बुधवार, 5 सितंबर 2018

असली लोकतंत्र कोसों दूर.

वेशक पूंजीवाद का विकल्प 'समाजवाद' ही हो सकता है!किन्तु संविधान और सुप्रीम कोर्ट को ताक पर रखकर,एससी/एसटी के वोट पाने के लिये सभी प्रमुख राष्ट्रीय दल जब नवतुष्टिकरण के नामपर समाजवाद या साम्यवाद का मुखौटा लगाकर उसे बदनाम कर चुके हों,तो जाति निरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष सर्वहारा के समक्ष भयानक वैचारिक संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक है!
जनांदोलनों और मेहनतकशों के अनवरत संघर्षों में तप चुके 'वामपंथ' को क्यों नहीं एम.पी.,यूपी,बिहार में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने चाहिए ? भले ही सब हर जाएँ ! वेशक आगामी लोकसभा चुनाव में नागनाथ या सांपनाथ में से ही कोई जीतेगा ! जोघाघ पूंजीपति और काकस आज भाजपा और मोदी जाप कर रहे हैं कल वे किसी और सत्तारूढ़ वर्ग के साथ होंगे!जब तक यह भारत में यह प्रवृत्ति रहेगी तब तक असली लोकतंत्र कोसों दूर होगा!
भारत के तमाम प्रगतिशील बुद्धिजीवी भी अभी तक ये नही बता पाये कि यहां समाजवाद के असली अवरोधक तत्व कौन हैं ? क्या कांग्रेस या भाजपा ? कदापि नहीं ! ये तो घोषित वर्ग शत्रू हैं!इनके बजाय तीसरे मोर्चे वाले,जनता परिवार वाले और जात धर्म की राजनैतिक रोटी खाने वाले ही देश की आवाम को बुरी तरह विभाजित किये हुये हैं! समाजवाद और साम्यवाद के असली दुश्मन यही हैं। जनता के असली दुश्मन भी यही जात धर्म की राजनीति करने वाले ही हैं !
वास्तव में कांग्रेस का विकल्प न तो भाजपा है और न यह जातीय कूड़ा कचरा!बल्कि वर्गविहीन जातिविहीन समतामूलक समाज की अवधारणा वाला वामपंथ ही सही विकल्प है !और यही भारतीय अस्मिता -अखंडता की रक्षा कर सकता है !और यही नवनिर्माण कर सकता है,चीन से भी बेहतर!

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