मनमोहन सिंह की नीतियों के मद्देनजर मोदीजी की नीतियों का आकलन किया जाए तो दोनों का डीएनए एक ही है। यूपीए -२ के सापेक्ष -'मोदी सरकार' प्रत्येक क्षेत्र में भले ही आक्रामक दिख रही है,किन्तु फिर भी वह यूपीए-१ से बेहतर परफार्मेंस नहीं दे पा रही है । यूपीए-१ के दौर में देशकी जनता को जो राहत दी गई ,उस मनरेगा ,आरटीआई ,आधार,आंशिक खाद्द्य सुरक्षा तथा संचार क्रांति के लिए कौन भुला सकता है ? तब जो ग्लोबल इन्फार्स्ट्र्क्चरल डवलपमेन्ट शुरू हुआ था उसी की बदौलत तो यूपीए को २००९ में दुवारा मौका मिला ! किंतु यूपीए-२ फिसड्डी रही इसलिए २०१४ के चुनाव में कांग्रेस और उनके गठबंधन साथियों की दुर्गति हुई। मोदी सरकार अपने प्रथम मौजूदा सवा 4 साल के कार्यकाल में 'यूपीए-३ (यदि होता तो) जैसा आचरण करती रही है। पैट्रोल,डीजल,डालर के दाम बढ़ाने,नोटबंदी,जीएसटी,और एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के अलावा अभी तक वह किसी भी क्षेत्र में मनमोहनी नीतियों से अलग कुछ नहीं कर पाई है।मात्र मोदी जी के मुखर होने और हवाई यात्राओं के अलावा और कोई फर्क इन दोनों में नही है!
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