JNU में जब कन्हैया और खालिद उमर इत्यादि छात्रों पर हमले हुये,तो वामपंथ ने फौरन उनका साथ दिया!जब भीमा कोरेगांव के संदर्भ में महाराष्ट्र के दलितों नै उग्रतापूर्ण आंदोलन किया,तब वामपंथ ने उनका साथ दिया!जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट
की न्यायिक और संतुलित व्याख्या की तब भी वामपंथ ने उस दलित आंदोलन का साथ दिया,किंतु सामान्य वर्ग के जायज आंदोलन पर वामपंथ का रवैया समझ से परे है!क्या यह मान लिया जाये कि देश के लाखों सवर्ण मजूर किसान सब आततायी हैं?क्या उन्हें सिर्फ लाल झंडा उठाने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है! क्या सवर्ण मजदूर और सर्वहारा शोषित नहीं हैं?क्या वे न्याय के हकदार नहीं हैं?
शायद वामपंथ के इसी पक्षपातपूर्ण रवैयै के कारण चुनावों में उसके उम्मीदवार एम.पी., यू.पी.,महाराष्ट्र,छ.ग.बिहार और अब तो बंगाल में भी जमानत नही बचा पाते!वरना और क्या वजह हो सकती है?
की न्यायिक और संतुलित व्याख्या की तब भी वामपंथ ने उस दलित आंदोलन का साथ दिया,किंतु सामान्य वर्ग के जायज आंदोलन पर वामपंथ का रवैया समझ से परे है!क्या यह मान लिया जाये कि देश के लाखों सवर्ण मजूर किसान सब आततायी हैं?क्या उन्हें सिर्फ लाल झंडा उठाने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है! क्या सवर्ण मजदूर और सर्वहारा शोषित नहीं हैं?क्या वे न्याय के हकदार नहीं हैं?
शायद वामपंथ के इसी पक्षपातपूर्ण रवैयै के कारण चुनावों में उसके उम्मीदवार एम.पी., यू.पी.,महाराष्ट्र,छ.ग.बिहार और अब तो बंगाल में भी जमानत नही बचा पाते!वरना और क्या वजह हो सकती है?
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