आदिम साम्यवादी युग के बाद दास स्वामी युग आया।इसमें उत्पादन की जो प्रणाली आई उसमें उत्पादन की मुख्य मानवीय शक्ति दास थे और मुख्य उपभोक्ता, स्वामी हो गए।
दास के हित और स्वामी के हित में विरोध था।दास श्रम जीवी और स्वामी परजीवी था।दास शोषित और स्वामी शोषक था।
अपने जीवन की बुरी दशाओं से दास का असंतुष्ट होकर विद्रोही होना स्वाभाविक था।उसका असंतोष कभी मौन तो कभी मुखर और कभी कभी हथियार बंद भी था।
वह विद्रोह और असंतोष प्रायः जबरदस्ती कुचल दिया जाता था।
दास स्वामी प्रणाली का वास्तविक निर्धारण स्वामित्व की स्थिति से होता है।
दासों को नियंत्रित करने के लिए ही राज्य का जन्म हुआ।राज्य की सेना,कानून,न्याय,अधिकारी आदि का मुख्य उद्देश्य यही था कि दास स्वामी प्रणाली की वह व्यवस्था बनी रहे।
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