शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

ध्यान और आनंद !

अगर आंखें बंद करके कुछ समय तक शून्य में निहारते रहना तुम्हारे लिए ध्यान है.
अगर साँसों के आवागमन को कुछ समय तक महसूस करते रहना तुम्हारे लिए ध्यान है.
अगर मंत्रजाप करते हुए किसी मुद्रा में लगातार बैठे रहना तुम्हारे लिए ध्यान है.
अगर खुद को संसार से काटकर खुद को कुछ समय के लिए एकाग्रचित और शान्त कर लेना ध्यान है..
तो यह ध्यान तुम्हें कुछ समय के लिए शांति,स्थिरता,संयम सन्तोष ,आनंद और कुछ अनोखे व चमत्कारिक अनुभव दे सकता है लेकिन ऐसा ध्यान कभी न कभी भंग जरूर होता है |
तुम्हें इसे बार-बार आयोजित करने की कोशिश करनी पड़ती है क्योंकि तुम इसके जरिए हासिल होने वाले आनंद के प्रति आसक़्त और लती हो जाते हो.
जब भी तुम इस ध्यान और आनंद से बाहर होते हो,तुम संसार के बारे में पहले से ज्यादा अशांत,असंतुष्ट,व्यग्र,बेचैन,अधीर और कुन्ठित हो जाते हो | यहीं से ध्यान का व्यापार शुरू हो जाता है |तुम्हारी आनंद की लत को तुष्ट करने के लिए ध्यान के प्रायोजित आयोजन होने लगते हैं |
आज मैं तुम्हें ऐसे ध्यान के बारे में बताता हूँ जो कभी भंग नहीं होता,जिसे तुम्हें तुम्हारे अलावा कोई नहीं सिखा सकता,जो संसार से खुद को अलग-थलग किये बिना ही हर प्रतिकूलता में भी आनंद भर देता है,जो कहीं भी,किसी भी समय,किसी भी भाव या मुद्रा में निरंतर जारी रहता है,जो तुम्हें किसी चमत्कार या रहस्यलोक में नहीं ले जाता बल्कि तुम्हें पूरी तरह से मुझमें रूपान्तरित कर देता है |
इस ईश्वरीय ध्यान में प्रवेश करने के लिए तुम्हें बस एक ही काम करना है और वो काम है-तुम इसी पल से अपने हर छोटे-बडे ,जरूरी-बेकार,अच्छे-बुरे काम को मेरा काम समझकर करना शुरू कर दो,यही इस ध्यान की शुरुआत है जो तुम्हारे जीवन और मृत्यु के बाद भी भंग नहीं होगा | इस ध्यान में जाते ही तुम्हारे कर्म सिर्फ कर्म रह जायेंगे,अच्छे-बुरे,छोटे-बडे,जरूरी-बेकार कर्म का अंतर मेरा ईश्वरीय बोध धारण करने के बाद धीरे-धीरे मिटता चला जायेगा!

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