जब केंद्र की मोदी सरकार ने एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट-विषयक सुप्रीमकोर्ट के सही फैसले को पलटा,तो भारतके अधिकांस ओ/ सी-सवर्ण बंधु भाजपा और मोदी सरकार से नाराज हो गये! जो सवर्ण कांग्रेस और तीसरे पक्ष के हैं वे तो भाजपा के खिलाफ कांग्रेस या तीसरे विकल्प के लिये प्रतिबद्ध हैं! किंतु जो परंपरागत भाजपाई हैं,वे गलतफहमी के शिकार हैं!जाने क्यों वे 'नोटा' के विकल्प को अपनी समस्या का निदान मान रहे हैं!जबकि नोटा तभी आजमाया जाना चाहिये जब एक वोटर के समक्ष पहले आजमाये जा चुके सारे विकल्प चुक गये हों!किंतु यदि कोई विकल्प बाकी है,तो उसे भी एक अवसर दिया जाना चाहिये!सवर्णों को राहुल गांधी को भी एक मौका देना चाहिये!यदि राहुल असफल हों तो मायावती को भी सशर्त एक अवसर देना चाहिये!यदि वे असफल हों तो वामपंथ को भी कम से कम एक बार तो मौका मिलना चाहिये!जब ये सब चुक जाएं और तब भी यदि किसी को उचित न्याय न मिले तब भले ही इस नोटा रूपी ओखली में सिर घुसेड़कर हाराकिरी कर लेनी चाहिये
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