन्तु मैं एक अदने से उस जीव से अवश्य डरता हूँ,जो कि दुनिया भर के किसी भी हिंस्र आतंकि से भी नहीं डरता।
जो प्राणी साहित्यकारों -व्याकरणवेत्ताओं के लिए महज एक तुच्छतर 'उपमान' है। उस तुच्छ जीव का काटा हुआ व्यक्ति पानी नहीं मांगता। इस तुच्छ कीट के काटने मात्र से किसी को डेंगू, किसी को मलेरिया किसी को चिकनगुनिया और किसी को परलोक की प्राप्ति भी हुआ करती है। मैं इस अति सूक्ष्म किन्तु भयावह जीव से भलीभांति सताया जा चुका हूँ। इस के दंश को याद कर सिहिर उठता हूँ। अब तो डर के मारे उसका उल्लेख भी नहीं करता।बल्कि सभी सज्जनों से इस कथा को वांचने की याचना करता हूँ।
अथ 'श्री मच्छर कथायाम' समाप्त !
प्रस्तुत कथा को जो नर-नारी नहां -धोकर ,साफ़ सुथरी जगह पर बैठकर नित्य -नियम से सपरिवार पढ़ेंगे ,सुनेंगे और गुनेंगे मच्छरदानी का और ऑल आऊट का प्रयोग करेंगे वे असमय ही 'परमपद' को प्राप्त नहीं होंगे। बल्कि इस धरा पर शतायु होंगे।ओम् शांति: एवमस्तु !
श्रीराम तिवारी

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