न तख्तो ताज चाहिए ,
न जन्नत न स्वर्ग मोक्ष,
न सब्ज बाग दुनिया के,
फकत अपने हिस्से की-
सरल जिंदगी चाहता हूँ ।
युगो युगों से बिसारते रहे,
जो अहम बात विद्वतजन,
वो बात अब सर्मायेदारों से,
हुक्मरानों से कहना चाहता हूँ।।
मैं तो सिर्फ अपने हिस्से के-
जल जंगल जमीन आसमान,
नदियां,समुंदर सूरज,चाँद,तारों,
में अपना बाजिब हक चाहता हूँ।
विराट अस्तित्व द्वारा निर्मित,
अपार सम्पदा के हरएक,जर्रे में,
अपने लिये- प्राणीमात्र के लिये,
बराबर का हक चाहता हूँ।
-श्रीराम तिवारी
न जन्नत न स्वर्ग मोक्ष,
न सब्ज बाग दुनिया के,
फकत अपने हिस्से की-
सरल जिंदगी चाहता हूँ ।
युगो युगों से बिसारते रहे,
जो अहम बात विद्वतजन,
वो बात अब सर्मायेदारों से,
हुक्मरानों से कहना चाहता हूँ।।
मैं तो सिर्फ अपने हिस्से के-
जल जंगल जमीन आसमान,
नदियां,समुंदर सूरज,चाँद,तारों,
में अपना बाजिब हक चाहता हूँ।
विराट अस्तित्व द्वारा निर्मित,
अपार सम्पदा के हरएक,जर्रे में,
अपने लिये- प्राणीमात्र के लिये,
बराबर का हक चाहता हूँ।
-श्रीराम तिवारी
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