सोमवार, 17 सितंबर 2018

कस्तूरी कुण्डल बसत म्रग ढूंड़े वन माहिं!

विगत 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत यूपीएके १० वर्षीय मनमोहनी कुशासन से तंग आकर देश की आवाम ने भाजपा के नेतत्व में एनडीए को प्रचंड बहुमत प्रदान किया था। लेकिन विगत चार साल में जनता का मोह भंग हुआ है। मोदी सरकार के लिए यह खतरेकी घंटी है।पहले नोटबंदी,जीएसटी और अब एट्रोसिटी एससी,/एसटी संशोधित एक्ट गले पड़ रहा है!आमतौर पर विश्लेषकों की रायहै कि 'नमो' रुपी बरगदके पेड़के नीचे अन्य नेता-कार्यकर्ताओं रुपी पेड़-पौधों को अपना रूप -आकार विकसित करने का कोई अवसर नहीं मिला!इसलिये सरकार चलाने के आशाजनक परिणाम कैसे सम्भव हैं?
अभी तो हर चीज पीएम के ही कब्जे में है, यहाँ तक कि कोई केंद्रीयमंत्री तो क्या भारत का गृहमंत्री भी 'नमो'की इच्छा के बिना कुछ नहीं कर सकता। अतः यह बहुत सम्भव है कि व्यक्तिगत रूप से तो मोदीजी अपना 'आउट- पुट ' देने की पुरजोर कोशिश करेंगे, किन्तु विभिन्न राज्यों के भाजपाई नेता और केंद्रीयमंत्री और पार्टी पदाधिकारी-समष्टिगत रूप से अपने रण -कौशल का इजहार करने में असमर्थ हो रहे हैं।
आर्थिक संकट को नवरत्न और सार्वजनिक उपक्रम बेचने से या एफडीआई से नही टाला जा सकता! बल्कि अमीर कार्पोरेट घरानों और पूँजीपतियों के अलावा,मंदिरों,मठों, गिरजों, गुरुद्वारों और वक्फ बोर्डों के पास जो धन जमा हैंउसे राजसात किया जाना चाहिये! भारत में मौजूद इस अकूत धन से जापान को १० बार खरीदा जा सकता है। इसके अलावा भारत के मध्यमवर्ग के पास इतना सोना है कि अमेरिकाऔरसऊदी अरब का स्वर्ण भण्डार भी शर्मा जाए !
जापान,अमेरिका, यूरोप, रूस और चीन के आगे सर झुकाने से कुछ नहीं होगा प्रधान मंत्री जी ! देश के अंदर झाँक कर देखिये, "कस्तूरी कुण्डल बसत म्रग ढूंड़े वन माहिं!" याद कीजिये!विनाशकारी पूँजीवादी नीतियां बदलिए श्रीमान ! यदि उठा सकें तो -दुनिया के सामने भारत का सर उठाकर दिखायें!फिर अपना '५६' इंच का सीना तानकर दिखायें ! तब शायद कोई बात बने' !
-; श्रीराम तिवारी ;-

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