आदिम साम्यवादी युग में उत्पादन और स्वामित्व दोनों का स्वरूप सामूहिक था ।
दास स्वामी युग में उत्पादन का स्वरूप सामूहिक था।किन्तु स्वामित्व का स्वरूप वैयक्तिक था।अर्थात दास समूह में उत्पादन करते थे किन्तु एक स्वामी उसका मालिक हो जाता था।
सामंती युग में उत्पादन का स्वरूप वैयक्तिक हो गया ,तो इसके साथ ही उसका स्वामित्व भी वैयक्तिक हो गया।अर्थात उत्पादन का काम एक परिवार के सभी लोग मिल जुल कर करते थे और उत्पादित समान का मालिक वह परिवार ही होता था।
सामंती युग का उत्पादक परिवार सामंत को उसका हिस्सा देने के बाद अपने उपभोग के लिए जरूरत भर की चीजें रख लेता था।उसी को दूसरों द्वारा उत्पादित जरूरी सामानों से बदल लेता था।या उसे बेच कर मुद्रा प्राप्त कर लेता था।
अपनी जरूरत को पूरा करने भर के सामान को अपने उपभोग के काम में लाने के बाद वह जो बचाता था ,उस अतिरिक्त को वह उपकरणों के निर्माण में खर्च करता था।
कुल मिला कर उत्पादन मुख्यत : उपभोग के लिए किया जाता था। अर्थात लोग उपभोग के लिए पैदा करते और खरीदते थे ,न कि बेचने के लिए।उत्पादन, उपभोग की वस्तुओं का किया जाता था ,न कि ,माल,का।
लोग जगह जगह लगने वाले हाटों में अपनी अपनी जरूरत की चीजे खरीदते थे।मूल्य का मुख्य आधार मुख्यत : मांग और पूर्ति का संबंध था
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